नई दिल्ली: अफगानिस्तान में 20 वर्षों से जारी जंग से अमेरिकी और नाटो बलों की औपचारिक रूप से वापसी के महज कुछ सप्ताह पहले तालिबान ने शुक्रवार को चार और प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा कर लिया है. इसके साथ ही अफगानिस्तान के समूचे दक्षिणी भाग पर तालिबान का नियंत्रण हो गया है और अब धीरे-धीरे काबुल की तरफ बढ़ रहा है.
तालिबान ने देश के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े शहर – पश्चिम में हेरात और दक्षिण में कंधार पर नियंत्रण के बाद तालिबान ने हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्करगाह पर कब्जा कर लिया है. लगभग दो दशक के युद्ध के दौरान हेलमंद में सैकड़ों की संख्या में विदेशी सैनिक वहां मारे गए थे.
इसी बीच भारत सहित कई देशों ने घोषणा की है कि वो अफगानिस्तान में ताकत के बल पर थोपी गई सरकार को मान्यता नहीं देंगे.
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अफगान शांति प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत
भारत, जर्मनी, कतर, तुर्की और कई अन्य देशों ने कहा है कि वे अफगानिस्तान में ऐसी किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देंगे जिसे सैन्य बल के माध्यम से थोपा जाता है. इन देशों ने युद्धग्रस्त देश में हिंसा एवं हमलों को तुरंत समाप्त करने की अपील की.
दोहा में अफगानिस्तान को लेकर दो अलग-अलग बैठक के बाद कतर द्वारा जारी बयान के अनुसार बैठक में हिस्सा लेने वाले देश इस बात से सहमत थे कि अफगान शांति प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है क्योंकि यह ‘काफी जरूरी’ मामला है.
यह बयान तब आया है जब तालिबान ने पिछले कुछ दिनों में कंधार और हेरात सहित कई मुख्य शहरों पर कब्जा कर लिया है और देश में वह बड़े हिस्से पर कब्जा करता जा रहा है.
इसने कहा कि हिस्सा लेने वाले देशों ने तालिबान और अफगान सरकार से अपील की कि विश्वास बनाएं और राजनीतिक समाधान तक पहुंचने का प्रयास करें और जल्द से जल्द संघर्षविराम हो.
कतर के विदेश मंत्रालय ने बताया कि पहली बैठक में चीन, उज्बेकिस्तान, अमेरिका, पाकिस्तान, ब्रिटेन, कतर, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ ने हिस्सा लिया.
इसने कहा कि 12 अगस्त को हुई दूसरी बैठक में जर्मनी, भारत, नॉर्वे, कतर, तजाकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
कतर की तरफ से आयोजित दूसरी बैठक में विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान शाखा के संयुक्त सचिव जे. पी. सिंह ने हिस्सा लिया.
कतर के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हिंसा, काफी संख्या में नागरिकों के मारे जाने और न्यायेत्तर हत्याओं, व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनों, प्रांतीय राजधानियों एवं शहरों पर हो रहे हमलों को लेकर बैठक में शामिल प्रतिभागियों ने गंभीर चिंता जताई.’
इसने कहा कि देशों ने पुष्टि की कि वे सैन्य ताकत से अफगानिस्तान में थोपी गई सरकार को मान्यता नहीं देंगे.
बयान में बताया गया, ‘भाग लेने वाले देशों ने स्वीकार्य राजनीतिक समाधान पर पहुंचने के बाद अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोग करने की प्रतिबद्धता जताई.’
भाषा के इनपुट्स के साथ
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