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Tuesday, 29 July, 2025
होमदेश‘तानाशाही सरकार’ और उत्तराखंड की लोक विरोध की परंपरा — धामी पर गीत गाने वाले गायक ने तोड़ी चुप्पी

‘तानाशाही सरकार’ और उत्तराखंड की लोक विरोध की परंपरा — धामी पर गीत गाने वाले गायक ने तोड़ी चुप्पी

पवन सेमवाल का आरोप है कि देहरादून पुलिस तीन बार घर आई और गीत के कुछ हिस्से हटाने को कहा. बीएनएस की धाराओं के तहत उन पर दंगे भड़काने और महिला की शील भंग करने के आरोप में FIR दर्ज की गई है.

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नई दिल्ली: गढ़वाली लोक गायक पवन सेमवाल अपने शब्दों या गानों में कभी भी सच बोलने से नहीं कतराए हैं.

पिछले 20 सालों से 41 साल के सेमवाल अपने गीतों के ज़रिए उत्तराखंड सरकार की आलोचना करते रहे हैं और पहाड़ी राज्य की कई सामाजिक समस्याओं को उजागर करते आए हैं.

हालांकि, उनके गीत पहले भी विवादों में रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार की आलोचना करता उनका ताज़ा गाना उन्हें कानूनी मुसीबत में डाल गया है. उन पर “दंगे भड़काने” और “महिला की शील भंग करने” के आरोप में पुलिस शिकायत दर्ज हुई है.

इस गाने का नाम है ‘तिन भी नि थामी’, यानी ‘थोड़ा भी नहीं संभला जा रहा’, जिसमें राज्य की भाजपा सरकार को बढ़ती बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर घेरा गया है.

16 जुलाई को अपलोड किए गए इस वीडियो में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तस्वीरें और कार्टून, देहरादून पुलिस के दृश्य, सड़कों पर हो रहे विरोध-प्रदर्शन और अपराधों से जुड़ी खबरों की क्लिपिंग्स शामिल हैं—जिनमें अंकिता भंडारी मर्डर केस भी है.

वीडियो ने तेज़ी से ध्यान खींचा और सिर्फ 24 घंटे में यूट्यूब पर 15,000 से ज़्यादा बार देखा गया, 1,200 लाइक्स और 500 से ज़्यादा कमेंट्स मिले.

गाने के बोल सीधे दिल पर चोट करते हैं. एक लाइन जो शायद सरकार को सबसे ज़्यादा चुभी, वो यह थी कि धामी सरकार में भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी बढ़ गई है: “तेरा राज मा भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी होईं छै, जनता सदैव की औं में लाचार, बेटियों का होणा छन बलात्कार…धामी रे, नि थामी रे.” (तेरे राज में भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी फैल गई है, जनता हमेशा लाचार है, बेटियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं…धामी, तू तो संभाल भी नहीं पाया)

सेमवाल पिछले दो दशकों से गा रहे हैं और राम कैसेट्स और टी-सीरीज़ जैसे बड़े म्यूज़िक ब्रांड्स के लिए भी काम कर चुके हैं. सत्ता की आलोचना करने वाले उनके गानों से पहले भी विवाद हुए हैं, लेकिन अब तक न तो उन पर और न ही राज्य के किसी अन्य विरोध गायक पर पुलिस की कोई कार्रवाई हुई थी—यहां तक कि तब भी नहीं, जब उन्होंने 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को निशाना बनाते हुए एक गाना निकाला था, जिसमें महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को लेकर सरकार को “सोया हुआ” बताया गया था और रावत की तस्वीर भी वीडियो में इस्तेमाल की गई थी.

लेकिन इस बार मामला कुछ ज़्यादा ही गंभीर हो गया.

सेमवाल का आरोप है कि गाना रिलीज़ होने के कुछ ही घंटों बाद पुलिस उनके घर आ गई.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि 17 जुलाई को देहरादून पुलिस उनके दिल्ली स्थित घर आई और कहा कि वीडियो से कुछ तस्वीरें—खासतौर पर मुख्यमंत्री की हटाई जाएं. पुलिस ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री का नाम भी वीडियो से निकाल दें.

उन्होंने बताया, “हमने उनके कहे अनुसार गाने को एडिट किया और उन्हें भेज दिया, लेकिन उसी रात करीब आधी रात को पुलिस फिर आई और मुझे पूछताछ के लिए ले गई. अगली दोपहर मुझे वापस घर छोड़ा गया.”

