नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट के वरिष्ठ जज एस मुरलीधर के पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में तबादले के बाद घमासान मच गया है. दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पारित कर सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के फैसले पर नाराज़गी जताई है. एसोसिएशन ने अपने सदस्यों को 20 फरवरी से काम बंद करने का आग्रह किया है.
दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिशन द्वारा पारित रिसोल्यूशन में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के कोलिजियम के निर्णय पर बार एसोसिएशन अचंभित है और एक बेहतरीन जज के तबादले पर असंतोष व्यक्त करता है.
एसोसिएशन ने तबादले पर आपत्ति दर्ज कराई है. कहा गया है कि ऐसे तबादले न केवल हमारे संस्थाओं के लिए हानिकारक हैं, बल्कि आम आदमी का व्यवस्था से विश्वास उठाने जैसा है. प्रस्ताव में कहा गया कि हमें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम अपने फैसले पर दोबारा से विचार करेगी. रिसोल्यूशन की एक प्रति मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी गई है.
ऐसी घटना विरले ही देखी जाती है कि बार एसोसिएशन किसी जज के तबादले पर इस तरह से खुलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराए.
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे कर रहे हैं. उन्होंने ही दिल्ली हाई कोर्ट के तीसरे सबसे वरिष्ठ जज के तबादले की सिफारिश की है.
जस्टिस मुरलीधर के तबादले की चर्चा पहले भी दो बार हो चुकी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया था. मुरलीधर के तबादले पर पहली बार दिसंबर 2018 में और फिर जनवरी 2019 में चर्चा हुई थी.
कॉलेजियम ने बोम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस रंजीत मोरे का तबादला मेघालय हाई कोर्ट में और जस्टिस रवि विजयकुमार मलिमथ का तबादला कर्नाटक हाई कोर्ट से उत्तराखंड हाई कोर्ट किया गया है.
सिफारिशें 12 फरवरी को मानी गई हैं. पिछले हफ्ते जस्टिस सत्यरंजन धर्माधिकारी जो कि बाम्बे हाई कोर्ट की दूसरी सबसे वरिष्ठ जज थी उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. धर्माधिकारी के इस्तीफे के बाद मोरे दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हो गए थे.
सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को कानून मंत्रालय द्वारा अभी स्वीकृति नहीं मिली है. अगर सरकार इसे कॉलेजियम के पास वापस भेजेगी तो दोबारा इस पर विचार करने का विकल्प कॉलेजियम के पास होगा.
मुरलीधर सहित दोनों जजों के पास कॉलेजियम से अपने फैसले पर विचार करने के लिए कहने का विकल्प है.
मुरलीधर के कड़े फैसले
जस्टिस मुरलीधर को 2006 में दिल्ली हाई कोर्ट में बतौर जज नियुक्त किया गया था. 2023 में वो रिटायर होंगे.
दिल्ली बार एसोसिएशन के अनुसार मुरलीधर कड़े फैसले देने वाले जजों में से माने जाते हैं.
जस्टिस मुरलीधर हाशिमपुरा नरसंहार मामले, 1984 में हुए सिख दंगों में शामिल रहे सज्जन कुमार के मामले में भी फैसला सुनाने वालों में से थे.
मुरलीधर दिल्ली हाई कोर्ट की उस बेंच में शामिल थे जिसने पहली बार 2009 में होमोसेक्सूएलिटी को डिक्रिमिनलाइज किया था.
(देबायन रॉय के इनपुट के साथ)