नई दिल्ली: काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर विवाद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की चुप्पी तोड़ते हुए संगठन के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा है कि ‘आंदोलन वैध हैं’ और इन मामलों को भी ‘अयोध्या की तरह’ अदालतों में सुलझाया जाना चाहिए.
आंबेकर ने दिप्रिंट के साथ खास बातचीत में कहा, ‘ये सच है कि आक्रमणकारियों ने हमारे कई प्राचीन मंदिरों पर हमला किया था. उन्होंने मंदिरों को लूटा और उन्हें तहस-नहस कर दिया. उनमें से कुछ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील हैं. उनमें एक अयोध्या है और अन्य में काशी और मथुरा शामिल हैं. ऐसे मंदिरों से हिंदू भावनाएं जुड़ी हैं और हमारे लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा है.’
आरएसएस ने अब तक अपने सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद की तरफ से प्राचीन मंदिरों के ‘मूल’ स्थलों को ‘फिर हासिल करने’ पर जोर देने के मुद्दे से खुद को अलग ही रखा है, जिसका दावा है कि इन स्थानों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था और इनकी जगह मस्जिदें बना दी थीं.
आंबेकर ने इस व्यापक इंटरव्यू के दौरान समान नागरिक संहिता (यूसीसी), उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘जनसंख्या नियंत्रण’ कार्यक्रम और संघ के ‘समावेशी’ एजेंडे की जरूरत पर भी बात की. पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर आंबेकर ने कहा कि आरएसएस सभी भारतीयों को ‘एक बड़े हिंदू समुदाय’ के हिस्से के तौर पर देखता है.
चार साल के अनुबंध पर सैन्य जवानों की भर्ती संबंधी केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना, जिसमें केवल 25 प्रतिशत को स्थायी नौकरी मिलेगी, के खिलाफ कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर आंबेकर ने कहा कि युवाओं में उद्यमिता को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है, ताक वे ‘नौकरी मांगने’ की बजाये ‘नौकरी देने वाले’ बनें.
‘काशी-मथुरा पर न्यायपालिका को फैसला लेना चाहिए’
आंबेकर के मुताबिक, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह विवाद भी कानूनी तरीकों से सुलझाया जाना चाहिए. गौरतलब है कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर हिंदू याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया था.
आंबेकर ने कहा, ‘(हिंदुओं के लिए) पूजा का अधिकार फिर हासिल करने के कानूनी तरीके हैं. यह वैध आंदोलन है. समाज और लोगों को इसमें हिस्सा लेने दें.’ साथ ही जोड़ा, ‘अयोध्या मुद्दे को अदालत ने सुलझा लिया गया है, इन मामलों में भी हम चाहेंगे कि न्यायपालिका फैसला करे और सभी को इसे स्वीकार करना चाहिए.’
मौजूदा समय में मथुरा की एक कोर्ट कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए दायर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. वहीं, वाराणसी के काशी-विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदुओं के पूजा करने के अधिकार को लेकर भी कानूनी लड़ाई जारी है.
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‘जनसंख्या नियंत्रण होना चाहिए’
इस माह यूपी के सीएम आदित्यनाथ की तरफ से ‘जनसांख्यिकी असंतुलन’ को दूर करने की जरूरत को लेकर की गई विवादास्पद टिप्पणी और राज्य में प्रजनन दर घटाने के उद्देश्य से लाई गई उनकी जनसंख्या नीति, 2021 के संदर्भ में आंबेकर ने कहा कि इसकी बेहद जरूरत है कि लोग ‘जिम्मेदार’ बनें.
आंबेकर ने कहा, ‘सभी देश और हर समाज में जनसंख्या प्रबंधन नीतियों पर चर्चा की जा रही है. हमें भी इस बारे में सोचने की जरूरत है.’
उन्होंने कहा, ‘नियंत्रण कैसे पाया जा सकता है, यह सरकार को तय करना है. हम एक लोकतांत्रिक देश हैं…आगे का रास्ता बनाना सभी सरकारों, केंद्र और राज्यों, पर निर्भर है. हमें नहीं पता कि यह कैसे होगा, कानूनी तौर पर या कुछ अन्य तरीकों से. लेकिन सिद्धांतत: जनसंख्या प्रबंधन या जनसंख्या नियंत्रण होना चाहिए.’
