scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होमदेशभारत के प्रति चीन की दुश्मनी का रिकॉर्ड उसके 'वुल्फ वॉरियर्स डिप्लोमेसी’ को दर्शाता है: ताइवान राजदूत

भारत के प्रति चीन की दुश्मनी का रिकॉर्ड उसके ‘वुल्फ वॉरियर्स डिप्लोमेसी’ को दर्शाता है: ताइवान राजदूत

दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में ताइवान के राजदूत चुंग क्वांग त्येन का कहना है कि चीन के प्रति भारत की अनुकूल भू-राजनीतिक रियायतें का कोई प्रतिफल नहीं है.

Text Size:

नई दिल्ली: ताइवान के राजदूत चुंग क्वांग त्येन का कहना है कि चीन ने अपने ‘वुल्फ वॉरियर्स डिप्लोमेसी’ के कारण सीमा विवादों, व्यापार घाटे और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में नई दिल्ली के हितों को दरकिनार करके ‘वन-इंडिया पॉलिसी’ को लगातार कमज़ोर किया है.

ईमेल पर दिप्रिंट के लिए एक विशेष साक्षात्कार में भारत में ताइवान के राजदूत चुंग क्वांग त्येन ने कहा, ‘भारत के प्रति दुश्मनी का चीन का रिकॉर्ड इसकी वुल्फ वॉरियर्स डिप्लोमेसी को दर्शाता है. इसने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, क्षेत्रीय संप्रभुता, सीमा संघर्ष, काउंटर ग्लोबल आतंकवाद, हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में विस्तारित समुद्री नीतियों और विशाल व्यापार घाटे में भारत के महत्वपूर्ण हितों को लगातार कम किया है.’

वुल्फ वॉरियर और वुल्फ वॉरियर 2 चीनी एक्शन ब्लॉकबस्टर है, जो चीनी विशेष ऑपरेशन बलों को दिखाते हैं. उन्होंने चीनी दर्शकों के बीच देशभक्ति को बढ़ावा दिया है. इन फिल्मों के नाम पर वुल्फ वॉरियर्स डिप्लोमेसी का नाम दिया गया है, यह चीनी राजनयिकों द्वारा चीन के राष्ट्रीय हितों की रक्षा का वर्णन करता है.

राजदूत चुंग क्वांग त्येन ने याद किया कि जून 2014 में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच एक बैठक के दौरान भारत ने चीन से कहा था कि यदि बीजिंग नई दिल्ली से उम्मीद करता है कि वह अपनी-वन-चाइना पॉलिसी’ का सम्मान करे तो उसे भी ‘वन-इंडिया पॉलिसी’ का पारस्परिक और सम्मान देना चाहिए.

चुंग क्वांग त्येन का कहना है कि ‘मंत्री स्वराज की वन-इंडिया नीति कई भारतीयों के लंबे समय के संदेह का प्रतिनिधित्व करता है कि चीन के प्रति इसके अनुकूल भू-राजनीतिक रियायतें और इशारों ने कोई पारस्परिकता नहीं पैदा की है. इसलिए, भारत को चीन के साथ अपने राजनीतिक संबंधों में इशारों और रियायतों की सख्त पारस्परिकता सुनिश्चित करनी चाहिए.’

‘वन-चाइना पॉलिसी’ के तहत, भारत 1949 से ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देता है, न कि एक अलग देश के रूप में, नई दिल्ली केवल ताइपे के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध रखता है. चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद भी इसने अपना रुख नहीं बदला.’

भारत में ताइवान के राजदूत चुंग क्वांग त्येन भारत में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र के प्रतिनिधि हैं.

उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के इशारे पर भाजपा के दो सांसदों मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वां के पिछले महीने ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने की सराहना की, जिसका चीन ने विरोध किया.

चुंग क्वांग त्येन का कहना है कि ‘यह साझा भावना के साथ है कि ताइवान और भारत वैश्विक मुद्दों के लिए साझा मूल्यों और चिंताओं के गठबंधन में शामिल हैं. ताइवान भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक अनिवार्य साझेदार होगा.’

ताइवान विश्व स्वास्थ्य संगठन का हिस्सा बनना चाहता है

चुंग क्वांग त्येन ने यह उम्मीद भी जताई कि जब नई दिल्ली बहुपक्षीय स्वास्थ्य निकाय के कार्यकारी बोर्ड की कुर्सी ग्रहण करता है, तो भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में ‘ताइवान के मूल्य पर गंभीरता से ध्यान देगा.’

उन्होंने कहा, ‘हम आश्वस्त हैं कि जिस तरह ताइवान को भारत में हाल ही में आम जनता, विद्वानों और मीडिया से जबरदस्त समर्थन मिला है, भारत सरकार गंभीरता से ताइवान के डब्ल्यूएचओ का हिस्सा होने पर गौर करेगी. हम निश्चिंत हैं कि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कर्तव्य करेगा.’

