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Wednesday, 27 March, 2024
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तमिलनाडु पुलिस की एक आइडल विंग है जो पुरानी बाइबिल, चोल कांस्य को खोज निकालने में माहिर है

पिछले हफ्ते, आइडल विंग ने हिंदू देवी-देवताओं और गणेश की दो प्राचीन मूर्तियों को अमेरिका के संग्रहालयों में खोज निकाला, जिन्हें 40 साल पहले नागपट्टिनम के एक मंदिर से चुराया गया था.

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300 साल पुरानी बाइबल की इमेज देखकर इंस्पेक्टर इंदिरा रो पड़ीं. यह पवित्र धर्मग्रंथ का पहला तमिल अनुवाद था जो 17 साल पहले तंजावुर के सरस्वती महल लाइब्रेरी म्यूजियम से गायब हो गया था.

उन्होंने बताया, ‘सभी ने इसके लिए उम्मीद खो दी थी.’ वह आगे कहती हैं, ‘कुछ के मुताबिक, इस बात को काफी लंबा समय हो गया था, सो इसे फिर से खोज निकालने का कोई तरीका नहीं है. तो वही कुछ का मानना यही था कि लापता बाइबल के मामले को न छूएं तो बेहतर हैं क्योंकि तकनीकी रूप से ‘यह कोई मूर्ति तो है नहीं जिसे ढूंढ निकाला जाए.’

लेकिन इंस्पेक्टर इंदिरा ने हार नहीं मानी. तब उन्होंने कहा था ‘यह अभी भी एक असाधारण और मूल्यवान है.’  इस पवित्र किताब को गायब हुए लगभग दो दशक बीत चुके थे लेकिन इंदिरा को यह मामला पिछले साल ही सौंपा गया.

यह एक मुश्किल मामला था, हल करने में एक साल लग गया. उनकी टीम ने छह महीने तक सरस्वती महल म्यूजियम का चक्कर लगाया, हर एंगल से जांच की, कोई जगह नहीं छोड़ी,  हर व्यक्ति से पूछताछ की गई.  लगभग 45 गवाहों की जांच और अंतरराष्ट्रीय संग्रहालयों व नीलामी घरों के दर्जनों आर्ट ब्रोशर को खंगाला गया. आखिरकार मेहनत रंग लाई और किंग्स कॉलेज, लंदन में बाइबल को खोज निकाला गया. वेबसाइट पर इसका पहला पेज काफी घिसा हुआ नजर रहा था, लेकिन अभी भी अपनी उम्र के हिसाब से काफी अच्छी तरह से संरक्षित था.

इंस्पेक्टर इंदिरा तमिलनाडु आइडल विंग सीआईडी बनाने वाले अधिकारियों की एक टीम का हिस्सा हैं, जो भारत से प्राचीन वस्तुओं की चोरी के मल्टी-मिलियन डॉलर के वैश्विक तस्करी रैकेट की जांच के लिए एक सतत और महत्वाकांक्षी अभियान है. तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसकी सक्रिय आइडल विंग 1983 में स्थापित की गई थी. केरल और कर्नाटक सहित अन्य राज्यों ने भी अपनी खुद की आइडल विंग बनाने में रुचि दिखाई. 2012 के बाद से इस विंग ने 878 चोरी की मूर्तियों सहित 1,463 से ज्यादा कलाकृतियों को बरामद किया है.

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तमिलनाडु से चुराई गई प्रचीन कालीन वस्तुओं को नियमित रूप से गैर-कानूनी नेटवर्क के जरिए पश्चिम की अपमार्केट गैलरी और संग्रहालयों में खपा दिया जाता रहा है. सबसे जाना-माना और हाल ही में पकड़ा गया संदिग्ध सुभाष कपूर मौजूदा समय में त्रिची सेंट्रल जेल में बंद है. मैनहट्टन के प्रॉसिक्यूटर ने उस पर अमेरिकी संग्रहालयों के साथ दुर्लभ चोरी की कलाकृतियों की सौदेबाजी करने का आरोप लगाया है.

