नयी दिल्ली, 20 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दलबदल रोधी कानून (संविधान की 10वीं अनुसूची) के खिलाफ दायर याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी।
संबंधित कानून 52वें संविधान संशोधन द्वारा 1985 में लाया गया था। यह संसद या राज्य विधानसभाओं में राजनीतिक दल के सदस्यों, निर्दलीय सदस्यों और मनोनीत सदस्यों द्वारा दल बदले जाने की स्थितियों से निपटता है, तथा सदस्यों की अयोग्यता के आधार निर्धारित करता है।
इस कानून के तहत संसद या विधानसभा के सदस्यों को यह पाए जाने पर अयोग्य घोषित कर दिया जाता है उन्होंने उस मूल पार्टी को छोड़ दिया है जिसके टिकट पर वे चुने गए थे।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस मामले पर दोबारा विचार नहीं कर सकती, क्योंकि दसवीं अनुसूची को 1992 में संविधान पीठ ने बरकरार रखा था।
किहोतो होलोहान बनाम जाचिल्हू और अन्य के मामले में 18 फरवरी, 1992 को पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने दसवीं अनुसूची की वैधता को बरकरार रखा था और कहा था कि इसके प्रावधान हितकर हैं तथा इनका उद्देश्य सिद्धांतहीन और अनैतिक राजनीतिक दलबदल पर अंकुश लगाकर भारतीय संसदीय लोकतंत्र के ढांचे को मजबूत करना है।
भाषा नेत्रपाल माधव
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