चेन्नई, 27 जनवरी (भाषा) तमिलनाडु सरकार ने राज्य में तीन-भाषा नीति लागू करने का विचार बृहस्पतिवार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वहां प्रभावी दो-भाषा (तमिल और अंग्रेजी) नीति योग्यता या अवसरों की उपलब्धता के लिहाज से छात्रों के सामने कोई बाधा पेश नहीं करती। राज्य सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि से नीट छूट विधेयक को जल्द से जल्द राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजने की मांग भी की।
गणतंत्र दिवस से जुड़े संबोधन में तमिलनाडु की जनता को अन्य भारतीय भाषाएं सीखने का मौका देने संबंधी राज्यपाल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हए राज्य के तमिल आधिकारिक भाषा, संस्कृति और उद्योग मामलों के मंत्री थंगम थेन्नारासू ने कहा, ‘जो लोग तमिलनाडु में भाषा को लेकर हुए विरोध-प्रदर्शनों के इतिहास से वाकिफ हैं, वे समझेंगे कि ‘अन्य भारतीय भाषाओं’ का मतलब सिर्फ हिंदी को थोपने के केंद्र के एजेंडे को पूरा करना होगा।’
मंत्री ने कहा, ‘इस तरह की टिप्पणी का अर्थ तमिलनाडु में तीन-भाषा नीति की वकालत करना है।’ उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि राज्य 1967 में दिवंगत मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई के दौर से ही तमिल और अंग्रेजी की दो-भाषा नीति का पालन कर रहा है।
थेन्नारासू ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि राज्यपाल इस बात को समझेंगे कि दो-भाषा नीति छात्रों के लिए किसी भी रूप में बाधा नहीं रही है, फिर चाहे वो उनकी शिक्षा का मामला हो या फिर अवसरों की उपलब्धता का।’
राज्यपाल ने अपने संबोधन में यह भी कहा था कि नीट से पहले सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के मामले में सरकारी स्कूलों के छात्रों की हिस्सेदारी मुश्किल से एक फीसदी थी। उन्होंने दावा किया था कि सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण की प्रभावी व्यवस्था करने से इस संख्या में सुधार हुआ है।
हालांकि, थेन्नारासू ने दावा किया कि नीट पास करने वाले छात्रों के लिए 7.5 प्रतिशत कोटा ‘अस्थाई’ है और इससे छात्रों को इस परीक्षा में होने वाले भेदभाव से पार पाने में कुछ हद तक मदद मिलेगी।
उन्होंने राज्यपाल से मेडिकल दाखिलों में तमिलनाडु को नीट से छूट देने के राज्य विधानसभा के विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आगे बढ़ाने की मांग की।
भाषा पारुल उमा
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