दिल्ली: जिन विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने परिसर स्थापित करने के लिए हरी झंडी मिल गई है, वे ज्यादातर नए युग की प्रौद्योगिकी और प्रबंधन में पाठ्यक्रम शुरू करेंगे. यह भारत में छात्रों द्वारा सबसे अधिक मांग वाले विषय हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने मंगलवार को दिप्रिंट से बातचीत में बताया.
शुरू होने वाले पाठ्यक्रमों में साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), मशीन लर्निंग, जैव प्रौद्योगिकी, वित्तीय प्रबंधन और व्यवसाय विश्लेषण जैसे विषय शामिल हो सकते हैं.
विदेशी उच्च शिक्षा संस्थान (एफएचईआई) को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट) अधिनियम के तहत कवर किया जाएगा, जो धन की सीमा पार आवाजाही और विदेशी मुद्रा खातों के रखरखाव, भुगतान के तरीके, प्रेषण, प्रत्यावर्तन और आय की बिक्री को नियंत्रित करता है.
जनवरी में, उच्च शिक्षा नियामक ने यूजीसी (भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम 2023 का ड्राफ्ट जारी किया था. इसने विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में अपने परिसर स्थापित करने के लिए मानदंड निर्धारित किए. वर्तमान में, UGC ड्राफ्ट मानदंडों को अंतिम रूप देने से पहले तौर-तरीकों पर काम करने की प्रक्रिया में है.
कुमार ने कहा, ‘इन नियमों की पहली चिंता छात्र हित को पूरा करना है. हमने पाया है कि तकनीक और प्रबंधन विषय सबसे अधिक मांग वाले विषय हैं और छात्रों को शिक्षा के बाद अच्छी नौकरी की संभावनाएं प्रदान करते हैं. देश के भीतर भारतीय छात्रों को विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए, विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों का ध्यान तकनीक और प्रबंधन से संबंधित विषयों पर अधिक होगा.’
जब से ड्राफ्ट मानदंड सामने आए हैं, तब से यूजीसी ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर पाठ्यक्रमों और फी स्ट्रक्टर सहित कई मुद्दों पर चर्चा की है. उन्होंने कहा कि अब तक न्यूजीलैंड के आठ और ऑस्ट्रेलिया के पंद्रह विश्वविद्यालयों ने यूजीसी के साथ चर्चा की है.
यूजीसी अध्यक्ष ने कहा कि इसके अलावा कनाडा और अमेरिका के विश्वविद्यालयों ने भी देश में कैंपस स्थापित करने में रुचि दिखाई है.
ड्राफ्ट नियमों के मुताबित, एफएचईआई को अपनी प्रवेश प्रक्रिया और शुल्क तय करने की स्वतंत्रता होगी. इसके अलावा, उन्हें अपने मूल परिसरों में धन प्रत्यावर्तित करने की भी अनुमति होगी.
इनमें से कुछ विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों से कम शिक्षण शुल्क ले सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘चूंकि ये विश्वविद्यालय दक्षिण एशिया में छात्रों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन जाएंगे, इसलिए यह स्वाभाविक है कि आसपास के देशों के छात्र यहां आकर अध्ययन करना चाहेंगे. कुछ विश्वविद्यालयों ने संकेत दिया है कि वे भारतीय छात्रों के लिए शिक्षण शुल्क संरचना को अपेक्षाकृत कम रखेंगे.’
कुमार ने कहा कि यूजीसी उन विश्वसनीय विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रस्तावों को स्वीकार करने के लिए तैयार है जो रैंकिंग प्रक्रियाओं में भाग नहीं लेते हैं.
उन्होंने कहा, ‘कई जर्मन विश्वविद्यालय हैं जिसकी उच्च शिक्षा में अच्छी प्रतिष्ठा है लेकिन वे रैंकिंग में भाग लेने से बचते हैं. यदि वे यूजीसी से संपर्क करते हैं, तो हम उन्हें ऑनबोर्ड करने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए प्रकाशन, पेटेंट, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, उद्योग साझेदारी, पूर्व छात्रों के प्रदर्शन और अंतरराष्ट्रीय छात्रों की रुचि जैसे कई मानकों पर विचार करेंगे.’
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जमीन के लीज पर चर्चा चल रही है
एफएचईआई या तो अपने परिसरों को एक कंपनी के रूप में स्थापित कर सकते हैं और उससे अपने वित्तीय संचालन को शुरू कर सकते हैं या वे एक शाखा परिसर स्थापित कर सकते हैं और अपने परिसरों का संचालन कर सकते हैं.
कुमार ने कहा, ‘विश्वविद्यालयों ने जिन बिंदुओं को उठाया है, उनमें से एक उन्हें लीज पर जमीन देने की अवधि कम होने की समस्या भी है’.
मौजूदा ड्राफ्ट गाइडलाइन में कहा गया है कि एफएचईआई को दस साल के लिए जमीन दी जाएगी, जिसके बाद उन्हें लीज का फिर से दोबारा लेना होगा.
ड्राफ्ट में दिया गया है, ‘आयोग स्थायी समिति की सिफारिशों पर विचार करेगा और 45 दिनों के भीतर, शर्तों के साथ या बिना शर्तों के भारत में एक परिसर का संचालन शुरू करने के लिए एक अधिसूचना जारी करेगा. अनुमति शुरू में दस वर्ष की अवधि के लिए दी जाएगी. एफएचईआई आयोग को समय-समय पर आयोग द्वारा तय किए गए वार्षिक शुल्क (दूसरे वर्ष के बाद) का भुगतान करेगा.’
कुमार ने कहा कि हालांकि, यूजीसी इन विश्वविद्यालयों के अनुरोध को समायोजित करने के लिए लीज को दस साल से आगे बढ़ाने पर विचार कर रहा है.
(संपादन: संपादन)
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