नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता में वापसी कराने के कुछ महीनों बाद चुनावी रणनीतिकार सुनील कानुगोलू की रणनीति एक बार फिर करिश्माई साबित हुई और तेलंगाना में कांग्रेस की किस्मत पलट गई।
कानुगोलू को कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का काफी हद तक श्रेय दिया गया और बाद में उन्हें सिद्धरमैया सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया।
इस बार, कानुगोलू ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी के साथ मिलकर के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस को परास्त करने के मकसद से कांग्रेस की रणनीति तैयार करने के लिए एक मजबूत जोड़ी बनाई। राव दक्षिणी राज्य में तीसरे कार्यकाल की तलाश में थे।
तेलंगाना में कांग्रेस जहां स्पष्ट बहुमत के आंकड़े से आगे बढ़ती दिख रही है वहीं हिंदी पट्टी के राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसे करारी शिकस्त झेलनी पड़ती दिख रही है।
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश के बाद कानुगोलू ने राजस्थान और मध्य प्रदेश का भी रुख किया था लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रप अशोक गहलोत और कमलनाथ कथित तौर पर चुनाव रणनीतिकार के सुझावों से एकमत नहीं थे।
राजस्थान चुनावों से पहले, कानुगोलू ने संभावित उम्मीदवारों की जीत के बारे में आकलन किया था, लेकिन कथित तौर पर गहलोत उनके सुझावों से सहमत नहीं हुए। गहलोत विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस सरकार की रणनीति बनाने के लिए नरेश अरोड़ा के ‘डिजाइनबॉक्स’ को ले आए।
सूत्रों का कहना है कि कर्नाटक और तेलंगाना में कानुगोलू की सफलता उन्हें और उनकी टीम को स्वतंत्र रूप से काम करने की इजाजत देने का नतीजा थी।
कर्नाटक से आने वाले कानुगोलू की उम्र लगभग 40 वर्ष है। उनको कर्नाटक में भाजपा के खिलाफ ‘पे-सीएम’ अभियान के साथ कांग्रेस की रणनीति गढ़ने वाला माना जाता है। तेलंगाना में चुनावों से पहले, उन्होंने कांग्रेस के अभियान के हिस्से के रूप में के.चंद्रशेखर राव सरकार के कथित भ्रष्टाचार को उजागर किया था। माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर पार्टी को लोगों का साथ मिला।
कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस द्वारा चलाए गए अभियानों में काफी समानता है क्योंकि दोनों ने सत्ताधारी सरकार के कथित भ्रष्टाचार और प्रस्तावित कल्याण गारंटी को रेखांकित किया, जिससे जनता तुरंत जुड़ती दिखी।
दिलचस्प बात यह है कि कानुगोलू पूर्व में भाजपा के कई चुनाव अभियानों में शामिल रहे हैं। उन्होंने 2018 में कर्नाटक में भाजपा के साथ काम किया और पार्टी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही।
उन्होंने 2014 में नरेन्द्र मोदी के अभियान के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और गुजरात में पार्टी के रणनीतिक अभियानों पर भी काम किया था।
मैकेंजी के पूर्व सलाहकार कानुगोलू द्रमुक प्रमुख एम.के. स्टालिन से भी जुड़े थे और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी के ‘नमक्कू नामे’ (हमारे लिए, हम हैं) अभियान का जिम्मा उनके पास था। उन्होंने 2021 में, द्रमुक के खिलाफ अन्नाद्रमुक के साथ भी काम किया और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में तब पार्टी 75 सीटें जीती थीं।
कानुगोलू पिछले साल कांग्रेस में शामिल हुए थे और कर्नाटक में पार्टी के अभियान से जुड़े।
उन्हें पिछले साल कन्याकुमारी से कश्मीर तक राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की रणनीति बनाने का भी श्रेय दिया जाता है।
कर्नाटक और तेलंगाना को कांग्रेस की झोली में डालने वाले कानुगोलू को लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी द्वारा अधिक जिम्मेदारियां दिए जाने की संभावना है।
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प्रशांत नरेश
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