नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) पश्चिम बंगाल में भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता की वजह से उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्ति रद्द किये जाने से बेरोजगार हुए राज्य के शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मियों में से कुछ ने बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया और नौकरी में बहाली की मांग की।
पश्चिम बंगाल में आंदोलन कर रहे शिक्षकों ने यहां ‘‘योग्य शिक्षक शिक्षिका अधिकार मंच’’ के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया। यह मंच उन शिक्षकों की बहाली की वकालत कर रहा है जिन्होंने योग्यता के आधार पर परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
प्रदर्शनकारी शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों ने कहा कि एसएससी फर्जी और वैध उम्मीदवारों के बीच अंतर करने में विफल रहा है, जिसके कारण नियुक्तियां रद्द कर दी गईं।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उन्होंने राज्य सरकार और आयोग से योग्य उम्मीदवारों को बहाल करने के लिए एक तंत्र विकसित करने का आग्रह किया है।
पश्चिम बंगाल में 2016 में हुई परीक्षा के आधार पर 2019 में नियुक्त शिक्षकों में से एक चिन्मय मंडल ने कहा कि वे अपनी स्थिति को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील करने के लिए दिल्ली आए हैं।
मंडल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम देश के लोगों को बताना चाहते हैं कि हम किस तरह से पीड़ित हैं। हमारे राज्य में शिक्षा प्रणाली ध्वस्त हो रही है और हमारे अधिकारों की रक्षा नहीं की जा रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘निर्दोष को दंडित नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा आने वाली पीढ़ियां यह सोचकर शिक्षक बनने से कतराएंगी कि यह एक कलंकित पेशा है।’’
मंडल ने कहा कि वे लोग न केवल अपनी नौकरी के लिए लड़ रहे हैं, बल्कि अपने सम्मान के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
न्यायालय के फैसले की वजह से अपनी नौकरी गंवा चुके रहमान ने कहा कि उन्हें संस्थागत धोखाधड़ी के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
मिदनापुर के रहने वाले और शिक्षकेतर कर्मचारी के रूप में नियुक्त प्रलय कुमार जामदार ने बताया कि उनकी नियुक्ति झारखंड-पश्चिम बंगाल सीमा के पास पुरुलिया के एक स्कूल में हुई थी, जहां वे अपने परिवार के साथ किराये के मकान में रह रहे थे।
जामदार ने बताया कि उनका परिवार अब भी वहीं है। उन्होंने कहा कि नौकरी छूट जाने के बावजूद वह 5,000 रुपये मासिक किराया दे रहे हैं।
जामदार ने कहा, ‘‘हमारे परिवार इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। लोग हमारी पीठ पीछे बातें करते हैं और हम पर चोर होने का आरोप लगाते हैं… हमारे बच्चों को स्कूल जाते समय ताने सहने पड़ते हैं।’’
इस बीच, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन की नेता सुचेता डे ने इस मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय जिस तरह से व्यवहार कर रहा है, वह चिंताजनक है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता सवालों के घेरे में है… इस फैसले के पीछे क्या तर्क है? वे सभी शिक्षकों की नौकरियां नहीं छीन सकते।’’
प्रदर्शनकारी शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों ने ‘‘हमें हमारी नौकरी दो या हमें मौत दो’’ जैसे नारे लगाए और हाथों में तख्तियां लेकर न्याय की गुहार लगाई तथा निर्दोषों के बजाय दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
शीर्ष अदालत ने तीन अप्रैल को पश्चिम बंगाल के सरकारी और राज्य सरकार द्वारा वित्त-पोषित विद्यालयों में 25,753 शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति को अवैध करार देते हुए उनकी चयन प्रक्रिया को ‘‘दूषित और दागदार’’ करार दिया था।
भाषा धीरज सुरेश
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