नई दिल्लीः अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की. इस मामले पर अगली सुनवाई को 8 हफ्ते के लिए टाल दिया गया है. कोर्ट ने अभी दस्तावेजों के अनुवाद को देखने के लिए 6 हफ्ते का समय और दिया है. यही भी कहा है कि हमारे विचार में 8 हफ्ते के वक्त का इस्तेमाल मध्यस्थता के जरिये मसला सुलझाने के लिए भी हो सकता है. मध्यस्थता पर कोर्ट अगले मंगलवार को आदेश देगा.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की नई गठित पांच जजों की संवैधानिक बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सहित जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर सुनवाई में शामिल हैं. 10 जनवरी को जस्टिस यूयू ललित मामले की सुनवाई से अलग हो गये थे, इसके बाद नई संवैधानिक पीठ मामले को देख रही है.
Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: Supreme Court says it will pass order on next Tuesday on whether the case may be sent for court-monitored mediation to save time. pic.twitter.com/8R7iHb8AeE
— ANI (@ANI) February 26, 2019
इससे पहले नई बेंच ने 26 फरवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई करने का फैसला किया था. 27 जनवरी को मामले की सुनवाई होनी थी. लेकिन एसएस बोबडे के उपलब्ध न होने से सुनवाई को टालना पड़ा था.
आज मामले में सुनवाई रूपरेखा बनाई जानी थी. 10 जनवरी को चीफ जस्टिस ने 15 बक्सों में रखे दस्तावेजों को जांच-पड़ताल और उन्हें दुरुस्त करने को कहा था. उन्होंने इसमें पाया था कि चार बक्सों में कुल 122 मुद्दों को देखना है. इनसे जुड़े 88 गवाह हैं और उनकी गवाहियों को 13,886 पन्नों में दर्ज किया गया है. साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भी 8,533 पन्नों का है.
इससे जुड़े 275 दस्तावेज कोर्ट में पेश किया गया. पीठ ने रजिस्ट्री को यह भी निर्देश दिया था कि अलग-अलग विशेषज्ञों के जरिये फारसी, संस्कृत, अरबी, गुरमुखी और हिंदी के दस्तावेजों के किये गये अनुवाद को चेक किया जाए कि वह सही या नहीं?
गौरतलब है कि 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुखयमंत्री रहे मुलायम सिंह ने सुरक्षा बलों से गोली चलवाई थी, जिसमें काफी कार सेवक मारे गये थे और घायल हुए थे.
टाइटल विवाद को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया था, जिसमें उसने कहा था कि तीन गुंबदों में बीच वाला हिस्सा हिंदुओं का, जिसमें रामलला की मूर्ति है. निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा सीता रसोई और राम चबूतरा को दिया गया था, बाकि एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने को कहा था.