हाल के महीनों में, आइडल विंग अंतरराष्ट्रीय नीलामी घरों और स्थानीय कला तस्करों से कई मूर्तियों को बरामद करने के लिए चर्चा में रहा है. अधिकारियों का कहना है कि सिर्फ पिछले साल ही वे 10 मूर्तियों को वापस लाए हैं: छह अमेरिका से और चार ऑस्ट्रेलिया से.

बोनहम, लंदन में पार्वती की मूर्ति | Credit: TN Idol Wing

51 साल पहले चोल-काल की चुराई गई पार्वती की मूर्ति को लंदन के एक नीलामी घर में खोजा गया था. तंजौर महाराजा सेरफोजी II की 19वीं सदी की एक पेंटिंग अमेरिका के एक संग्रहालय में मिली थी. इस सभी कार्यों की गतिविधि के केंद्र में इंस्पेक्टर इंदिरा रहीं. वह राज्य के सेंट्रल जोन के अंतर्गत आने वाली कुंभकोणम इकाई की प्रमुख हैं. यह जोन प्राचीन तमिल राजाओं द्वारा बनाए गए मंदिरों से भरा पड़ा है और तस्करों के लिए काफी गुंजाइशों से भरा पड़ा है.


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बाइबल के लिए तलाशी

बाइबिल का मामला एक फाइल में दबा पड़ा था. जिस पर लिखा था ‘मुश्किल मामला’ यानी इसके मिलने की संभावना तो थी लेकिन वे इसे खोज नहीं पाए. इसने इंदिरा को इस केस को अपने हाथों में लेने के लिए प्रेरित किया. 2017 में आइडल विंग ने इस भ्रम को धूल चटा दी और कार्यकर्ता हाथी राजेंद्रन की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की. हाल ही में नए डीजीपी के. जयंत मुरली के नेतृत्व में ही उन्होंने मामले में आगे बढ़ना शुरू किया. इंस्पेक्टर इंदिरा अपनी टीम का नेतृत्व कर रही थीं.

साल 2005 या फिर उससे भी पहले की कुछ अफवाहों के मुताबिक, विदेशी लोगों, शायद वे जर्मन या डेन थे, ने सरस्वती महल संग्रहालय का दौरा किया था, जिसके बाद बाइबिल गायब हो गई. इंदिरा ने कहा, ‘हमारे पास एक लीड थी.’

इंदिरा और उनकी टीम ने थरंगमबाड़ी, या ट्रैंक्यूबार के डेनिश ट्रेडिंग पोर्ट पर गई. यहां 1715 में डेनिश ईसाई मिशनरी बार्थोलोमियस ज़िगेनबाल्ग ने तमिल में न्यू टेस्टामेंट का मूल अनुवाद किया था. इंदिरा ने बताया ‘ हमें उनके घर पर तंजावुर राजा सेरफोजी के हस्ताक्षर वाली बाइबिल की एक फोटोकॉपी मिली थी. यह डेनमार्क में बनी एक प्रति थी.’

टीम ने इंटरनेट के जरिए यूरोप के संग्रहालय के कैटलॉग खंगालने का काम शुरू किया. वह कहती हैं, ‘हमने डेनमार्क के आस-पास से खोजना शुरू किया …. और किंग्स कॉलेज, लंदन तक जा पहुंचे.’

उन्होंने कहा, ‘जब हस्ताक्षर फोटोकॉपी से मेल खाते हुए मिले, तो मेरे आंसू बह निकले. संग्रहालय के कर्मचारी बहुत उत्साहित थे क्योंकि वे बाइबल के गायब होने के बाद से रुकी हुई पदोन्नति और अनुशासनात्मक कार्रवाई जैसे कई मुद्दों का सामना कर रहे थे.’

