शिमला: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक राज्यों द्वारा अपने क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर (वॉटर सेस) लगाने को केंद्र सरकार द्वारा “हतोत्साहित” करने की चेतावनी और बिजली परियोजना कंपनियों के विरोध के बावजूद, सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने राज्य में जलविद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर लगाने के अपने फैसले पर कायम रहने का फैसला किया है.
इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि बुधवार को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर एक बयान में, राज्य सरकार ने कहा कि मार्च में विधानसभा में पारित हिमाचल प्रदेश जल विद्युत उत्पादन विधेयक पूरी तरह से कानूनी था. इसमें यह भी कहा गया है कि केंद्र ने राज्य को पानी और उसके स्रोतों के प्रबंधन के लिए नियम बनाने के लिए कुछ शक्तियां दी थीं, और राज्य ने उन शक्तियों का उपयोग करके जल उपकर (वॉटर सेस) लगाने के लिए कानून बनाया था.
हाई कोर्ट ने मामले को 16 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया है.
एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य की प्रतिक्रिया पिछले सप्ताह हुई एक बैठक के दौरान हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के विपरीत थी.
बैठक में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू), बड़ी प्राइवेट हाइड्रो पावर फेसिलिटीज़ और छोटे प्राइवेट प्लेयर्स ने भाग लिया था. अधिकारी ने कहा, केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों ने दोहराया था कि वे उपकर मुद्दे पर केंद्र की बात मानेंगे.
25 अप्रैल को राज्य के मुख्य सचिवों को लिखे पत्र में, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक, आर. पी. प्रधान ने लिखा था, “बिजली उत्पादन जिसमें थर्मल, हाइड्रो, पवन, सौर, परमाणु जैसे सभी प्रकार के उत्पादन शामिल हैं, उस पर किसी भी प्रकार का टैक्स लगाया जाना असंवैधानिक है.
पंजाब सरकार के राज्य बिजली निगम लिमिटेड – जो हिमाचल में स्थित शानन बिजली परियोजना के मालिक हैं – ने भी बैठक में भाग लिया था. हालांकि, इसने पंजाब लाइन का पालन किया और कानूनों के उल्लंघन का हवाला देते हुए वॉटर सेस का विरोध किया.
1966 के पुनर्गठन के दौरान शानन पावर हाउस का स्वामित्व पंजाब को दिया गया था, लेकिन यह हिमाचल प्रदेश में स्थित है. हिमाचल सरकार ने कहा है कि वह मार्च 2024 में समाप्त होने वाले भूमि पट्टे का नवीनीकरण नहीं करेगी.
इस साल 16 मार्च को, हिमाचल में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य में जलविद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर लगाने के लिए विधानसभा में जलविद्युत उत्पादन पर हिमाचल प्रदेश वॉटर सेस विधेयक पारित किया.
नए कानून के तहत राज्य सरकार राज्य बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा लगने वाली लागत का वहन करेगी, जबकि अन्य खिलाड़ी जैसे सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल), नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी), और नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन ( एनएचपीसी) को सेस का भुगतान करना होगा.
पंजाब और हरियाणा के विरोध और केंद्र के “हतोत्साहित” करने वाले बयान के बाद, राज्य मंत्रिमंडल ने राज्य के बिजली सचिव राजीव शर्मा की अध्यक्षता में एक पैनल बनाने का फैसला किया, जिसमें जल शक्ति, कानून और वित्त विभागों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
पंजाब और हरियाणा इस सेस का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड पर भी लागू होगा, जो इन राज्यों को बिजली की आपूर्ति भी करता है. दोनों राज्यों ने सेस के विरोध में अपनी-अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किया है.
जलविद्युत दिग्गज एसजेवीएनएल सहित कुछ बिजली परियोजना कंपनियों ने भी सेस को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी. समझा जाता है कि पिछले हफ्ते की बैठक के दौरान इन कंपनियों ने कहा था कि चूंकि मामला अदालत में है, इसलिए राज्य सरकार को अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए और तब तक वॉटर सेस पर कोई भी फैसला लेना चाहिए.
हालांकि, लघु जलविद्युत परियोजना के खिलाड़ियों ने जल उपकर का लगातार विरोध किया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, बोनाफाइड हिमाचली हाइड्रो पावर डेवलपर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, राजेश शर्मा ने पूछा, “छोटी जलविद्युत परियोजनाओं से यह उपकर क्यों लिया जा रहा है? हम पहले से ही वित्तीय कमी की स्थिति में हैं, ऐसे में और अधिक शुल्क हमें अव्यवहार्य बना देंगे.”
उनके अनुसार, राज्य में 111 चालू छोटे एचईपी हैं, जो प्रति वर्ष 2600 मिलियन यूनिट से अधिक बिजली पैदा करते हैं, जिसमें से 339 मिलियन यूनिट प्रति वर्ष – मूल्य रु. 223.60 करोड़ – मुफ्त बिजली के रूप में एचपीएसईबीएल को जाती है.
चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए, शर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार ने सभी हितधारकों को सुना है. उन्होंने कहा, “हाइड्रोपावर डेवलपर्स ने पैनल को अपनी आपत्तियों और सुझावों से अवगत कराया. उनमें से कुछ ने सेस रेट को कम करने की बात की.”
जल युद्ध
इस बीच, राज्य सरकार ने सोमवार को वॉटर सेस कमीशन के गठन के लिए एक अधिसूचना जारी की, जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होंगे. नोटिफिकेशन के मुताबिक, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, चेयरपर्सन का वेतन 1.35 लाख रुपये प्रति माह तय किया गया है, जबकि सदस्यों को 1.20 लाख रुपये प्रति माह मिलेंगे.
उपकर लगाने के साथ-साथ संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए वॉटर सेस अधिनियम के तहत आयोग का गठन किया जाएगा. अभी तक जल शक्ति विभाग इसका प्रबंध कर रहा है. कथित तौर पर लगभग 125 जलविद्युत परियोजनाओं ने विभाग के साथ इस अधिनियम के तहत खुद को पंजीकृत किया है. हालांकि, अधिनियम के तहत पंजीकरण का मतलब वॉटर सेस का भुगतान करने के लिए सहमत होना नहीं है.
केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने अदालत में कहा है कि हिमाचल प्रदेश द्वारा लगाया जा रहा उपकर असंवैधानिक है.
2019 में, ऊर्जा पर एक संसदीय स्थायी समिति ने जलविद्युत पर अपनी रिपोर्ट में कथित तौर पर कहा था कि जल उपकर लगाने से “जलविद्युत परियोजनाओं की व्यवहार्यता प्रभावित हो सकती है”. यह रेखांकित करते हुए कि कुछ राज्य प्रत्येक घन मीटर पानी के लिए जल उपकर लगाते हैं, रिपोर्ट में कहा गया था कि “इस तरह के उपकर लगाने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि पानी वापस नदियों में चला जाता है”.
हिमाचल प्रदेश की जलविद्युत नीति के तहत, बिजली परियोजनाएं राज्य को रॉयल्टी के रूप में 12-15 प्रतिशत मुफ्त बिजली देती हैं.
नाम न छापने की शर्त पर हिमाचल सरकार के एक तीसरे अधिकारी ने कहा कि सरकार ने सेस कानून बनाया है और यह उसकी कानूनी क्षमता के भीतर है. अधिकारी के अनुसार, उपकर या सेस राजस्व उत्पन्न करने के लिए लाया गया था और राज्य इससे पीछे नहीं हटेगा.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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