चेन्नई, तीन फरवरी (भाषा) तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने राज्य को राष्ट्रीय प्रवेश सह पात्रता परीक्षा (नीट) से छूट देने की मांग वाला विधेयक राज्य सरकार को लौटा दिया है। उन्होंने तर्क दिया है कि यह विधेयक ग्रामीण और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के हितों के खिलाफ है।
राजभवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि राज्यपाल ने विधेयक और इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष एम अप्पावु को लौटा दी है।
बयान के मुताबिक, राज्यपाल ‘स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नीट से छूट देने से संबंधित साल 2021 के एलए बिल संख्या 43 और इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन करने तथा सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के लिए मेडिकल प्रवेश में सामाजिक न्याय की नीट पूर्व स्थिति पर गौर फरमाने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यह विधेयक छात्रों, खासकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के हितों के खिलाफ है।
बयान में कहा गया है, ‘इसलिए माननीय राज्यपाल ने तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष को एक फरवरी 2022 को विस्तृत कारण बताते हुए सदन द्वारा दोबारा विचार करने के लिए यह विधेयक वापस कर दिया है।’
बयान के अनुसार, उच्चतम न्यायालय ने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2020) मामले में सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से इस मुद्दे की व्यापक जांच की है और नीट को बरकरार रखा है, क्योंकि यह गरीब छात्रों के आर्थिक शोषण को रोकता है और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है।
राज्यपाल का यह फैसला मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नवंबर में उनसे मुलाकात कर विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आगे बढ़ाने का आग्रह करने के महीनों बाद आया है। इसके अलावा स्टालिन की अध्यक्षता में तमिलनाडु में पिछले महीने हुई एक सर्वदलीय बैठक में फैसला लिया गया था कि नीट के खिलाफ साझा कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।
तमिलनाडु में नीट के विरोध को भावनात्मक समर्थन भी मिल रहा है, क्योंकि परीक्षा में कम अंक हासिल करने या फेल होने की आशंकाओं को लेकर राज्य में चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के इच्छुक कई छात्र कथित तौर पर आत्महत्या कर चुके हैं।
राज्य में नीट को रद्द करने की तेज होती मांग के बीच पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार ने तमिलनाडु को नीट के दायरे से बाहर रखने के लिए विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया था।
मई 2021 में सत्ता में आने वाली द्रमुक ने भी चुनाव प्रचार में नीट से छूट दिलाने का वादा किया। भाजपा को छोड़कर तमिलनाडु में सारे राजनीतिक दल नीट के खिलाफ हैं।
इस बीच, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के सांसद अंबुमणि रामदास ने राज्य विधानसभा की तत्काल बैठक बुलाकर नीट के खिलाफ एक बार फिर विधेयक को पारित कर राज्यपाल को भेजने का आह्वान किया।
बिल लौटाने के रवि के फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए रामदास ने ट्वीट किया, ‘यह अस्वीकार्य है कि राज्यपाल ने इसे ग्रामीण और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के हितों के खिलाफ बताया है। उनका निर्णय सामाजिक न्याय के खिलाफ है।’
वहीं, तमिलनाडु में भाकपा के सचिव आर मुथारासन ने भी राज्यपाल के फैसले पर आपत्ति जताई और इसे राज्य के लोगों की भावनाओं के खिलाफ बताया।
उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, ‘तमिलनाडु के छात्रों के कल्याण और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को एक बार फिर राज्यपाल को प्रस्ताव भेजना चाहिए।’
भाषा पारुल उमा
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