जब बाइबिल का पता चला तो सरस्वती महल संग्रहालय के कर्मचारियों ने इंदिरा को फोन करके कहा कि वे उन्हें पार्टी देंगे.

सम्मंदर, थंडमथोट्टम, नादानपुरेश्वर मंदिर | Credit: TN Idol Wing

पुरानी एफआईआर के जरिए मूर्तियों का पता लगाना

आइडल विंग के चेन्नई मुख्यालय में डीजीपी के जयंत मुरली ने कहा कि जब से उन्होंने सितंबर 2021 में पदभार संभाला है, तब से उनकी टीम उन पुरानी एफआईआर के मामलों को निपटा रही है, जो सालों से धूल फांक रही थी. वह बताते हैं,, ‘हमने उन सभी एफआईआर पर काम करना शुरू करने का फैसला लिया.’

उन्होंने कहा कि एक समय था जब आइडल विंग अदालती मामलों में फंस गया. अब विंग एक सप्ताह में एक मामले को हल करता है और  कभी-कभी यह संख्या तीन तक पहुंच जाती है.

मुरली ने कहा कि मूर्ति चोरी रोकने के लिए सभी एजेंसियों को और अधिक संवेदनशील बनाने की जरूरत है. उन्होंने चोल कांस्य की चोरी के तौर-तरीकों के बारे में बताया, जिसमें सदियों पुराने तरीके से तस्करी की जाती है. तस्कर एम्पोरियम से नौ नकली मूर्तियां खरीदेगा, लेकिन वह जिस प्राचीन वस्तु की तस्करी करने का प्रयास कर रहा है, उसके लिए एक सांचा बनाता है. उसे पूरे बैच के लिए निर्यात का प्रमाण पत्र मिलता है और आखिरी मिनट में, वह मोल्ड को हटा देता है और इसे मूल के साथ बदल देता है. मुरली ने कहा, ‘कस्टम इसे पास कर देगा क्योंकि उसके लिए एक प्रमाण पत्र है.’ साथ ही उन्होंने भारत से बाहर भेजे जाने से पहले कलाकृतियों की विशेषज्ञों से जांच कराने की जरूरत को भी रेखांकित किया.

मुरली ने कहा कि पार्वती मूर्ति के मामले में मंदिर और शिकायतकर्ता के पास मूर्ति की तस्वीर नहीं थी. यहां पर पुडुचेरी में फ्रांसीसी संस्थान ने अहम भूमिका निभाई. 1959 में उन्होंने मंदिर के नाम का संकेत देते हुए पार्वती मूर्ति की एक तस्वीर ली थी. टीम ने उस तस्वीर को लिया और व्यवस्थित रूप से ऑनलाइन संग्रहालय कैटलॉग पर जाना शुरू कर दिया: स्मिथसोनियन, एशियन म्यूजियम ऑफ आर्ट, विक्टोरिया और अल्बर्ट.

जब संग्रहालयों से उन्हें कोई लीड नहीं मिली, तो उन्होंने नीलामी घरों की ओर रुख किया. उन्होंने कहा, ‘हमें क्या नजर आया, यह लंदन के बोनहम्स की लिस्ट में मौजूद थी.’ टीम ने नीलामी कंपनी से ली गई इमेज और फ्रांसीसी संस्थान से मिली इमेज को एक विशेषज्ञ को भेजा. विशेषज्ञ ने कहा कि यह दोनों एक जैसी ही हैं. मुरली ने कहा, ‘हमने पिछले एक महीने के अंदर अपनी इस खोज को अंजाम दिया था.’ वह दिप्रिंट को बोनहम्स में मौजूद मूर्ति को दिखाने के लिए अपना आईपैड खोलते हैं. इनके पास फ्रांसीसी संस्थान की इमेज और 3 अगस्त 2022 को विशेषज्ञ से मिला प्रमाण पत्र था.

