नयी दिल्ली, तीन जून (भाषा) दिल्ली, त्रिपुरा और तमिलनाडु प्रौढ़ साक्षरता और शिक्षा से संबंधित चुनौतियों से निपटने में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल हैं जबकि उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल प्रदेश पिछड़ रहे हैं। बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक मूल्यांकन परीक्षण (एफएलएनएटी) के परिणामों से यह जानकारी मिली है।
एफएलएनएटी एक राष्ट्रव्यापी मूल्यांकन है। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश निरक्षर आबादी की पहचान करते हैं, उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और फिर उनका परीक्षण और प्रमाणन करते हैं ताकि उन्हें निरक्षरता की श्रेणी से बाहर लाया जा सके।
मूल्यांकन में तीन विषय शामिल हैं – पढ़ना, लिखना और अंकगणित – प्रत्येक विषय 50 अंकों का है, कुल 150 अंक होते हैं। यह परीक्षण पंजीकृत गैर-साक्षर शिक्षार्थियों के बुनियादी साक्षरता और अंकगणित कौशल का मूल्यांकन करने के लिए विकसित किया गया है।
एफएलएनएटी प्रक्रिया जुलाई 2024 और मार्च 2025 के बीच चरणों में शुरू की गई थी जिसमें 1.77 करोड़ से अधिक शिक्षार्थियों का परीक्षण किया गया था। मई 2025 तक, केवल 34.31 लाख शिक्षार्थियों को आधिकारिक रूप से प्रमाणित किया गया था जो लगभग 19.4 प्रतिशत का राष्ट्रीय प्रमाणन औसत दर्शाता है।
‘उल्लास – नव भारत साक्षरता कार्यक्रम’ के तहत किए गए मूल्यांकन से विभिन्न राज्यों में प्रौढ़ साक्षरता प्रमाणन में महत्वपूर्ण भिन्नताएं सामने आई हैं।
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) द्वारा संकलित और घोषित किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि तमिलनाडु ने 100 प्रतिशत सफलता दर दर्ज की, जहां एफएलएनएटी के लिए उपस्थित सभी 5,09,694 शिक्षार्थियों को प्रमाणित किया गया।
इसी तरह, त्रिपुरा में 14,179 शिक्षार्थियों में से 13,909 को जबकि दिल्ली में 7,959 उम्मीदवारों में से 7,901 को प्रमाणित किया गया है।
इसके विपरीत, उत्तराखंड, गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने मध्यम भागीदारी के बावजूद कम प्रमाणन दर दर्ज की। उत्तराखंड में 85.7 प्रतिशत परीक्षार्थियों को प्रमाणित किया गया जबकि गुजरात में 87.1 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में 88.3 प्रतिशत उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया।
भाषा शफीक नरेश
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