‘हम सभी एक बड़े हिंदू समुदाय का हिस्सा’
‘पसमांदा मुसलमानों’—जिस शब्द का इस्तेमाल समुदाय के आर्थिक और सामाजिक रूप से दबे-कुचले वर्गों के संदर्भ में किया जाता है—के उत्थान के प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर आंबेकर ने कहा कि आरएसएस ने हमेशा सभी समुदायों के बीच पहुंच बनाई है.
आंबेकर ने कहा, ‘130 करोड़ लोगों के देश में संघ का मानना है कि हम सभी एक बड़े हिंदू समुदाय का हिस्सा हैं—और इस जुड़ाव का संबंध धर्म से नहीं, बल्कि इस देश की संस्कृति और मिट्टी से है. संघ हर समुदाय के बीच जाता है. जैसे-जैसे हमारी शाखाओं का विस्तार होता है, हम हर जाति और समुदाय तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, और कोई हिंदू-मुस्लिम या कोई धर्म-विशेष पूर्वाग्रह नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘(आरएसएस प्रमुख) मोहन भागवत जी हमेशा कहते हैं कि हम सभी—हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य समुदाय—एक ही मिट्टी से जुड़े हैं, हम सभी के पूर्वज एक ही हैं और एक ही इतिहास है, और एक ही भविष्य होगा.’
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एक ‘समावेशी’ भारत के लिए यूसीसी की जरूरत
समान नागरिक संहिता (यूसीसी)—जिसमें धर्म से इतर सभी नागरिकों के लिए समान व्यक्तिगत नागरिक कानूनों की परिकल्पना की गई है—लागू करने के आरएसएस-भाजपा के दीर्घकालिक एजेंडे पर आंबेकर ने कहा कि ‘समावेशी भारत’ को बढ़ावा देने के लिए इसकी आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, ‘यह एक कानूनी मामला है. मैं कानूनी बारीकियों पर टिप्पणी नहीं कर सकता. इसे देखने के लिए विशेषज्ञ मौजूद हैं. लेकिन एक समावेशी समाज के लिए एक समान कानून होना चाहिए. कानून में सभी समुदायों के व्यक्तिगत नागरिक कानूनों का समायोजन और सम्मान होना चाहिए. लेकिन कानून एक समान ही होना चाहिए. इस बारे में चर्चा और विचार-विमर्श जारी है, निश्चित तौर पर इसे लाने का कोई न कोई तरीका मिलेगा.’
आरएसएस के 100 साल
आंबेकर ने कहा कि आरएसएस को 2025 में संगठन के शताब्दी वर्ष से पहले ‘हिंदू राष्ट्र’ का अपना दृष्टिकोण साकार होने की बहुत उम्मीद है.
उन्होंने कहा, ‘हम वर्षों से एक ही चीज़ की कल्पना कर रहे हैं. हम अपने देश को हर चीज में श्रेष्ठ देखना चाहते हैं. आरएसएस ने विभाजन का विरोध किया था और अब आरएसएस सभी विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ है. कोई भी किसी भी भगवान की पूजा कर सकता है, लेकिन उन्हें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि वे इस राष्ट्र के हैं. हिंदू राष्ट्र के बारे में हमारा विचार धर्म के बारे में नहीं बल्कि हिंदुत्व के विचार से जुड़ा है, जिसमें सभी शामिल हैं.
उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस के करीब 20 सहयोगी संगठन युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ 500 जिलों में काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने 5,000 से अधिक लोगों को अपना कारोबार शुरू करने या अपना उद्यम शुरू करने में लोगों की मदद करने के लिए प्रशिक्षित किया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘प्राचीन भारत में हमारे लोग अपने उद्यम और व्यवसाय चलाते थे. युवा पीढ़ी को केवल नौकरी लेने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनने का सपना देखना चाहिए.’
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