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Thursday, 26 December, 2024
होमदेशसेना और पुलिस के डि-रेडिकलाइजेशन ड्राइव शुरू करने के बाद कश्मीर में आतंकी भर्ती में आई 'भारी गिरावट'

सेना और पुलिस के डि-रेडिकलाइजेशन ड्राइव शुरू करने के बाद कश्मीर में आतंकी भर्ती में आई ‘भारी गिरावट’

ऑपरेशन 'सही रास्ता' पिछले साल बारामूला जिले के पत्तन में शुरू किया गया था और अब इसका विस्तार अनंतनाग तक किया जा रहा है. बताया जाता है कि इस साल सिर्फ सात युवक आतंकी संगठन में शामिल हुए हैं.

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श्रीनगर/नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक कश्मीर में इस साल आतंकी भर्ती में भारी गिरावट देखी गई है. जानकारी के मुताबिक पहले पांच महीनों में केवल सात युवाओं को आतंकवादी समूहों में शामिल होते हुए देखा गया है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि 2022 की तुलना में यह संख्या काफी कम है, क्योंकि पिछले साल 121 युवा आतंकवादी समूहों में शामिल हुए थे.

उन्होंने कहा कि यह संख्या 2021 में 142 थी, जो कि 2020 की तुलना में 178 से कम थी.

सूत्रों के अनुसार, 2019 में, जिस साल जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निरस्त किए जाने के बाद सख्त लॉकडाउन देखने को मिला, उस साल 171 रिक्रूटमेंट जबकि उसके पहले साल में यह आंकड़ा 210 था.

एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “इस साल अब तक, केवल सात युवा आतंकी समूहों में शामिल हुए हैं, उनमें से पांच सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में मारे गए हैं.”

कट्टरवाद का मुकाबला करने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में पूछे जाने पर, एक दूसरे स्रोत ने दिप्रिंट को बताया कि भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मिलकर ‘सही रास्ता’ नाम का एक ऑपरेशन लॉन्च किया था.

कार्यक्रम के तहत, कट्टरपंथी युवाओं या कट्टरपंथी विचारों की तरफ बढ़ रहे युवाओं को एक विशेषीकृत केंद्र में 21-दिनों के कैप्सूल में रखा जाता है, जहां धार्मिक दृष्टिकोण के साथ-साथ करियर के अलावा अन्य चीजों के बारे में भी उनकी काउंसिलिंग की जाती है.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कार्यक्रम पिछले साल बारामूला जिले के पट्टन में शुरू किया गया था, और अब अनंतनाग में एक और केंद्र खोला जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि 15-30 आयु वर्ग के लगभग 180 युवाओं की काउंसलिंग की गई है.

एक तीसरे सूत्र ने कहा, “यह खुशी की बात है कि जो 180 लड़के इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे उनमें से केवल एक लड़का आतंकी रैंकों में शामिल हुआ और वह भी एक हफ्ते के भीतर वापस आ गया,”

सूत्रों के मुताबिक युवाओं की काउंसलिंग के लिए निजी लोगों को शामिल किया गया था और यह कार्यक्रम अब तक सफल रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि परिवार के लोगों ने तब सेना को संपर्क करना शुरू किया जब उन्हें यह अहसास हुआ कि उनके बच्चे कट्टरपंथी हो रहे हैं. एक सूत्र ने कहा, “सिर्फ सेना और पुलिस ही नहीं बल्कि परिवार भी इस कार्यक्रम में बड़ी भूमिका निभाते हैं.’

सूत्रों ने बताया कि कोविड के दौरान पारिवारिक जुड़ाव बढ़ा था, क्योंकि युवा और बुजुर्ग एक साथ समय बिताने के लिए मजबूर थे. उन्होंने कहा कि इसका युवाओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

सूत्रों ने कहा कि अतीत में अनौपचारिक डी-रेडिकलाइजेशन कार्यक्रम चलाए गए हैं, लेकिन यह पहली बार है कि इसकी पूरी संरचना तैयार की गई है और उसके हिसाब से सावधानी से किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और जम्मू-कश्मीर की राज्य जांच एजेंसी द्वारा आतंक के बुनियादी ढांचे और वित्त पर केंद्रित कार्रवाई ने भी आतंकवादी भर्ती को कम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इसके अलावा, इससे जुड़े प्रमुख व्यक्तियों की गिरफ्तारी ने बड़े स्तर पर आंतकी भर्तियां और कट्टरपंथी प्रोग्राम्स को रोकने में मदद की.

अंत में, सूत्रों ने कहा, युवा कानून के शासन से डरते हैं क्योंकि किसी भी गलत गतिविधि से पुलिस की कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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