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शनिवार, 17 मई, 2025
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स्वामीनाथन ने नवाचार, समर्पण से लेकर टिकाऊ कृषि तक की विरासत छोड़ी है : वैज्ञानिकों ने कहा

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नयी दिल्ली, 28 सितंबर (भाषा) प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन का निधन वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है, लेकिन उनकी विरासत बनी रहेगी और सतत खाद्य सुरक्षा एवं कृषि नवाचार की ओर विश्व को ले जाना जारी रखेगी। वैज्ञानिकों ने यह बात कही।

देश की ‘हरित क्रांति’ में अहम योगदान देने वाले स्वामीनाथन का बृहस्पतिवार को चेन्नई में निधन हो गया। वह 98 वर्ष के थे।

मनीला मुख्यालय से संचालित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) से संबद्ध कृषि वैज्ञानिक रंजीता पुष्कर ने कहा, ‘‘कई वर्षों के उनके अपार योगदान से हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काफी लाभान्वित हुए हैं। भारत में हरित क्रांति के बगैर, जिसका उन्होंने नेतृत्व किया, हम खाद्य सुरक्षा हासिल नहीं कर पाते।’’

पुष्कर ने कहा कि उनका (स्वामीनाथन का) निधन वैज्ञानिक समुदाय, और विशेष रूप से कृषि समुदाय के लिए एक बड़ा नुकसान है।

पुष्कर ने कहा, ‘‘वह आईआरआरआई के महानिदेशक थे और उनकी विरासत ने संगठन और इसके शोधार्थियों का आज तक मार्गदर्शन किया है…उनकी मानसिक स्फूर्ति और बौद्धिक जिज्ञासा पिछले कुछ वर्षों में भी पहले जैसी ही उच्च थी और शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद भी उन्होंने अब तक मार्गदर्शन किया। इस क्षति पर दुनिया भर के कृषि क्षेत्र के प्रति हमारी गहरी संवेदनाएं हैं!’

विशेषज्ञों ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में क्रांति लाने और सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने करने वाले स्वामीनाथन ने नवाचार एवं टिकाऊ कृषि के प्रति समर्पण की एक विरासत छोड़ी है।

इन लोगों का एक स्वर में यह मानना है कि कृषि क्षेत्र में उनका योगदान एक प्रकाश स्तंभ के रूप में काम करेगा, सतत खाद्य सुरक्षा और कृषि नवाचार की ओर विश्व को ले जाएगा।

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के दक्षिण एशिया क्षेत्र की समन्वयक ममता प्रधान ने कहा कि स्वामीनाथन एक दूरदृष्टा थे, एक प्रेरक थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उनके साथ 2007 से 2014 तक काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, जब हमने भोजन और पोषण सुरक्षा के लिए एक गठबंधन बनाया था।’’

प्रधान ने कहा, ‘‘उन्होंने वास्तव में भारतीय कृषि में क्रांति ला दी। भारत जब खाद्य असुरक्षा के खतरे से जूझ रहा था, तब उन्होंने खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में काम किया और देश को खाद्यान्न आयातक से प्रमुख निर्यातक में तब्दील कर दिया। वह हमेशा टिकाऊ कृषि और किसानों के जीवन में सुधार के लिए समाधान तलाशते रहते थे।’’

स्वामीनाथन का जन्म तमिलनाडु के कुंभकोणम में सात अगस्त 1925 को हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके पिता की भागीदारी और महात्मा गांधी के प्रभाव ने कृषि विज्ञान के क्षेत्र में काम करने का उनके अंदर जुनून पैदा किया।

उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ करीबी रूप से काम किया और हरित क्रांति की सफलता में एक अहम भूमिका निभाई।

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के पूर्व सचिव जे जस्टिन मोहन ने कहा कि कृषि नीतियों और योजनाओं को तैयार करने में स्वामीनाथन के योगदान ने न केवल भारत, बल्कि विश्व के अन्य देशों की भी मदद की।

केरल के मुख्य वन संरक्षक मोहन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘श्रीलंका में सशस्त्र संघर्ष की समाप्ति के बाद वहां के किसानों की सहायता के लिए और केरल में एक आर्द्रभूमि विकास परियोजना, कुट्टनाड पैकेज को लागू करने के दौरान उनके साथ काम करने का मुझे अवसर मिला, जिसकी परिकल्पना उन्होंने ही की थी।’’

मोहन ने कहा, ‘‘समय से आगे के और परिणाम देने के प्रति लक्षित उनके विचार बहुत व्यावहारिक थे, जिसने अनाज, दालों, मोटा अनाज, फल और सब्जियों के उत्पादन बढ़ाने में मदद की। उदाहरण के तौर पर, किसानों के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड का सुझाव कुट्टनाथ परियोजना के तहत उन्होंने ही 2008 में पहली बार दिया था। इसे बाद में पूरे देश में केंद्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के रूप में 2014-15 के दौरान लागू किया गया।’’

पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में, विश्व को स्वामीनाथन के अपार योगदान को लेकर उनका आभार जताया।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) नई दिल्ली की निदेशक ने पोस्ट में कहा, ‘‘ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। हम आपके नेतृत्व, आपकी अंतर्दृष्टि और आपके समर्थन को बहुत याद करेंगे। सीएसई के अध्यक्ष के रूप में आपने हमें ताकत दी और आपने हमें विनम्रता एवं मानवतावाद का महत्व बताया। हमारे और दुनिया के लिए आपने जो कुछ भी किया, उसके लिए धन्यवाद।’’

एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के एक बयान के अनुसार, इसकी स्थापना करने वाले स्वामीनाथन ने सतत कृषि की पैरोकारी की तथा हरित से ‘सदा हरित’ क्रांति की ओर बढ़ने का समर्थन किया।

फाउंडेशन में जलवायु परिवर्तन विषयों के सीनियर फेलो टी जयरमण ने बृहस्पतिवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘प्रोफेसर स्वामीनाथन को मिले कई पुरस्कारों में सबसे बेशकीमती पुरस्कार उनके जीवनकाल में उन्हें लाखों भारतीय किसानों का मिला सम्मान और स्नेह है।’’

भाषा सुभाष वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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