नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट 2002 गोधरा दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के लोगों की हत्या के 11 दोषियों को समय पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई करेगी.
गुजरात सरकार ने पिछले साल 10 अगस्त को इन दोषियों को सजा से छूट दे दी थी जिसके बाद उन्हें 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया था. न्यायमूर्ति केएम जोसफ और बीवी नागरत्ना की पीठ आज यानि 27 मार्च को सुनवाई करेगी.
22 मार्च को, भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि याचिकाओं की सुनवाई के लिए वह एक पीठ गठित करेंगे. ‘मुझे बेंच बनाना होगा. इसके लिए दो बेंच ब्रेक करने की जरूत है. इस पर आज शाम को विचार करेंगे.’ उन्होंने ये बातें बानो की ओर से पेश अधिवक्ता शोभा गुप्ता द्वारा मामले को जल्द सूचीबद्ध करने की याचिका पर कहा था.
इससे पहले एडवोकेट गुप्ता ने मामले को अर्जेंट सुनवाई करने का जिक्र किया था और कहा था कि सीजीआई द्वारा एक नई पीठ बनाने की जरूरत है, जब याचिक पर जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.
जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने इससे पहले आदेश दिया था कि मामले को बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए, जिसमें की अब जस्टिस त्रिवेदी के खुद को सुनवाई से अलग कर लेने के बाद अब वह इसका हिस्सा नहीं हैं.
दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ दायर याचिका के अलावा, बानो ने भी इस आदेश को लेकर एक समीक्षा याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने गुजरात सरकार से इन दोषियों में से एक पर विचार करने की मांग की थी. वह समीक्षा याचिका खारिज कर दी गई थी.
दायर जनहित याचिकाएं, जिसमें 11 दोषियों को दी गई छूट को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है. ये याचिकाएं नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, जो एनी राजा की महासचिव हैं, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) की सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाउल, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर रूपा रेखा वर्मा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से फइल की गई हैं.
गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में दोषियों को छूट देने का बचाव किया था, यह कहते हुए कि वे 14 साल जेल में पूरा कर चुके हैं और उनका ‘व्यवहार अच्छा पाया गया’. राज्य सरकार ने कहा था कि उसने 11 दोषियों के मामलों पर 1992 की नीति तहत विचार किया और 10 अगस्त 2022 को छूट दे दी, और केंद्र सरकार ने भी दोषियों को समय पूर्व रिहाई की मंजूरी दे दी थी.
हलफनामे कहा गया है, ‘राज्य सरकार ने सभी तरह की राय पर विचार किया और 11 कैदियों को 14 साल की सजा पूरी होने और जेलों में उनका व्यवहार अच्छा पाए जाने के बाद उन्हें रिहा करने का फैसला किया गया.’
सरकार ने इस फैसले को चुनौती देने वाले याचिकार्ताओं द्वारा फाइल पीआईएल पर सुनवाई के अधिकार पर भी सवाल उठाया था, यह कहते हुए कि मामले को लेकर वे बाहरी हैं.
याचिका में कहा गया है कि उन्होंने गुजरात सरकार के प्राधिकारी के आदेश में छूट देने को चुनौती दी है, जिसके जरिए गुजरात में किए गए कई जघन्य अपराधों में दोषी 11 लोगों को 15 अगस्त, 2022 को रिहा करने की मंजूरी दी गई.
याचिकाओं में कहा गया है कि इस जघन्य अपराध में छूट जो कि पूरी तरह जनहित के खिलाफ और सामूहिक तौर पर सार्वजनिक चेतना को झकझोर देने वाला है, क्योंकि यह पूरी तरह पीड़िता के हित के खिलाफ है (जिनके परिवार ने सार्वजनिक रूप से एक बयान में अपनी सुरक्षा को लेकर चिंताजनक जाहिर की है).
गुजरात सरकार ने 11 दोषियों, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली थी, को 15 अगस्त को रिहा कर दिया था. मामले के सभी 11 आजीवन कारावास के दोषियों को 2008 की गुजरात छूट नीति के अनुसार रिहाई दी गई थी.
मार्च 2002 में गोधरा दंगे के बाद, बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उन्हें परिवार के 14 सदस्यों के साथ उनकी 3 साल की बच्ची के साथ मरा समझकर छोड़ दिया गया था. दंगाईयों ने जब उनके परिवार हमला बोला था तब वह 5 महीने की गर्भवती थीं.
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