सेमवाल ने कहा कि गाने के बोल और वीडियो में बदलाव करने के बाद उन्होंने गाने को दोबारा अपलोड किया. इस बार मुख्यमंत्री धामी की तस्वीरें हटा दी गईं, उनके नाम को बदलकर ‘डामी’ कर दिया गया और कुछ विरोध प्रदर्शनों के दृश्य व न्यूज़ क्लिपिंग्स की जगह आम प्रतीकात्मक फुटेज डाली गई.

लेकिन मामला फिर भी खत्म नहीं हुआ.

20 जुलाई को पुलिस फिर उनके दिल्ली वाले घर आई और उन्हें दोबारा देहरादून ले गई. उन्होंने बताया, “मेरा प्रोड्यूसर दीपक भी पुलिस के साथ गया, लेकिन उसे अलग गाड़ी में ले जाया गयाय”

आखिरकार, सेमवाल ने वह वीडियो यूट्यूब से पूरी तरह हटा दिया.

सेमवाल ने कहा, “पुलिस मेरे घर ऐसे घुसी जैसे मैं कोई आतंकी हूं.”

उन्होंने बताया, “आखिर मैंने किया क्या है? उत्तराखंड में कलाकार हमेशा से जनता की बात कहते आए हैं. मैं हमेशा पहाड़ों की समस्याओं पर ही गाता आया हूं. अगर हम लोक कलाकार ही आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो कौन उठाएगा?”

गायक ने आरोप लगाया कि पुलिस उन पर लगातार वीडियो हटाने का दबाव बना रही थी.

उन्होंने कहा, “मैं खुद भी उलझन में था. हमने यूट्यूब से तो वीडियो हटा दिया था, लेकिन वह फेसबुक पर बहुत शेयर हो चुका था. मैंने पुलिस से कहा—‘अब कितनी जगह से हटवाओगे?’”

रविवार को सेमवाल को एक बार फिर पूछताछ के लिए देहरादून बुलाया गया. उन्होंने यह भी साफ किया कि दिल्ली पुलिस ने उन्हें कभी नहीं उठाया, हर बार देहरादून पुलिस ही आई थी.

हालांकि, सेमवाल को गिरफ्तार नहीं किया गया है, लेकिन पटेल नगर थाने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. यह एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की उन धाराओं के तहत दर्ज है, जो समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाने, सार्वजनिक शांति भंग करने वाले बयान देने और किसी महिला की शील भंग करने के इरादे से किए गए शब्द, इशारे या हरकतों से जुड़ी हैं.

पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट को एफआईआर दर्ज होने की पुष्टि की, लेकिन इसे “संवेदनशील मामला” बताते हुए आगे की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


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कानूनी पक्ष

लेकिन सेमवाल की परेशानी सिर्फ मुख्यमंत्री की तस्वीर और नाम इस्तेमाल करने की वजह से नहीं बढ़ी.

20 जुलाई को जब गाना दोबारा अपलोड किया गया, तो उत्तरकाशी की एक निवासी मंजू देवी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. उनका आरोप था कि गाने की एक लाइन में शराब की दुकानों की बढ़ती संख्या को वेश्यालयों से जोड़ना, उत्तराखंड की सभी महिलाओं का अपमान है.

अब वायरल हो चुके एक वीडियो में, मंजू देवी गायक को धमकी देती दिख रही हैं: “अगर वो सामने आ गया तो मैं उसका सिर कलम कर दूंगी…28 केस हो चुके हैं और 29वां केस ये होगा, जिसमें मैं उसे मार डालूंगी.”

सेमवाल ने पश्चिम दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीसीपी) विचित्र वीर को पत्र लिखा है और महिला के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.

शिकायत में कहा गया है, “जो महिला मुझे जान से मारने की धमकी दे रही है, वह मुझे मरवा सकती है या किसी झूठे मामले में फंसा कर जेल भिजवा सकती है. इसलिए मैं निवेदन करता हूं कि इस महिला और उनके साथियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए जो मुझे धमका रहे हैं.” इस शिकायत की एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है.

