नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को तमिलनाडु को नीट उत्तीर्ण करने वाले सेवारत उम्मीदवारों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सुपर स्पेशियलिटी सीटें आवंटित करने के अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जो राज्य के लिए एक बड़ी जीत है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने राज्य सरकार को अपने कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में सेवारत उम्मीदवारों के लिए 50 प्रतिशत कोटा जारी रखने की अनुमति दी। पीठ ने कहा, ‘‘हमारा विचार है कि 27 नवंबर, 2020 के अंतरिम आदेश द्वारा शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 के लिए प्रदान की गई अंतरिम सुरक्षा को जारी रखने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। इस प्रकार हम उस संबंध में अर्जी को अस्वीकार करते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रदान किए गए आरक्षण को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक वर्ष के लिए राज्य परामर्श जारी रखने के लिए स्वतंत्र होगा।’’
इसके साथ ही, पीठ ने होली की छुट्टी के बाद कई याचिकाओं को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने 14 मार्च को तमिलनाडु सरकार के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया था जिसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में नीट-उत्तीर्ण सेवारत उम्मीदवारों को 50 प्रतिशत सुपर-स्पेशियलिटी सीटें आवंटित की गई थीं।
राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) अमित आनंद तिवारी ने दलील दी थी कि अगर इस तरह के निर्णय पर रोक लगा दी जाती है तो यह न केवल गरीब और ग्रामीण लोगों की गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल तक उनकी पहुंच को प्रभावित करेगा, बल्कि एक ऐसी स्थिति भी पैदा करेगा जहां योग्य शिक्षकों की कमी के कारण पाठ्यक्रम बंद करने पड़ेंगे।
उन्होंने यह भी बताया था कि लगभग 70 प्रतिशत गैर-सेवारत उम्मीदवार अनिवार्य सेवा की बांड शर्तों को भी पूरा नहीं करते हैं। राज्य ने 2020 के शासनादेश (जीओ) का बचाव किया था, जिसके जरिए उसने निर्देश दिया गया था कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ‘‘सुपर स्पेशियलिटी सीटों (डीएम/एम.सीएच) का 50 प्रतिशत तमिलनाडु के नीट उत्तीर्ण सेवारत उम्मीदवारों को आवंटित की जाती हैं और शेष 50 प्रतिशत सीटें भारत सरकार/स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक को आवंटित की जाती हैं।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं दुष्यंत दवे, श्याम दीवान और गोपाल शंकरनारायणन सहित कई वकीलों की दलीलें सुनीं और अतिरिक्त महाधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने राज्य सरकार का पक्ष रखा।
तिवारी ने दलील दी, ‘‘यह सही है कि सेवारत उम्मीदवारों के लिए सीटों का आवंटन आरक्षण की प्रकृति में नहीं आता है, बल्कि प्रवेश का एक अलग स्रोत है। दूसरे, राज्य को प्रवेश के ऐसे अलग स्रोत प्रदान करने का अधिकार है जो बड़े सार्वजनिक हित के लिए एक नीतिगत निर्णय है और वह, किसी भी तरह से केंद्रीय कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानकों से समझौता नहीं करता है।’’
तमिलनाडु सरकार ने कहा था कि सेवारत उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का कोटा निर्धारित करना ‘‘प्रवेश का एक अलग स्रोत है और यह आरक्षण नहीं’’ है। राज्य सरकार के शासनादेश के खिलाफ छह याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं।
भाषा सुरभि अनूप
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