लेकिन भारत में एक मूर्ति को वापस लाना आसान नहीं है. एक जटिल म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस (एमएलएटी) में कागजी कार्रवाई के पहाड़ से गुजरना पड़ता है. साथ ही विभिन्न घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सरकारी एजेंसियों को भेजे जाने वाले मैसेज. एक बार जब वह वापस मिल जाती हैं तो उन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को सौंप दिया जाता है.

मुरली ने कहा, ‘आम तौर पर वे (एएसआई) हमें सूचित करते हैं, हम मूर्ति लाने जाते हैं, इसे वापस अदालत में भेज दिया जाता है, अदालत मूर्ति को वापस दे देती है और हम इसे मंदिर को दे देते हैं.’

पिछले एक साल में ‘फिर से मिली’ मूर्तियों में से दो मामले अभी भी अदालत में हैं, लेकिन आठ मूर्तियों को संबंधित मंदिरों को सौंप दिया गया है. मंदिर प्राधिकरण मूर्ति को स्वीकार करने से पहले समारोह भी आयोजित करता है.

मुरली ने कहा कि कभी-कभी उस मंदिर का पता लगाना संभव नहीं होता, जहां से मूर्ति चोरी हुई थी. ऐसे मामलों में मूर्ति एक ‘आइकन सेंटर’ में चली जाती हैं. आइकन सेंटर कुंभकोणम में एक टेम्परेचर कंट्रोल स्थान है, जहां खोई हुई मूर्तियां रखी जाती है. इसका चाबियां जिलाधिकारी के पास हैं.


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भारत का पुरावशेष अधिनियम

इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट में विजय कुमार और उनकी टीम ने 2006 में चोरी की कलाकृतियों का पता लगाने के लिए स्वयंसेवकों की एक टीम के साथ गठजोड़ करते हुए, आइडल विंग के साथ मिलकर काम किया था. उन्होंने बताया कि चोल कांस्य को भारतीय कला का सर्वोच्च वॉटरमार्क माना जाता है.

अमूल्य कलाकृतियों की इस तरह की व्यवस्थित लूट औपनिवेशिक युग से चली आ रही है. तब न सिर्फ ब्रिटिश, बल्कि फ्रांसीसी और डच भी भारत के इतिहास के टुकड़े यूरोप में भेजते रहे थे. कुमार ने कहा,  ‘ये औपनिवेशिक लूट थी, लेकिन हम 1920 के दशक में एक ऐसे दौर में आ गए, जब औपनिवेशिक लूट के दौरान जो वापस लिया जा रहा था, उसके कारण भारतीय कला विदेशों में दिखाई देने लगी थी.’

वे कहते हैं कि आज भारत में स्थिति विकट है. किसी भी केंद्रीय एजेंसी को मूर्तियों को वापस लाने का काम नहीं सौंपा गया है. अभी कुछ सालों से कुमार ‘कलेक्टिंग लॉबी कैबल्स’ के एंटीक्विटीज एक्ट 1972 को कमजोर करने के प्रयासों को उजागर करने के लिए ओपिनियन लेख लिख रहे हैं.

मूल रूप से पुरावशेष अधिनियम 1972 के तहत किसी भी ऐसी कलाकृति के पंजीकरण की आवश्यकता होती है जो 100 या अधिक वर्ष पुरानी हो. एक बार पंजीकृत होने के बाद इसका निर्यात नहीं किया जा सकता है. लेकिन भारत के अंदर इसे खरीदा या बेचा जा सकता है. एक कलाकृति के पंजीकृत होने के बाद, एएसआई के पंजीकरण अधिकारी को एक जांच करनी होती है – कि इसे कैसे और कहां रिकॉर्ड किया गया है. लेकिन अगर सरकार को लगता है कि कलाकृति का राष्ट्रीय महत्व है, तो वह बाजार दर पर उसे खरीद सकती है.