दिप्रिंट ने डीसीपी से संपर्क करने के लिए कई बार कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. उनकी ओर से जवाब आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

2018 में खुद का म्यूज़िक लेबल ‘भुवनेश्वरी प्रोडक्शन’ शुरू करने वाले पवन सेमवाल, जिसके बैनर तले यह विवादित गाना रिलीज़ हुआ, इसने सरकार की कार्रवाई को दमनकारी बताया.

सेमवाल ने कहा, “यह तानाशाही सरकार है. लोग अपना काम कर रहे हैं और उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है. अगर हम सरकार से सवाल नहीं पूछेंगे, तो फिर किससे पूछें?”

उनके प्रोडक्शन हाउस के यूट्यूब पर 32,000 से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं और उन्होंने अब तक 120 से अधिक वीडियो प्रकाशित किए हैं.

सेमवाल का कहना है कि सरकार को ऐसे गीतों को हमले की तरह नहीं, बल्कि एक चेतावनी के रूप में देखना चाहिए.

गायक ने दिप्रिंट से कहा, “ये सरकार पर निर्भर करता है कि वह इसे सकारात्मक रूप से लेती है या दबाने की कोशिश करती है.”

यह पहला मौका नहीं है जब सेमवाल किसी विवाद में फंसे हों.

जब उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को निशाना बनाते हुए “उत्तराखंडी जागी जावा” (उत्तराखंड की जनता, जागो) नाम से एक गाना निकाला था, तब देहरादून के एक निवासी ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.

उस गाने में राज्य में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को उजागर किया गया था और सरकार पर “सोई हुई” होने का आरोप लगाया गया था. गाने में सीधे रावत का नाम लिया गया और उनकी तस्वीरें भी शामिल थीं.

लेकिन उस समय की भाजपा सरकार ने खुद को इस मामले से अलग बताया और कहा कि शिकायतकर्ता का पार्टी से कोई संबंध नहीं है.

जब रावत से इस गाने पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने कहा, “कुछ लोगों को गंदा पानी अच्छा लगता है, इसलिए वो नाले में जाते हैं. कुछ को साफ पानी पसंद है, इसलिए वो गंगा जाते हैं.”

राजनीतिक तकरार

कांग्रेस ने सेमवाल के खिलाफ दर्ज एफआईआर और पुलिस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है और इसे असहमति की आवाज़ को दबाने की कोशिश बताया है.

उत्तराखंड से कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने दिप्रिंट से कहा, “ये एक लोकगायक के पंख काटने जैसा है, एक ऐसी आवाज़ को चुप कराना है जो जनता की बात करती है.” उन्होंने आरोप लगाया कि धामी सरकार का रवैया संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.

उन्होंने यह भी कहा कि गाने में राज्य के युवाओं में बढ़ती नशे की लत पर जो सवाल उठाए गए, उसके कुछ ही समय बाद मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) ने मानसिक स्वास्थ्य और नशामुक्ति सेवाओं को मज़बूत करने की योजना की घोषणा कर दी.

यह अभियान कथित तौर पर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत लागू किया जाएगा. सरकार की ओर से इसकी अधिसूचना 24 जुलाई 2023 को जारी की गई थी.

गरिमा ने यह भी माना कि कांग्रेस के शासनकाल में भी कलाकारों और आम लोगों की ओर से आलोचना होती थी, लेकिन “तब सरकार ने कभी एफआईआर या कानूनी धमकी से जवाब नहीं दिया.”

उन्होंने आगे कहा, “भाजपा सरकार बेरोज़गारी या युवाओं के कल्याण जैसे असली मुद्दों पर बात नहीं कर रही. इसकी सारी ऊर्जा मुसलमानों, मदरसों, UCC और ‘जिहाद’ जैसे मुद्दों पर ही केंद्रित है.”

राज्य सरकार ने अपने कामकाज का बचाव किया.

भाजपा के उत्तराखंड प्रमुख प्रवक्ता मनवीर सिंह ने दिप्रिंट को लिखित बयान में कहा, “धामी सरकार का विकास कार्य पूरे उत्तराखंड में गूंज रहा है. उनकी लोकप्रियता इन्हीं प्रयासों में निहित है. प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री धामी की कुशल नेतृत्व में राज्य लगातार प्रगति कर रहा है.”

उन्होंने यह भी कहा, “नकारात्मकता और प्रोपेगेंडा की राजनीति से कुछ हासिल नहीं होगा. जनता हर मकसद को भली-भांति समझती है और हमेशा की तरह इस बार भी समझदारी से जवाब देगी.”


