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Saturday, 28 December, 2024
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चीन से निपटने के लिए प्रादेशिक सेना साइबर एक्सपर्ट और मंदारिन के विशेषज्ञों को शामिल करने की तैयारी में

भारतीय सेना की एक यूनिट, TA भारत-चीन सीमा कर्मियों की बैठकों के दौरान दुभाषियों के रूप में कार्य करने के लिए मंदारिन भाषा के विशेषज्ञों की मदद ले रही है. साथ ही वह 'कम से कम छह साइबर विशेषज्ञों' को नियुक्त करने की भी योजना बना रही है.

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नई दिल्ली: चीन और भारत के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सीमा विवाद को लेकर कई दौर की बातचीत के बीच प्रादेशिक सेना (TA) – जो भारतीय सेना की एक शाखा है – मंदारिन भाषा के विशेषज्ञों को दुभाषियों के रूप में तैनात करने पर काम कर रही है. दोनों पक्षों के बीच बैठकों के दौरान भाषा एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आती है. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है. 

साथ ही TA सीमा पर “वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए साइबर विशेषज्ञों को शामिल करने की भी पूरी तैयारी कर रही है”.

TA के सूत्रों के मुताबिक इसपर बातचीत चल रही है और कर्मियों को शामिल करने के मानदंडों की पहचान कर ली गई है. TA ने साइबर विशेषज्ञों के लिए एक परीक्षण योजना भी तैयार की है और उन्हें इस महीने के भीतर शामिल करने के लिए रक्षा मंत्रालय (MOD) से मंजूरी मिलनी चाहिए. पायलट प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में, शुरुआत में कम से कम छह साइबर विशेषज्ञों को शामिल करने का विचार है.

9 अक्टूबर 1949 को स्थापित TA भारत का एक स्वयंसेवी बल है जिसे युद्ध के दौरान और साथ ही अशांति वाले क्षेत्रों में “नो-वॉर, नो-पीस” उद्देश्यों के साथ उपयोग किया जाता है. उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर (जम्मू-कश्मीर) और पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में इसकी तैनाती की जाती है.

TA देश भर में पारिस्थितिक संबंधी काम भी कर रहा है और उसने 10 पारिस्थितिक टास्क फोर्स (ETF) बटालियनों का गठन किया है जो देश भर में पूरी तरह से पारिस्थितिकी-संबंधित कार्य करती हैं. ऐसी पहली बटालियन दिसंबर 1982 में गठित की गई थी.

एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “इन बटालियनों को देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात किया गया है. रेगिस्तान से लेकर पहाड़ों और महाराष्ट्र के मैदानी इलाकों तक इसकी तैनाती की जाती है. टास्क फोर्स ने इन क्षेत्रों में वन लगाने से लेकर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद की है.”

विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा इसके लिए आवंटित लगभग 90,000 हेक्टेयर भूमि पर लगभग नौ करोड़ से अधिक पेड़ लगाए गए हैं.

2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए मिशन अमृत सरोवर के हिस्से के रूप में TA ने लगभग 700 झीलों का निर्माण और कुछ झीलों का कायाकल्प किया. ऐसा पता चला है कि TA विभिन्न राज्य सरकारों के भी संपर्क में है जो पर्यावरण में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पारिस्थितिक बटालियन बनाने के इच्छुक हैं.

एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, “जिन क्षेत्रों में ETF बटालियन तैनात की गई थीं, वे किनारों पर मिट्टी के कटाव को रोकने में सक्षम थे. ये बटालियनें नदी के प्रदूषण को नियंत्रण में रखते हुए नदी के किनारे अवैध गतिविधियों को रोकने में भी कामयाब रहीं.” TA बटालियनों को हर्बल गार्डन बनाने की मान्यता भी मिली है. 

सूत्र ने कहा, “अब वास्तव में उनके द्वारा किए गए काम के आधार पर हमें गंगा या उसकी सहायक नदियों जैसे यमुना और गोमती के किनारे अतिरिक्त कार्य बल गठित करने के लिए अधिक अनुरोध मिल रहे हैं.”