2009-2016 के पर्यवेक्षक के रूप में डब्लूएचओ की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में ताइवान ने भाग लिया. लेकिन 2016 के बाद से चीन ने उसकी भागीदारी को अवरुद्ध कर दिया है, जब राष्ट्रपति त्साई ने ताइवान की स्वतंत्र पहचान को संरक्षित करने की कसम खाई थी.

डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने बहुपक्षीय संगठन के साथ अमेरिका के संबंधों को समाप्त करने की घोषणा करने से पहले, कोविड -19 महामारी पर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के साथ वाशिंगटन ने डब्ल्यूएचओ में ताइवान की पुरानी स्थिति को बहाल करने के लिए अपने राजनयिक उपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

पिछले महीने, अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ की पिछले डब्ल्यूएचए बैठक में भाग लेने के लिए ताइवान को आमंत्रित नहीं करने के लिए डब्ल्यूएचओ की कड़ी आलोचना की थी, जो कि 17-18 मई को हुई थी, जिसमें डब्ल्यूएचओ पर चीन के ‘दबाव’ में आने का आरोप लगाया गया था.

राजदूत ने कहा, ‘कोविड-19 की स्थिति गतिशील बनी हुई है और डब्ल्यूएचओ में भाग लेने में असमर्थ होने के कारण वायरस और महामारी की रोकथाम पर पूर्ण और समय पर जानकारी प्राप्त करने और वर्तमान विनाशकारी स्थिति के तहत सबसे अधिक पीड़ित देशों के साथ हमारे अनुभव में योगदान करने की ताइवान की क्षमता को गंभीरता से प्रभावित करता है. डब्ल्यूएचओ को स्थिति की गंभीरता को पहचानना चाहिए और जल्द से जल्द ताइवान की पूर्ण भागीदारी की अनुमति देनी चाहिए.’

उन्होंने कहा कि 2003 में सार्स से निपटने के अपने अनुभव के कारण ताइवान की चीन के निकट होने के बाद भी अब तक 500 मामलों को रखने में सक्षम है.

उन्होंने कहा, ‘हमने महामारी नियंत्रण और बेहतर परीक्षण और क्वारंटाइन के महत्व को सीखा है और जितनी जल्दी हो सके एक केंद्रीय महामारी कमान केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है. अनुभव ने ताइवान को सिखाया कि तेज़ी से कार्य करना और उन्नत तैनाती सुनिश्चित करना एक महामारी के प्रसार को रोकने की कुंजी है.

ताइवान की ‘न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ के लिए भारत कुंजी

राजदूत चुंग क्वांग त्येन के अनुसार, भारत उनकी ‘न्यू साउथबाउंड पॉलिसी’ (एनएसपी) के तहत एक प्रमुख देश बना हुआ है.

2016 में राष्ट्रपति त्साई द्वारा एनएसपी को रोल आउट किया गया था और इसका उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्र के साथ ताइवान के संबंधों को मजबूत करना है.

उन्होंने कहा, ‘भारत हमारी न्यू साउथबाउंड पॉलिसी में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण देश है. भारत और ताइवान के बीच व्यापार, निवेश और उद्योग के क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग हाल के वर्षों में बहुत करीब रहा है … हम प्रौद्योगिकी, संस्कृति और वाणिज्य जैसे क्षेत्रों में क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ आदान-प्रदान और सहयोग को व्यापक बनाएंगे और विशेष रूप से भारत के साथ हमारे गतिशील संबंधों का विस्तार करेंगे.

भारत और ताइवान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2018 में 7.05 बिलियन डॉलर पहुंच गया जो कि 2001 में 1.19 बिलियन डॉलर था. भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली, भौगोलिक स्थिति और जनसांख्यिकी लाभांश ताइवान और भारत के बीच आर्थिक विकास और सहयोग के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. भविष्य में ताइवान भारत में निवेश करना जारी रखेगा.

चीन और ताइवान को सह-अस्तित्व का रास्ता खोजना होगा

आगे चीन और ताइवान के बीच संबंधों के मुद्दे पर राजदूत ने कहा कि संबंध ‘ऐतिहासिक मोड़’ पर पहुंच गए हैं.

उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्षों का कर्तव्य है कि वे दीर्घावधि में सह-अस्तित्व का मार्ग खोजें और प्रतिपक्षी और मतभेदों की तीव्रता को रोकें. हम ताइवान को डाउनग्रेड करने के लिए बीजिंग के एक देश, दो प्रणालियों के उपयोग को स्वीकार नहीं करेंगे. हम इस सिद्धांत पर अडिग रहेंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि वह चीन के साथ बातचीत में शामिल होने और क्षेत्रीय सुरक्षा में अधिक ठोस योगदान देने के लिए तैयार हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments