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Tuesday, 19 November, 2024
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बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. 

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए लिए मंगलवार को सहमत हो गया.

बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

जस्टिस एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले में दोषियों को सजा में दी गई छूट और उसके कारण उनकी रिहाई के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और वकील अपर्णा भट की दलीलों पर संज्ञान लिया.

सिब्बल ने कहा, ‘हम सिर्फ छूट को चुनौती दे रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश ठीक है. हम उन सिद्धांतों को चुनौती दे रहे हैं जिनके आधार पर छूट दी गई.’

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले गुजरात सरकार से छूट की याचिका पर विचार करने को कहा था.

गौरतलब है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस पर हमले और 59 यात्रियों, मुख्य रूप से ‘कार सेवकों’ को जलाकर मारने के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान तीन मार्च, 2002 को दाहोद में भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी. मरने वालों में बिल्कीस बानो की तीन साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी. घटना के समय बिल्कीस बानो गर्भवती थी और वह सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई थी. इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम कैद की सजा सुनाई गई थी.

माफी नीति के तहत गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को माफी दिए जाने के बाद, बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को, 15 अगस्त को गोधरा के उप कारागार से रिहा कर दिया गया था, जिसकी विपक्षी पार्टियों ने कड़ी निंदा की है.

मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को सभी 11 आरोपियों को बिल्कीस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या और उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी. बाद में इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था.

इन दोषियों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के विचार करने के बाद रिहा किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से वर्ष 1992 की क्षमा नीति के तहत दोषियों को राहत देने की अर्जी पर विचार करने को कहा था.

इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कारावास की सजा काट ली थी जिसके बाद एक दोषी ने समयपूर्व रिहा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था.

भाषा के इनपुट से


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