सूत्रों के अनुसार, यमुना के मामले में सेना ने इस साल की शुरुआत में जिन कंपनियों को ट्रांसफर किया था, उनमें से एक नदी के किनारे हो रहे काम के लिए तीन महीने के लिए वहां थी.

दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी TA से इस तरह के और काम करने का अनुरोध किया है. पहले उद्धृत सूत्र ने कहा, “इसलिए हम यमुना के लिए एक और टास्क फोर्स बनाने पर विचार कर रहे हैं जो अंतिम चरण में हैं.”

TA के वार्षिक लक्ष्य में देश भर में लगभग 40-45 लाख पेड़ लगाना शामिल है.


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विभागीय, पैदल सेना और इंजीनियर बटालियन

TA को विभागीय और गैर-विभागीय यूनिट में विभाजित किया गया है. विभागीय यूनिट को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, रेलवे मंत्रालय और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय सहित अन्य द्वारा वित्त पोषित किया जाता है.

कुल मिलाकर, TA में 60 बटालियन शामिल हैं, जिनमें से 14 विभागीय हैं. 43 अन्य में से अधिकांश पैदल सेना बटालियन हैं और तीन इंजीनियर बटालियन हैं.

पैदल सेना और इंजीनियर बटालियन गैर-विभागीय हैं, और पूरी तरह से रक्षा मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित हैं. वे नियमित भारतीय सेना के जवानों के साथ मिलकर काम करते हैं.

भारतीय सेना की आवश्यकता के आधार पर 43 पैदल सेना बटालियनों को लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, कच्छ के रण और मणिपुर में तैनात किया गया है.

मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष के कारण पेट्रोल पंप और विमानन जैसी आवश्यक सेवाएं प्रभावित हुईं, सूत्रों ने कहा कि यह TA बटालियन ही थीं जिन्होंने उसे बहाल करने में मदद की. पैदल सेना की बटालियनें भी भारतीय सेना के साथ-साथ उग्रवाद और आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगी हुई हैं.

सूत्रों ने कहा कि TA का उपयोग कश्मीर में “गलत धारणा” से निपटने में किया गया था. केंद्र सरकार की ‘हर घर तिरंगा’ पहल को बढ़ावा देने के लिए घाटी में इस यूनिट को तैनात किया गया था.

बल के अनुसार इस साल अगस्त में स्वतंत्रता दिवस से पहले TA यूनिट ने कश्मीर के कई गांवों में लगभग 10,000 राष्ट्रीय झंडे वितरित किए.

साथ ही सीमा सड़क संगठन (BRO) परियोजनाओं की सुरक्षा बढ़ाने में भी यह शामिल हैं, जो “संवेदनशील क्षेत्रों और कठिन इलाकों” के साथ-साथ भारतीय रेलवे की परियोजनाओं, विशेष रूप से पूर्वोत्तर में की जाती हैं.

हाल तक रेल मंत्रालय के अधीन TA की छह बटालियनें थीं. हालांकि, देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित इनमें से पांच को “रेलवे में आधुनिकीकरण” के कारण सितंबर में भंग कर दिया गया था.

इस बीच तीन इंजीनियर यूनिट नियंत्रण रेखा (LOC) पर घुसपैठ रोधी बाधा प्रणालियों के रखरखाव में शामिल हैं. वे लद्दाख क्षेत्र सहित सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी शामिल रहे हैं.

साथ ही यह भी पता चला है कि TA ने महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व देने के लिए तेल इंजीनियरों, रेलवे जैसे क्षेत्रों के साथ-साथ TA निदेशालय जैसे मुख्यालयों में कर्मचारियों की नियुक्तियों में महिला अधिकारियों को शामिल करना शुरू कर दिया है.

पहले बताए गए सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “आगे और अधिक महिला अधिकारियों को शामिल किया जाएगा.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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