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‘पहाड़ों के बॉब डिलन’

सेमवाल पहाड़ों के पहले ऐसे गायक नहीं हैं जिन्होंने गीतों को विरोध का माध्यम बनाया हो. उनसे पहले प्रसिद्ध गायक नरेंद्र सिंह नेगी, जिन्हें अक्सर ‘पहाड़ों का बॉब डिलन’ कहा जाता है, उन्होंने गढ़वाली लोक संगीत के ज़रिए सत्ता पर करारा व्यंग्य किया.

उनका 2006 का मशहूर गाना ‘नौचामी नारायण’, जो जागर शैली में है और जिसे अलग-अलग सांस्कृतिक व धार्मिक संदर्भों में ढाला जा सकता है, तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को सीधे निशाने पर लेता है.

गाने में तिवारी पर पावर का दुरुपयोग, लाल बत्ती संस्कृति, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगाए गए और उन्हें ‘कलियुग का अवतार’ बताया गया.

यह गाना तेज़ी से वायरल हो गया—सीडी और डीवीडी की दुकानों से चंद घंटों में बिक गए. गाने पर बैन लगा दिया गया और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राज्य भर में नेगी का पुतला फूंका.

लेकिन सरकार द्वारा गाने को जब्त करने और रोकने की कोशिशों ने जनता में और ज्यादा नाराज़गी फैला दी. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस गाने के खिलाफ बनी नाराज़गी 2007 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का एक कारण बनी.

यह सिलसिला 2012 में भी जारी रहा, जब नेगी ने ‘अब कठगा खेलो’ नाम का गाना निकाला, जिसमें पूर्व बीजेपी मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की तीखी आलोचना की गई. उस साल बीजेपी की हार के लिए इस गाने को भी काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया गया.

नेगी आज भी उत्तराखंड में अपनी निडर शैली के लिए जाने जाते हैं और वे बीजेपी और कांग्रेस—दोनों पर बराबरी से तंज कसते आए हैं.

उत्तराखंड के कई लोगों के लिए ये लोकगीत जनता की भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति बनकर उभरे हैं, जो उन मुद्दों को आवाज़ देते हैं जिन्हें अक्सर राजनीतिक तंत्र नज़रअंदाज़ करता है.

ऋषिकेश निवासी 50 वर्षीय विकास उनियाल ने कहा, “जब ये गाने आते थे, तब लगता था कि कोई तो हमारी बात सुन रहा है. हम तो सरकारी फाइलों के चक्कर काटते-काटते थक चुके थे और कोई बदलाव भी नहीं दिखता था. सेमवाल का गाना भी वही बात कह रहा था जो हम सब महसूस कर रहे थे.”

लेकिन सेमवाल का कहना है कि राज्य में लोक कलाकारों को हमेशा नज़रअंदाज़ किया गया है.

उन्होंने कहा, “इन नेताओं ने हमारे कलाकारों या संस्कृति के लिए किया ही क्या है? एक कलाकार तीन-चार लोगों को रोज़गार देता है—बाजे वाले, डांसर वगैरह. सरकार उनके लिए क्या कर रही है?”

देहरादून के एक सामाजिक कार्यकर्ता और सोशल डेवलपमेंट कम्युनिटीज़ फाउंडेशन नामक एनजीओ के संस्थापक अनुप नौटियाल ने सरकार की प्रतिक्रिया को ‘हद से ज़्यादा’ बताया. दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “अगर विवाद न होता तो ये गाना कभी भी नेगी के ‘नौचामी नारायण’ जैसा असर नहीं डालता. सरकार ने इस पर ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया दी.”

उन्होंने कहा, “चुनाव तक आते-आते लोग इस गाने को भूल ही जाते. ये सोशल मीडिया का ज़माना है—ट्रेंड और वायरल चीज़ों का दौर. सरकार को तो अस्पताल, स्कूल, सड़क और प्रशासन जैसे असली मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए था.”

नौटियाल ने यह भी कहा कि आज के दौर में किसी रचनात्मक काम की ‘शेल्फ लाइफ’ पहले से कहीं कम हो गई है.

उन्होंने कहा, “पहले एक गाना महीनों या सालों तक लोगों की याद में बना रहता था. अब तो जब तक अगला वायरल वीडियो न आ जाए, तब तक ही कुछ चीज़ें प्रासंगिक रहती हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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