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Sunday, 8 December, 2024
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भारत का $1 ट्रिलियन की डिजिटल अर्थव्यवस्था का सपना, पर 73% युवाओं को बेसिक ईमेल की समझ नहीं : NSSO

15-29 की उम्र के बीच के ज्यादातर उत्तरदाताओं ने बुनियादी कंप्यूटर कार्यों को करने में असमर्थता जाहिर की. इस महीने जारी की गई सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 73 फीसदी युवाओं में ईमेल कौशल की कमी है. वहीं 3 फीसदी से कम ने कहा कि वे कोडिंग कर सकते हैं.

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नई दिल्ली : भारत 2025 तक एक ट्रिलियन-डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन ज्यादातर युवा भारतीयों को यह भी पता नहीं है कि ई-मेल अटैचमेंट कैसे भेजना है या कंप्यूटर के बाकी बुनियादी कार्यों को कैसे करना है. इस महीने की शुरुआत में जारी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की हालिया मल्टीपल इंडिकेटर सर्वे (MIS) रिपोर्ट से यह बात निकलकर सामने आई है.

सर्वे 20220-21 में किया गया था और इसमें देशभर से कुल 11 लाख से ज्यादा उत्तरदाताओं ने भाग लिया था. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तत्वावधान में NSSO सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के विभिन्न राष्ट्रीय संकेतकों पर डेटा एकत्र करना है. इन विकास लक्ष्यों में आर्थिक विकास हासिल करना, जलवायु परिवर्तन ध्यान में रखते हुए और पर्यावरण संरक्षण की देखभाल करते हुए सामाजिक जरूरतों को पूरा करना शामिल है.

15-29 उम्र के बीच के लोगों के सूचना और संचार तकनीक (आईसीटी) कौशल का पता लगाने के लिए सर्वे ने उत्तरदाताओं से खुद से यह बताने के लिए कहा कि क्या वे कंप्यूटर पर नौ गतिविधियां कर सकते हैं. रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि कितने उत्तरदाता इस आयु वर्ग के अंतर्गत आते थे.

सवालों के एक सेट के जवाब में ज्यादातर प्रतिभागियों ने अपेक्षाकृत नियमित कार्य करने में असमर्थता का संकेत दिया. बमुश्किल 27 फीसदी ने कहा कि वे अटैचमेंट के साथ ई-मेल भेजना जानते हैं, सिर्फ 10 प्रतिशत ने कहा कि वे स्प्रेडशीट में बुनियादी अंकगणितीय सूत्रों का उपयोग कर सकते हैं और महज 9 फीसदी युवा ऐसे थे जो किसी भी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके ई-प्रेजेंटेशन बनाने में माहिर थे.

इसकी तुलना में कंप्यूटर पर किए जाने वाले मुश्किल कामों के लिए संख्या और भी निराशाजनक थी. ये ऐसे काम हैं जिन्हें करने के लिए स्पेशलाइज्ड नॉलेज का होना जरूरी होता है. उदाहरण के लिए 97 फीसदी से ज्यादा उत्तरदाताओं ने कहा कि वे नहीं जानते कि प्रोग्रामिंग भाषा का कैसे इस्तेमाल किया जाता है और कंप्यूटर प्रोग्राम कैसे लिखा जाता है.

इससे पता चलता है कि हालांकि भारत का लक्ष्य दुनिया के लिए एक आईटी हब बनना है- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस साल की शुरुआत में डिजिटल इंडिया अवार्ड्स कार्यक्रम में बोलते हुए कहा था कि देश को सॉफ्टवेयर उत्पादों का हब बनने का प्रयास करना चाहिए- लेकिन आबादी का एक छोटा सा प्रतिशत ही वास्तव में कोड लिख सकता है. इसके अलावा, सिर्फ 20 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे सॉफ्टवेयर को सर्च करने, डाउनलोड करने, इंस्टॉल करने और कॉन्फ़िगर करने में सक्षम थे. मजह 12 प्रतिशत ने दावा किया कि वे प्रिंटर या कैमरा जैसे नए डिवाइस को कनेक्ट और इंस्टॉल कर सकते हैं.

MoSPI के 2021 के अनुमानों के अनुसार, 15-29 की उम्र के लोग, भारत की आबादी के एक चौथाई से अधिक, लगभग 27.5 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इस युवा कामकाजी उम्र की आबादी में आईसीटी कौशल की कमी, जैसा कि सर्वेक्षण से संकेत मिलता है, तेजी से डिजिटलीकृत दुनिया में कई लोगों की भविष्य की संभावनाओं के लिए अच्छा नहीं है.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इन्फॉर्मल सेक्टर एंड लेबर स्टडीज की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘कम आईसीटी कौशल वाले लोगों का एक बड़ा पूल आगे चलकर हमारे समाज में गरीब समूहों के बहिष्कार का मार्ग प्रशस्त करेगा. ये वो तबका है जो इंटरनेट, कंप्यूटर सिस्टम या ट्रेनिंग का खर्च नहीं उठा सकता है.’