2019 में 1972 के अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित किए गए थे. मसौदा विधेयक किसी को भी वेब पोर्टल पर उसका विवरण अपलोड करके प्राचीन वस्तुओं को आयात करने की अनुमति देता है. इसके अलावा इसमें एक घरेलू बिजनेस नेटवर्क बनाने और किसी भी लाइसेंस को खत्म करने का प्रस्ताव किया गया है, जो अब तक पुरावशेषों की बिक्री के लिए जरूरी है.

2019 के एक लेख में कुमार ने तर्क दिया कि यह भारत को, तस्कर की गई कलाकृतियों के लिए एक स्रोत देश बना देगा, बल्कि इसके साथ-साथ यह इनके लिए एक डेस्टिनेशन भी बन जाएगा. मिस्र या इटली जैसे अन्य स्रोत देशों के विपरीत भारत में समर्पित कानून प्रवर्तन एजेंसियां नहीं हैं जो कलाकृतियों की चोरी के मामलों से निपट सकती हों.

कुमार ने 2019 में एक लेख में लिखा था, ‘एएसआई खुद को केवल एक संरक्षक मानता है न कि अधिनियम का प्रवर्तक. देश में एकमात्र समर्पित एजेंसी तमिलनाडु की आइडल विंग है, जिसे सजा पोस्टिंग के तौर पर देखा जाता है और यहां लंबे समय से स्टाफ की कमी है.’ वह आगे लिखते हैं,  ‘कई मामलों में तो एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है, कार्रवाई की तो बात ही छोड़ दें.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि इस नए संशोधन को मंजूरी दे दी गई है, यह संसद में चर्चा के लिए नहीं आया है. अगर सरकार इसे थोड़े समय के लिए भी करती है, तो भी स्थिति अनियंत्रित हो जाएगी.’

‘भगवान का काम’

विजय कुमार उचित दस्तावेजीकरण पर दृढ़ विश्वास रखते हैं और खोजकर्ताओं को कलाकृतियों को सौंपने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. उन्होंने कहा कि इससे कलाकृतियों की चोरी पर अंकुश लगेगा.

लेकिन इंदिरा के लिए ‘दयालु व्यवहार’ ज्यादा मायने रखते हैं. उन्होंने कहा, ‘लोग वास्तव में नहीं जानते हैं कि कलाकृति किसके पास होनी चाहिए और किसके पास नहीं, यह हम पर निर्भर करता है कि हम उन्हें अच्छे ढंग से समझाएं.’

त्रिची में अपनी आखिरी पोस्टिंग में उन्हें तमिलनाडु के सबसे व्यस्त टियर -2 शहरों में से एक में कानून-व्यवस्था बनाए रखनी पड़ी थी. एक नौकरी जिसमें अलग तरह की स्किल की जरूरत होती है. लेकिन यहां लोगों को समझाने का सही तरीका यही है कि उन्हें बताया जाए की उनकी विरासत क्यों महत्वपूर्ण है और वे कैसे व्यक्तिगत तौर पर इसके संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं.

पिछले हफ्ते आइडल विंग ने हिंदू देवी-देवताओं और गणेश की दो प्राचीन मूर्तियों को अमेरिका के संग्रहालयों से खोज निकाला, जिन्हें 40 साल पहले नागपट्टिनम के एक मंदिर से चुराया गया था. तमिलनाडु में छापे और कमजोर नेटवर्क के साथ इंटरनेट पर तलाश से,चोल के समय की कांस्य और बुद्ध की मूर्तियों को वापस लाने की योजना के साथ और कलाकृतियों की तलाश भी की जा रही है.

इंदिरा हंसते हुए बताती हैं, ‘आइडल विंग में कोई भी फिल्मी पुलिस की तरह व्यवहार नहीं करता है’ यहां लोगों में जागरूकता पैदा की जाती है. वह आगे कहती हैं, ‘आखिरकार हम भगवान का काम कर रहे हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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