नयी दिल्ली, सात अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को पूर्व मंत्री जी जनार्दन रेड्डी के स्वामित्व वाली ओबुलापुरम माइनिंग कंपनी (ओएमसी) प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े एक अवैध खनन ‘घोटाले’ से संबंधित कथित धनशोधन मामले में स्टील कंपनी जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड और उसके अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि इस स्तर पर हस्तक्षेप करने से उन मुद्दों पर पूर्वाग्रह पैदा होगा, जो पूरी तरह से अपीलीय न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह निर्विवाद है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) में याचिकाकर्ताओं का नाम आरोपी के रूप में नहीं है।
पीठ ने कहा कि उसके समक्ष मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि अपीलकर्ताओं के संपूर्ण बैंकिंग परिचालन संदिग्ध हैं या नहीं, बल्कि मुद्दा यह है कि क्या एसोसिएटेड माइनिंग कंपनी (एएमसी) द्वारा आपूर्ति किए गए लौह अयस्क संबंधी देनदारी के रूप में 33.80 करोड़ रुपये की बकाया राशि को ‘अपराध की आय’ माना जा सकता है और क्या इस राशि को निकालना एक अपराध है।
अदालत ने कहा, ‘‘यह आशंका कि संपूर्ण राशि अपराध की आय है, गलत है, खासकर जब यह स्वीकार किया गया है कि भुगतान नियमित बैंकिंग माध्यमों से किए और प्राप्त किए गए थे, और लेखा पुस्तकों में विधिवत दर्शाए गए हैं।’’
इस प्रकार, उचित यही होगा कि वैधानिक प्रक्रिया को उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए अपना रास्ता अपनाने दिया जाए। इस स्तर पर हस्तक्षेप उन मुद्दों पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होगा, जो पूरी तरह से अपीलीय न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कुर्क की गई संपत्ति पीएमएलए की धारा 2(1)(यू) के अर्थ में ‘अपराध की आय’ है और क्या निकासी कानून का उल्लंघन थी।’’
न्यायालय ने कहा कि वह यह मानने में असमर्थ है कि संज्ञान आदेश को रद्द करने या कार्यवाही पर रोक लगाने का मामला बनता है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस स्तर पर आरोप 33.80 करोड़ रुपये की निर्धारित राशि की वसूली तक ही सीमित हैं और इस प्रक्रिया से आगे अपीलकर्ताओं पर आपराधिक दायित्व थोपने तक विस्तारित नहीं हैं।’’
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मनमाने ढंग से अभियोजन की आशंका निराधार है।
पीठ ने कहा, ‘‘तदनुसार, हम इस स्तर पर कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हैं। अपीलकर्ता अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी वैधानिक अपीलों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होंगे, जो उनके अपने गुण-दोष के आधार पर और ऊपर दी गई किसी भी टिप्पणी से अप्रभावित होकर कानून के अनुसार उनका निर्णय करेगा।’’
जेएसडब्ल्यू ने 2009 में विजयनगर स्थित अपने संयंत्र को 15 लाख टन लौह अयस्क, चूर्ण आदि की आपूर्ति के लिए ओएमसी के साथ एक अनुबंध किया था।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 2013 में अवैध खनन मामले में एक पूरक आरोप पत्र दायर किया, जिसमें जेएसडब्ल्यू का नाम आया और इसके बाद ईडी ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जांच शुरू की।
भाषा रंजन सुरेश
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