नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका दायर करने के लिए कठोर जुर्माना लगाये जाने के मामले में याचिकाकर्ता के आग्रह पर सोमवार को विचार करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि निराधार आरोप लगाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना अनिवार्य है और (लोगों के बीच) ‘स्पष्ट संदेश’ जाना ही चाहिए।
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय एवं राज्य के कुछ अधिकारियों के खिलाफ निराधार आरोप वाली याचिका दायर करने वाले व्यक्ति पर 25 लाख रुपये का कठोर आर्थिक दंड लगाया था।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा, ‘‘हमें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। हम इस मामले में बहुत ही स्पष्ट हैं। इसे रोकना होगा। हम चाहते हैं कि बहुत ही सख्त संदेश जाए।’’
वकील ने पीठ से ‘उदारता’ दिखाने का अनुरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी गलती का अहसास हो चुका है और वह भविष्य में अत्यंत सावधान रहेंगे।
वकील ने कहा, ‘‘मैं (याचिकाकर्ता) सेवानिवृत्त पेंशनधारी हूं। मैं इस अदालत में अपनी एक महीने की पेंशन की राशि जमा कर दूंगा।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘कृपया उदारता दिखाएं। मैंने अपनी अपनी गलती महसूस कर ली है। पच्चीस लाख रुपये का जुर्माना गैर-अनुपातिक और कठोर है।’’ लेकिन पीठ ने कहा कि वह इस याचिका पर विचार करने के पक्ष में नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इसे रोकना होगा और संदेश स्पष्ट जाना चाहिए। हमें याचिकाकर्ता के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया?’’
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत का इरादा एक उदाहरण प्रस्तुत करना है कि इस तरह की प्रवृत्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
शीर्ष अदालत ने चार जनवरी को याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने का आदेश दिया था और कहा कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय और राज्य सरकार के कुछ अधिकारियां के खिलाफउसके आवेदन में की गयी टिप्पणियां ‘अस्वीकार्य’ और आरोप ‘निराधार’ हैं। न्यायालय ने कहा था कि अगर चार सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में जमा नहीं कराई गयी तो हरिद्वार के कलेक्ट जुर्माने की यह राशि आवेदनकर्ता से वसूल करेंगे।
याचिकाकर्ता इंदौर के देवी अहिल्याबाई होल्कर चैरिटी से संबंधित एक मामले में खुद को पक्षकार बनाने की मांग कर रहा था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।
पीठ ने अपने चार जनवरी के आदेश में यह भी कहा था कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2020 के फैसले से उत्पन्न अपील की सुनवाई फरवरी के तीसरे सप्ताह में की जाएगी।
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सुरेश अनूप
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