नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘प्राचीन, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक स्थलों’ के मूल नामों का पता लगाने के लिए ‘नामकरण आयोग’ गठित करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया.
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने याचिकाकर्ता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से नाखुशी जाहिर की और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि ‘ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. हिंदू धर्म जीवन जीने का एक तरीका है, भारत ने हमेशा से सभी को अपनाया है और इसी कारण से ही हम सब एक साथ रहने में सक्षम हैं.’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने देश में अंग्रेजों द्वारा लाई गई फूट डालो और राज करो नीति का उल्लेख किया और टिप्पणी की कि ‘हमें इस तरह की याचिकाओं से इसे फिर से नहीं तोड़ना है.’
अतीत को ना खोदे
अदालत ने कहा कि ‘अतीत को खोदना नहीं चाहिए क्योंकि इससे केवल असामंजस्य पैदा होगा और ये देश को आगे नहीं बढ़ने देंगे.’
पीठ का नेतृत्व कर रहे जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, ‘मैं जिस राज्य से हूं वहां केरल में हिंदू राजा ने चर्च बनाने के लिए जमीन दान की है.’
अदालत ने कहा कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान की रक्षा करता है. याचिकाकर्ता अतीत के बारे में सोच कर वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ न डाले.
अदालत ने कहा, ‘किसी भी राष्ट्र का इतिहास किसी राष्ट्र की वर्तमान और भावी पीढ़ियों को इस हद तक परेशान नहीं कर सकता है कि आने वाली पीढ़ियां अतीत की कैदी बन जाएं.’
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पांडवों के नाम पर एक भी सड़क नहीं
पीठ को समझाने की कोशिश करते हुए याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, ‘कई ऐतिहासिक जगहों पर हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं. लोधी, गजनी, गोरी और अन्य आक्रमणकारियों के नाम पर देश में सड़कें हैं लेकिन पांडवों के नाम पर एक भी सड़क नहीं है.’
याचिकाकर्ता के जवाब में, अदालत ने कहा कि देश को ध्यान में रखें, किसी धर्म को नहीं. एक देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता है और सरकार, कानून, धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिकता के शासन के लिए प्रतिबद्ध है.
नामकरण आयोग
याचिकाकर्ता ने संप्रभुता बनाए रखने, ‘गरिमा का अधिकार और धर्म के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर ‘प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों’ के मूल नामों का पता लगाने के लिए एक ‘नामकरण आयोग’ गठित करने की मांग की है.
वैकल्पिक रूप से, याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया कि वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक स्थलों के प्रारंभिक नामों पर रिसर्च करने का निर्देश दे, जिनका नाम बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बदल दिया गया था, ताकि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत ‘जानने का अधिकार’ को सुरक्षित किया जा सके.
याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वे अपनी वेबसाइटों और रिकॉर्ड को अपडेट करें और बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों के नाम वाले प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक स्थलों के मूल नामों का उल्लेख करें.
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