नई दिल्ली: भारतीय लोगों के पास कितना काला धन है. इस बात को लेकर चली आ रही कवायद जल्द ही खत्म हो सकती है. कम से कम शुरुआत में कुछ सांसदों के बारे में तो. मोदी सरकार ने फाइनेंस पर 2017 में संसदीय स्थायी समिति को काले धन पर तीन रिपोर्ट दिए थे, लेकिन समिति के अध्यक्ष एम वीरप्पा मोइली को इसके सदस्यों के साथ खुलासा करने से ‘रोक’ दिया था.
पिछले दिनों फाइनेंस बिल पर चर्चा के दौरान बीजू जनता दल के सांसद भर्तृहरि महताब ने लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया था, तब वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट सदस्यों के लिए उपलब्ध थी, लेकिन इसे सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं डाला जा सकता था.
संसदीय कमेटी गुरुवार को यह तय करने के लिए बैठक करेगी कि कालेधन की अनुमानित राशि पर सरकारी रिपोर्ट्स इसके सदस्यों-(31 सांसद)- तक पहुंचनी चाहिए.
समिति के अध्यक्ष मोइली ने सोमवार शाम दिप्रिंट को बताया, ‘हम 21 फरवरी को इस पर चर्चा करेंगे,’ लेकिन विस्तार से इस पर बताने से इनकार कर दिया.
भाजपा का समर्थन
काले धन की संभावनाओं पर इन रिपोर्ट्स की को सार्वजनिक करने में भाजपा सांसदों की इच्छा है कि स्थायी समिति में इस पर ‘सूचित बहस’ हो. भाजपा के एक संसदीय पैनल के सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘यह काला धन कांग्रेस के शासन के दौरान जमा हो गया था. हमारे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है. समिति द्वारा चर्चा की जा रही इन रिपोर्ट्स पर हमें कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए?’
एक बार जब सांसद इन रिपोर्ट्स के निष्कर्षों पर बहस करते हैं, तो उन्हें समिति की अंतिम रिपोर्ट में जगह मिलने की संभावना होती है, जो संसद में पेश होने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र में आती है. पहले भी भाजपा सांसदों ने संसदीय समितियों में ड्राफ्टिंग स्टेज में ही जीडीपी संख्या और डिमोनेटाइजेशन पर रिपोर्ट को रोक दिया था, जिससे शायद सरकार की निंदा भी हुई.
पिछले अक्टूबर में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में आकलन समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जीडीपी का अनुमान लगाने के लिए अपनाई गई नई कार्य प्रणाली की समीक्षा की सिफारिश के लिए एक मसौदा तैयार करना था, लेकिन निशांत दूबे के नेतृत्व वाले भाजपा सांसदों के कड़े विरोध के कारण इसे नहीं अपनाया जा सका.
इससे पहले, उन्होंने भाजपा के सांसदों को मोइली के नेतृत्व वाले पैनल द्वारा डिमोनेटाइजेशन पर एक मसौदा रिपोर्ट को अपनाने से रोकने का नेतृत्व किया था, जो अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के संदर्भ में सरकार के फैसले के लिए महत्वपूर्ण था.
रिपोर्ट
सरकार ने काले धन पर तीन रिपोर्टों पर अपनी स्टडी को वित्त समिति के अध्यक्ष मोइली को जुलाई 2017 में दिया था लेकिन उन्हें सदस्यों के साथ साझा नहीं किया गया था. संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने 2011 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च एंड नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस मैनेजमेंट के जिरये इन पर अध्ययन शुरू कराया था. इनमें से एक रिपोर्ट तत्कालीन यूपीए सरकार को सौंपी गई थी जबकि अन्य दो को एनडीए सरकार को मई 2014 में सत्ता में आने के कुछ ही हफ्ते बाद पेश किया गया था.
इन अध्ययनों के निष्कर्षों के बारे में जानने वालों का कहना है कि काले धन के बारे में उनका अनुमान ‘बहुत व्यापक’ है और किसी भी निश्चित नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है. हालांकि, इस पर एक बहस इस चुनावी मौसम में राजनीतिक लाभ लेने के लिए की जा सकती है.
भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में काले धन को एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था, तब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के दौरान वादा किया था कि विदेशों में जमा काला धन अगर वापस आ जाए तो हर एक गरीब व्यक्ति को 15-20 लाख रुपये मिल जाएंगे.
विपक्षी दल, इस वादे को पूरा करने में अपनी विफलता के लिए मोदी पर कटाक्ष कर रहे हैं.
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