नयी दिल्ली, सात जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर विचार करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया जिसमें बिना मध्यस्थता के मुस्लिम महिलाओं के तलाक को अवैध घोषित करने और उनके बच्चों के पुनर्वास के लिए कदम उठाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा कि इसी तरह के कई मामले पहले से ही लंबित हैं और वह उनमें हस्तक्षेप कर सकते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘क्योंकि याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उठाए जाने वाले विषय पर कुछ याचिकाएं लंबित हैं, इसलिए याचिकाकर्ता को उचित आवेदन दायर करके लंबित कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाती है।’’
उच्चतम न्यायालय शाइस्ता अंबर और ‘न्यायबोध फाउंडेशन’ की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बिना मध्यस्थता के मुस्लिम महिलाओं के तलाक को अवैध घोषित करने का अनुरोध किया गया है।
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.