चेन्नई, 30 मार्च (भाषा) पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के संस्थापक एस रामदास ने रविवार को कहा कि तमिलनाडु सरकार को ऐसे पद सृजित करने चाहिए, जो प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में सिर्फ तमिल पढ़ाने के लिए हों, जैसा कि सरकारी उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में किया जा रहा है।
रामदास ने कहा कि तमिलनाडु में बीए, एमए, एमफिल, पीएचडी और बीएड पाठ्यक्रमों में तमिल को मुख्य विषय के रूप में पढ़ने वाले 50,000 से अधिक लोगों के पास या तो रोजगार के अवसर नहीं हैं या वे ऐसी नौकरियां कर रहे हैं, जो उन्हें पसंद नहीं हैं, इसीलिए वे परेशान हैं।
पीएमके नेता ने आरोप लगाया कि 25 वर्ष से अधिक समय पहले स्नातक करने वाले कई लोगों को नौकरी नहीं मिल पाई और ऐसी दुखद स्थिति के लिए तमिलनाडु सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली ‘‘तमिल भाषा विरोधी’’ नीतियां जिम्मेदार हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘तमिलनाडु में सरकारी विद्यालयों में तमिल को अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। हालांकि, आठवीं कक्षा तक तमिल पढ़ाने के लिए अलग से तमिल शिक्षकों के पद सृजित नहीं किए गए हैं। इसी तरह, निजी विद्यालयों में भी इन कक्षाओं के लिए तमिल शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है।’’
रामदास ने एक बयान में आरोप लगाया कि ‘‘तमिलनाडु में तमिल शिक्षकों को नौकरी के अवसर न मिलने का यही कारण है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तमिलनाडु सरकार को सरकारी उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की तरह प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में भी तमिल शिक्षण के लिए विशेष पद सृजित करने चाहिए। तमिल को निजी विद्यालयों में भी अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसे में तमिल शिक्षकों की नियुक्ति वहां भी की जानी चाहिए और भर्तियां सरकार के माध्यम से की जानी चाहिए तथा उनका वेतन सरकारी विद्यालय के शिक्षकों के बराबर होना चाहिए।’’
रामदास ने कहा, ‘‘मैं तमिलनाडु सरकार से आग्रह करता हूं कि वह उन तमिल शिक्षकों को 10,000 रुपये की मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करे, जिनके पास पांच वर्षों से अधिक समय से नौकरी नहीं है।’’
भाषा खारी पारुल
पारुल
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.