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Thursday, 21 November, 2024
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अगर कॉलेजियम की चली तो क्या भारत को मिल सकता है दूसरा दलित सीजेआई?

भारत के पहले दलित चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन 11 मई 2010 को रिटायर हुए, तब से अभी तक सुप्रीम कोर्ट में कोई दलित जज नहीं बना.

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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को जल्द ही बाम्बे हाईकोर्ट के जज भूषण रामकृष्ण गवई को सर्वोच्च न्यायालय का जज बनाये जाने की उम्मीद है. उन्हें भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायधीश बनाये जाने के लिए मंच तैयार हो रहा है.

भारत के पहले दलित सीजेई, केजी बालकृष्णन 11 मई 2010 को सेवानिवृत्त हुए थे. अगर जस्टिस गवई की नियुक्ति फाइनल होती है तो वह सीजेआई के रूप में 13 मई 2025 में शपथ ले रहे होंगे. वह बालकृष्णन के सेवानिवृत्त होने के बाद भारत की सर्वोच्च न्यायालय में पहले दलित न्यायाधीश भी होंगे.

जस्टिस गवई पूरे भारत के हाईकोर्ट के जजों में वरिष्ठता के लिहाज से 10वें नंबर पर हैं.

उन्हें पदोन्नत किया जाना नरेंद्र मोदी सरकार के उस मांग के तहत है, जिसमें उन्होंने उच्च न्यायपालिका में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के जजों को सीजीआई बनाये जाने की गुजारिश की थी. पहले की सरकारों ने भी ऐसे कदम उठाए हैं.


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सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जस्टिस गवई के साथ ही हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुर्यकांत की पदोन्नति को लेकर हालिया कॉलेजियम की मीटिंग में चर्चा हुई थी. और सरकार को अंतिम निर्णय के बारे में जल्द ही सूचित कर दिया जाएगा.

अगर उन्हें सुप्रीप कोर्ट में नियुक्त किया जाता है तो जस्टिस सौर्यकांत जस्टिस गवई के बाद सीजीआई की दौड़ में होंगे.

जस्टिस सौर्यकांत की पदोन्नति उनके पैरेंट हाईकोर्ट पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट को भी प्रतिनिधत्व देगा, जहां से केवल एक न्यायाधीश ही सुप्रीम कोर्ट में अपनी जगह बना पाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल 28 जज हैं, जिसे बढ़ाकर 31 तक किया जाना है. 28 में से एक जस्टिस एके सीकरी 6 मार्च को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.

जज लोया की मौत के वक्त थे साथ

जस्टिस गवई 2017 में उस समय चर्चा में आए, जब उन्होंने सीबीआई जज बीएच लोया के परिवार वालों द्वारा फाउल प्ले का आरोप का कड़ा विरोध किया था. जज बीएच लोया की कथित तौर पर हार्ट अटैक से मौत हो गई थी, जब वह 2014 में नागपुर में एक शादी समारोह में गये थे. उस समय जज लोया सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर में मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ सुनवाई कर रहे थे. शाह को मामले से तब से छुट्टी दे दी गई है.

जब जज लोया के परिवार, ने कैरवान मैगजीन के साक्षात्कार में उनकी मौत की परिस्थितियों पर सवाल उठाये थे तो उस समय जस्टिस गवई भी शादी समारोह में थे, जिन्होंने आरोपों को खारिज किया था.

परिवार ने कहा था कि वह अकेले शख्स थे जो जज लोया को ऑटो रिक्शा से अस्पताल ले गये और उनके कपड़ों पर खून लगा था- दोनों दावों को जस्टिस गवई ने नकार दिया था.

जस्टिस सूर्यकांत के संदर्भ में देखा जाए तो पिछले साल अक्टूबर में उन्हें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने वाले कॉलेजियम के सुझाव में भी सरकार ने बहुत समय लगाया था.

सूत्रों के अनुसार बाकी चीजों की बात करें, सरकार, नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल द्वारा बतौर सहायक जज भेजे गए पत्रों को जिसमें शिकायत भी शामिल थी, को देखना चाहती थी.


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दिप्रिंट को सरकारी सूत्रों को मिली जानकारी के अनुसार, ‘चूंकि सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, इसलिए एक विस्तृत जांच कराई गई लेकिन उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात है कि जस्टिस गोयल ने खुद स्वतंत्र जांच की मांग की थी.’

सूत्र ने आगे कहा, ‘जज और उसके परिवार से संबधित कुछ प्रापर्टी का भी मैटर था, जिसे लेकर जस्टिस गोयल ने शिकायत दर्ज कराई थी.’

सूत्रों के अनुसार, ‘कंप्लेन में किए गए दावों की पोल खुल गई और उस समय केवल बतौर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जज के रूप में उनकी नियुक्ति का ही रास्ता साफ हुआ था’

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