उन्होंने कहा: ‘जैसे-जैसे अधिक से अधिक नौकरियां ऑनलाइन होती चली जाएंगी या डिजिटाइज़ होती जाएंगी, इनके लिए भारत के जॉब मार्केट में घुसना उतना ही कम होता चला जाएगा. निचले तबके के लोगों के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाएगा.’

डेटा का दिप्रिंट ने विश्लेषण किया और पाया कि आईसीटी स्किल को लेकर दक्षिण और उत्तरी राज्यों की स्थिति काफी अलग है. इन्हें लेकर काफी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. सर्वे बताता है कि इस मामले में दक्षिण भारतीय राज्य अपने उत्तरी राज्यों के समकक्षों से काफी आगे है. डेटा ने आईसीटी क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण शहरी-ग्रामीण अंतर को भी दिखाया है.


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दक्षिणी राज्य काफी आगे

सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि आईसीटी-कौशल श्रम से भरपूर क्षेत्र में खुद को स्थापित करने की चाह रखने वाली कंपनियों को दक्षिणी राज्य खास तौर पर केरल में कम मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.

सर्वेक्षण में देखे गए सभी नौ आईसीटी मापदंडों के लिए केरल पहले स्थान पर रहा. केरल में लगभग 73 फीसदी युवाओं ने कहा कि वे अटैचमेंट के साथ ईमेल भेजना जानते हैं, 51 प्रतिशत से ज्यादा स्प्रेडशीट में एक बेसिक फार्मूला पर काम कर सकते हैं और लगभग 40 प्रतिशत युवा सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से डिजिटल प्रेजेंटेशन बनाने में माहिर हैं.

तमिलनाडु (55 फीसदी), कर्नाटक (46 फीसदी) और तेलंगाना (45 फीसदी) में लगभग आधे युवा ईमेल के साथ अटैचमेंट भेजना जानते हैं. आंध्र प्रदेश (36 प्रतिशत) अन्य राज्यों की तुलना में इस पैरामीटर पर थोड़ा पीछे था, लेकिन फिर भी राष्ट्रीय औसत 27 प्रतिशत से काफी आगे था.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
रमनदीप कौर का ग्राफिक | ThePrint

सर्वे में हिंदी पट्टी के राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कुछ नॉर्थ-ईस्ट राज्यों को शामिल किया गया था.

उत्तर प्रदेश में सिर्फ 14.5 फीसदी युवाओं ने माना कि वह अटैचमेंट के साथ ईमेल भेजना जानते हैं, असम (13.5 प्रतिशत) के बाद देश में यह दूसरा सबसे कम प्रतिशत है. अटैचमेंट के साथ ईमेल भेजने में सक्षम केवल 14.3 प्रतिशत युवाओं के साथ बिहार तीसरे स्थान पर रहा.

झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, मेघालय और ओडिशा के पांच में से एक या 20 फीसदी से कम युवाओं ने दावा किया कि वे ऐसा कर सकते हैं.

इसी तरह, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, असम और मेघालय में चार प्रतिशत से भी कम युवाओं को पता था कि स्प्रेडशीट में बेसिक फंक्शन कैसे काम करता है.

ग्रामीण युवा काफी पीछे

सर्वे बताता है कि अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में शहरी युवाओं के पास कहीं अधिक आईसीटी कौशल है.

रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 19.2 प्रतिशत ग्रामीण उत्तरदाताओं ने कहा कि वे ईमेल भेज सकते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत 45.2 प्रतिशत था. यह ग्रामीण इलाकों में पांच लोगों में से एक है, जबकि शहरी इलाकों में दो लोगों में से एक ऐसा कर सकता है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में 6 प्रतिशत से कम (16 में से एक) उत्तरदाताओं ने कहा कि वे जानते हैं कि एक्सेल पर कैसे काम किया जाता है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में 20 प्रतिशत से अधिक (पांच में से एक) ने बताया कि वे ऐसा कर पाने में सक्षम हैं. कंप्यूटर की अन्य तकनीक के मामले में भी पैटर्न लगभग समान रहा. सर्वे बताता है कि जब आईसीटी कौशल की बात आती है तो भारत के गांवों के युवा कस्बों और शहरों से मीलों पीछे रह जाते हैं.

प्रोफेसर प्रसाद ने कहा कि कौशल अंतर का ग्रामीण भारतीयों की तेजी से डिजिटलीकृत कल्याणकारी योजनाओं और लाभों तक पहुंच पर भी प्रभाव पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘सरकार मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) जैसी योजनाओं के लिए सभी औपचारिकताओं को डिजिटल बनाने की इच्छा रखती है, लेकिन उसे यह भी स्वीकार करना होगा कि ग्रामीण भारत में हर व्यक्ति आवश्यक आईसीटी कौशल से लैस नहीं है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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