नयी दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (एफआरएल) को रिलायंस रिटेल के साथ हुए 24,731 करोड़ रुपए के विलय सौदे के संबंध में राष्ट्रीय कंपनी न्याय न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की अनुमति की प्रक्रिया की दिशा में आगे बढ़ने की इजाजत लेने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पास जाने की मंगलवार को छूट दे दी।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूति हिमा कोहली की पीठ ने उस दलील का संज्ञान लिया कि रोजमर्रा के खर्च वहन कर रही एफआरएल दिवालिया होने की कगार पर है और एनसीएलटी के समक्ष विलय संबंधी कार्यवाही में देरी होने की सूरत में सौदा वस्तुत: ”अनावश्यक” साबित हो सकता है। साथ ही दलील दी कि इससे 22,000 से अधिक कर्मचारियों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ दलीलों के मद्देनजर, हम एफआरएल को एनसीएलटी के समक्ष कार्यवाही जारी रखने का अनुरोध करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पास जाने की छूट देते हैं। हम दिल्ली उच्च न्यायालय के संबंधित एकल न्यायाधीश से इस संबंध में सभी पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद उचित आदेश पारित करने का अनुरोध करते हैं।’’
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को इस मामले में उसके आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना एफआरएल की याचिका पर विचार करना चाहिए।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने एनसीएलटी के समक्ष विलय सौदे की प्रक्रिया जारी रखने का अनुरोध करने वाली एफआरएल की याचिका पर तीन फरवरी को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
न्यायालय ने विलय के सौदे संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय के तीन आदेशों को एक फरवरी को निरस्त कर दिया था। इन आदेशों में वह आदेश भी शामिल है, जिसमें 24,731 करोड़ रुपए के विलय सौदे पर आगे बढ़ने से एफआरएल को रोकने वाले मध्यस्थ के फैसले पर रोक लगाने से इनकार किया गया था।
अमेजन, रिलायंस रिटेल के साथ एफआरएल के विलय का विरोध कर रही है, जिसके कारण अमेरिका की कंपनी और फ्यूचर समूह के बीच एक साल से कानूनी लड़ाई जारी है।
पीठ की ओर से 12 पन्नों का आदेश लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश ने फ्यूचर समूह और अमेजन के बीच जारी कानूनी मसलों का जिक्र भी किया।
शीर्ष अदालत ने इस दलील पर गौर किया कि विलय सौदे को अंतिम रूप देने के लिए आवश्यक कुल 15 चरणों में से एनसीएलटी आठवें चरण में पहुंच गया है जोकि शेयरधारकों और लेनदारों की बैठक से संबंधित है।
फ्यूचर समूह की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दलील दी थी कि आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा करने और एनसीएलटी द्वारा योजना को वास्तविक मंजूरी देने में छह से आठ महीने का समय लगेगा।
साल्वे ने कहा था कि अगर मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा एफआरएल के पक्ष में कोई आदेश पारित किया जाता है, तो उस स्तर पर एनसीएलटी के समक्ष नयी कार्यवाही शुरू करना मुश्किल होगा।
दलीलों पर गौर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में एफआरएल को एनसीएलटी के समक्ष विलय की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति के लिए उच्च न्यायालय जाने की छूट प्रदान की।
भाषा शफीक पवनेश
पवनेश
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