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मंगलवार, 6 मई, 2025
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उच्चतम न्यायालय ने विधायक के रूप में ए राजा का निर्वाचन रद्द करने संबंधी फैसला निरस्त किया

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नयी दिल्ली, छह मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को मंगलवार को खारिज कर दिया जिसमें इडुक्की जिले की देवीकुलम विधानसभा सीट से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता ए. राजा का निर्वाचन रद्द कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने उच्च न्यायालय के 23 मार्च, 2023 के आदेश के खिलाफ राजा द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय निरस्त किया जाता है और चुनाव याचिका खारिज की जाती है। अपीलकर्ता पूरी अवधि के लिए विधानसभा के सदस्य के रूप में सभी परिणामी लाभों का हकदार है।’’

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 26 सितंबर को राजा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस नेता डी. कुमार ने आरोप लगाया था कि राजा अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लिए सुरक्षित देवीकुलम सीट से चुनाव लड़ने के पात्र नहीं थे।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राजा और कुमार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरि तथा नरेन्द्र हुड्डा की दलीलें सुनी थीं।

शीर्ष अदालत केरल उच्च न्यायालय के 20 मार्च, 2023 के आदेश के खिलाफ राजा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

राजा ने दलील दी थी कि वह केरल राज्य के हिंदू पारायण समुदाय से हैं और तहसीलदार, देवीकुलम द्वारा जारी जाति प्रमाणपत्र भी इसकी पुष्टि करता है। उन्होंने यह भी दलील दी कि चुनाव अधिकारी ने दाखिल नामांकन पत्र पर कुमार द्वारा की गई आपत्ति को खारिज करके सही किया।

माकपा नेता ने यह भी दावा किया कि उनके माता-पिता ने कभी ईसाई धर्म नहीं अपनाया, उनका कभी बपतिस्मा नहीं हुआ, उनकी पत्नी हिंदू है और उनका विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था, जिसमें पारंपरिक दीप प्रज्जवलित करना और उनकी पत्नी के गले में ‘थाली’ बांधना शामिल था।

कुमार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि राजा एक ईसाई हैं और उनका पर्वतीय जिले में सीएसआई चर्च में बपतिस्मा हुआ है तथा उन्होंने यह साबित करने के लिए फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया है कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से हैं।

कुमार को 2021 के चुनाव में राजा ने 7,848 मतों के अंतर से हराया था। कुमार ने यह भी दावा किया था कि माकपा नेता की पत्नी भी ईसाई हैं और उनका विवाह ईसाई धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था।

कांग्रेस नेता की दलीलों से सहमति जताते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि राजा द्वारा अपने विवाह और समारोह के संबंध में दिए गए टालमटोल भरे जवाबों से यह स्पष्ट है कि उनकी ओर से सच्चाई को छिपाने का ‘‘जानबूझकर प्रयास’’ किया गया।

अदालत ने कहा कि उनके और उनकी पत्नी द्वारा पहने गए कपड़े ईसाई विवाह के संकेत हैं।

इसने यह भी कहा था कि उसके सामने रखे गए सभी दस्तावेज ‘‘पर्याप्त रूप से यह दर्शाते हैं कि प्रतिवादी (राजा) वास्तव में उस समय ईसाई धर्म को मानते थे जब उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया था और नामांकन दाखिल करने से बहुत पहले ही उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था।’’

अदालत ने कहा था, ‘‘इस तरह, धर्म परिवर्तन के बाद, वह हिंदू धर्म का सदस्य होने का दावा नहीं कर सकते। इस आधार पर भी, चुनाव अधिकारी को उनका नामांकन खारिज कर देना चाहिए था।’’

इसने यह भी कहा था कि माकपा नेता यह दिखाने और साबित करने में ‘‘पूर्णतया विफल’’ रहे कि उनके पूर्वज (दादा-दादी) भारत के राष्ट्रपति द्वारा 1950 के आदेश की घोषणा से पहले केरल में आकर बस गए थे, जिसके द्वारा केरल में हिंदू पारायणों को अनुसूचित जाति समुदाय का हिस्सा घोषित किया गया था।

अदालत ने कहा था, ‘‘संक्षेप में, दोनों आधारों पर यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी केरल राज्य में ‘हिंदू पारायण’ के सदस्य नहीं हैं और विधानसभा में देवीकुलम निर्वाचन क्षेत्र की सीट पर चुने जाने के योग्य नहीं हैं, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।’’

इसने कहा था, ‘‘…अतः वर्ष 2021 में उक्त निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचित उम्मीदवार के रूप में प्रतिवादी (राजा) का निर्वाचन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 98 के अंतर्गत अमान्य घोषित किया जाता है।

भाषा अमित नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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