नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) देश में अंतरराज्यीय बाल तस्करी रैकेट पर कड़ा रुख अपनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने 13 आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए कहा कि ‘‘न्याय के लिए सामूहिक पुकार, शांति और सद्भाव की उसकी इच्छा’’ को महत्वहीन नहीं बनाया जा सकता।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों के अनुसार तस्करी के शिकार बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और उनकी शिक्षा के लिए सहायता प्रदान करना जारी रखा जाए।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत में तस्करी के कई तरीके प्रचलित हैं और अलग-अलग राज्यों में विभिन्न तरीके प्रचलित हैं। पीठ ने कहा कि राज्यों में तस्करी के पैटर्न का समग्र विश्लेषण बड़ी संख्या में तस्करी के मामलों को दिखाता है और समय के साथ मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।
पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आरोपियों को जमानत पर रिहा करने के आदेश में खामियां पाईं। अपराध की गंभीर प्रकृति को देखते हुए पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को आरोपियों के पक्ष में फैसला नहीं देना चाहिए था।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि उच्च न्यायालय ने सभी जमानत अर्जियों पर बहुत ही लापरवाह तरीके से सुनवाई की। उच्च न्यायालय के इस लापरवाही भरे रवैये के कारण अंततः कई आरोपियों के फरार होने का रास्ता साफ हो गया और इससे मुकदमा खतरे में पड़ गया।’’
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय कम से कम यह तो कर सकता था कि प्रत्येक आरोपी पर सप्ताह में एक बार संबंधित थाने में उपस्थित होने की शर्त लगा देता। पीठ ने कहा कि कानून के शासन द्वारा शासित समाज में रहने वाले व्यक्ति के जीवन को विनियमित किया जाना चाहिए।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कानून सबके पालन के लिए बनाए गए थे ताकि समाज के सदस्य शांतिपूर्वक रह सकें।
पीठ ने कहा कि कानून पर आधारित ऐसे नियम सामाजिक संतुलन को बनाए रखते हैं तथा मानव अधिकारों की रक्षा और सामूहिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करते हैं।
न्यायालय ने आरोपियों को ‘‘समाज के लिए एक बड़ा खतरा’’ बताया, क्योंकि वे देश में जहां भी गए, बाल तस्करी में लिप्त पाए गए।
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार के आचरण की आलोचना करते हुए कहा कि जिस तरह से स्थिति से निपटा गया, उससे वह ‘‘पूरी तरह निराश’’ है।
पीठ ने कहा, ‘‘सरकार ने इतने समय तक कुछ क्यों नहीं किया? सरकार ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित जमानत के आदेशों को चुनौती देना क्यों उचित नहीं समझा? दुर्भाग्य से सरकार ने नाम के लायक भी गंभीरता नहीं दिखाई।’’
शीर्ष अदालत ने आरोपी व्यक्तियों को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया और वाराणसी में उनके खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकियों में उनके खिलाफ मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘हम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जिला वाराणसी और अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला वाराणसी को निर्देश देते हैं कि वे इस फैसले के सभी तीन आपराधिक मामलों को आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर सत्र न्यायालय को सौंप दें।’’
पीठ ने कहा कि चूंकि सभी आपराधिक मामले सत्र न्यायालय को सौंपे जा रहे हैं, इसलिए संबंधित निचली अदालत एक सप्ताह के भीतर आरोप तय करने की कार्यवाही करेगी।
निचली अदालत को आदेश दिया गया कि यदि यह पाया जाए कि आरोपी फरार हो गए हैं या उनका पता अज्ञात है तो आरोपियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं।
पीठ ने राज्य को मुकदमे चलाने के लिए तीन विशेष सरकारी अभियोजक नियुक्त करने का निर्देश दिया और कहा कि पीड़ितों और उनके परिवारों को पुलिस सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। पुलिस को फरार आरोपियों का पता लगाने और उन्हें जल्द से जल्द संबंधित अदालत में पेश करने के लिए दो महीने का समय दिया गया।
पीठ ने कहा कि मुकदमे के अंत में, संबंधित निचली अदालत को भूमि कल्याण समिति द्वारा प्रबंधित उत्तर प्रदेश रानी लक्ष्मी बाई महिला एवं बाल सम्मान कोष सहित भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 के प्रावधानों के तहत पीड़ितों को मुआवजे पर उचित आदेश पारित करना चाहिए।
भाषा आशीष माधव
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