नयी दिल्ली, नौ अगस्त (भाषा) पूर्व राजनयिक शिवशंकर मेनन के अनुसार, चीन के साथ 1962 का युद्ध गुटनिरपेक्ष नीति की विफलता नहीं थी, बल्कि चीन नीति की विफलता थी और इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत को दुनिया भर से भिन्न विचारधारा वाले देशों से कितना समर्थन मिला।
उन्होंने शुक्रवार शाम स्वप्ना कोना नायडू की किताब ‘द नेहरू ईयर: एन इंटरनेशनल हिस्ट्री ऑफ नॉन-अलाइनमेंट’ के विमोचन के अवसर पर यह बात कही।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) की शुरुआत औपनिवेशिक व्यवस्था के पतन और अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और दुनिया के अन्य क्षेत्रों के लोगों के स्वतंत्रता संघर्षों तथा शीत युद्ध के चरम के दौरान हुई थी।
मेनन ने कहा कि भारत को अमेरिका समेत कई देशों से समर्थन मिला। उन्होंने कहा, ‘1962 में, देखिए हमें दुनिया भर से कितना समर्थन मिला। और इसने तीसरी दुनिया में चीन की प्रतिष्ठा को जो नुकसान पहुंचाया, वह काफी विनाशकारी था। इसलिए मुझे नहीं लगता कि यह गुटनिरपेक्ष नीति की विफलता थी, बल्कि यह चीन नीति की विफलता थी।’
मेनन ने कहा, ‘लोग अपने हितों के आधार पर निर्णय लेते हैं। भारत को दुनिया भर से समर्थन मिला। इसमें से कुछ समर्थन वैचारिक था, जैसे अमेरिका वगैरह से। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन आपको दुनिया भर के कई देशों से समर्थन मिला।’
चीन में भारत के पूर्व राजदूत ने कहा कि किसी नीति की सफलता या असफलता का आकलन ‘परिणाम से किया जाना चाहिए, न कि इस आधार पर कि दूसरे लोग उसके बारे में क्या कहते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए मुझे लगता है कि हमें इन चीजों का आकलन करते समय थोड़ा सावधान रहना चाहिए। हमें किसी नीति की सफलता या विफलता का आकलन इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि दूसरे लोग क्या कह रहे हैं, या वे वही कह रहे हैं जो हम कह रहे हैं। अंततः परिणाम ही मायने रखता है। आपको यह देखना चाहिए कि ज़मीनी स्तर पर क्या हुआ, वास्तव में क्या परिणाम प्राप्त हुए।’
प्रकाशन गृह ‘जगरनॉट’ द्वारा प्रकाशित यह किताब गुटनिरपेक्षता की शुरुआत तथा शीत युद्ध के चरम पर जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसकी अवधारणा प्रस्तुत किए जाने के बाद से भारत की विदेश नीति में इसकी प्रासंगिकता का पता लगाती है।
भाषा आशीष माधव
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