scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशआगरा से लेकर प्रयागराज तक आत्महत्या के मामले, महामारी में उपजे कारोबार संकट की कहानी सुनाते हैं

आगरा से लेकर प्रयागराज तक आत्महत्या के मामले, महामारी में उपजे कारोबार संकट की कहानी सुनाते हैं

यूपी के छोटे शहरों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर चिंताएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं क्योंकि 2020 और 2021 में कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण ये घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: मनोज पाठक 3 दिसंबर की सुबह जब अपने कार्यालय परिसर में पहुंचे तो वह पूरे आगरा शहर को हिलाकर रख देने वाली एक भयावह सामूहिक आत्महत्या की घटना के पहले गवाह बने. उनके 46 वर्षीय मालिक योगेश मिश्रा—जो ढाई दशक से अधिक समय से उत्तर प्रदेश के इस शहर में रह रहे थे, उनका शव फंदे से झूल रहा था. वहीं बगल में उनकी 43 वर्षीय पत्नी प्रातिचि और उनकी पांच वर्षीय बेटी काव्या का निर्जीव शरीर पड़ा था. बस इतना ही नहीं, ये परिवार अपने पीछे एक सुसाइड नोट और एक 11 साल की बेटी छोड़ गया है. बेटी इस त्रासदी के बाद परिवार में अकेली बची है और उस सुसाइड नोट पर लिखा था, ‘जय महाकाल…जिस किसी के लिए भी यह चिंता का विषय हो.’

नजदीकी जिले एटा के रहने वाले योगेश का मध्यम स्तर का व्यवसाय था. तीन पेज के सुसाइड नोट में लिखा है, ‘हम दोनों (पति और पत्नी) इस सामूहिक आत्महत्या के लिए जिम्मेदार हैं. इसके लिए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. हमें प्यार देने के लिए मां, बहनों, भाई-भाभियों का शुक्रिया.’

आत्महत्या के एक हफ्ते बाद जब दिप्रिंट आगरा के मारुति एन्क्लेव इलाके में इस शोकाकुल परिवार के पास पहुंचा तो उनके पास जवाबों से तो ज्यादा सवाल थे. योगेश के बड़े भाई विशाल मिश्रा हैरत के साथ कहते हैं, ‘हां, पैसे से जुड़ी समस्याएं थीं लेकिन उन्होंने कभी किसी के साथ न तो इस पर चर्चा की, न ही इस बारे में ज्यादा कुछ बताया.’ हालांकि, पुलिस अधिकारियों का कहना है, ‘हम अभी जांच कर रहे हैं. लेकिन आर्थिक तंगी ही इसका एक कारण हो सकती है क्योंकि परिवार को किसी पर कोई शक नहीं है.’

इस घटना में अकेली बची उनकी 11 साल की बेटी इस कदर सदमे की स्थिति में है कि उसे याद ही नहीं कि क्या हुआ था. विशाल ने बताया, ‘वह उस दिन अपनी दादी के साथ सो रही थी.’

हाल के दिनों में आगरा में व्यापारी वर्ग से जुड़ी आत्महत्या की घटनाएं सामने आई हैं. आगरा टूरिज्म वेलफेयर चैंबर (200 से अधिक व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन) के अध्यक्ष प्रह्लाद के. अग्रवाल कहते हैं, ‘कोविड संकट ने हर किसी को बुरी तरह प्रभावित किया है. छोटे कारोबारियों से लेकर बड़े उद्यमियों तक कोई भी नुकसान से बचा नहीं है और कोई सरकारी सहायता भी नहीं मिल रही है.’

योगेश का मामला अकेला नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि 2020 में देश में कोविड-19 महामारी की दस्तक के बाद से अब तक 11,716 व्यवसायी आत्महत्या कर चुके हैं.

एनसीआरबी ने ‘भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या’ श्रेणी के तहत जारी आंकड़ों में यह संकेत दिया है कि व्यवसायियों के आत्महत्या करने की घटनाएं 29 प्रतिशत बढ़ी हैं. 2019 में, इसने 9,052 ऐसी मौतें दर्ज की थीं.

प्रयागराज के नागरिक उद्योग व्यापार मंडल (लगभग 400 व्यवसायियों का संगठन) के अध्यक्ष नीरज जायसवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘वाराणसी और प्रयागराज धार्मिक शहर हैं. हमारे यहां कुंभ मेला होता है और इलाहाबाद हाई कोर्ट भी है. चूंकि अदालतें भी जूम पर शिफ्ट हो गई हैं, ऐसे में हॉस्पिटैलिटी सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है. अधिकांश होटल कई महीनों तक बंद रहे हैं.’

अंतरराष्ट्रीय पर्यटन पर प्रतिबंध के कारण आगरा जैसे शहरों में ये उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है. आगरा टूरिज्म वेलफेयर चैंबर के सचिव अनूप गोयल कहते हैं, ‘जो लोग कोई एक व्यापार करते आ रहे हैं, उसमें नुकसान होने पर रातो-रात व्यापार बदल नहीं सकते. पिछले दो साल से हम सरकार की तरफ से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की अनुमति दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं. आगरा में हम घरेलू पर्यटन के भरोसे कोई कारोबार नहीं चला सकते. घरेलू पर्यटक न तो इन कला शिल्पों को खरीदते हैं और न ही टूरिस्ट गाइड किराए पर लेते हैं.’

गोयल कहते हैं, ‘हम जीएसटी का भुगतान भी कर रहे हैं और देश की जीडीपी में इस पर्यटन उद्योग के योगदान के बावजूद सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिली है.’’


यह भी पढ़ें- अधिकतर सुसाइड हेल्पलाइन्स से कोई मदद नहीं मिलती, लोगों की ज़रूरत के समय वो काम नहीं आती


मौतें और अत्यधिक तनाव

केंद्र सरकार ने जबसे लॉकडाउन में ढील दी है, प्रयागराज के हिंदी दैनिक अखबारों में आत्महत्या की खबरें सुर्खियों में रही हैं. अक्सर अखबारों में ऐसी सुर्खियों नजर आती है—‘एक व्यक्ति ने गंगा में कूदकर जान दी, ‘कर्नलगंज की तंग गलियों में फंदे से लटका मिला युवक’, ‘थट्टेरी बाजार में स्थानीय व्यवसायी ने खुद को गोली मारी’ आदि.

करीब 15 लाख की आबादी वाले इस शहर की सुबह खुदकुशी करके जान देने वालों की खबरों के साथ होती है.

प्रयागराज पुलिस के मुताबिक, मई, जून और जुलाई 2020—जब कारोबार पर लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर पड़ा था—में आत्महत्या के कारण मौतों की संख्या 2019 में इसी अवधि में आत्महत्या की घटनाओं से काफी ज्यादा थी. कुछ मामलों में तो यह दोगुनी तक हो गई.

2021 में खुदकुशी के कारण मौतों की संख्या बढ़ी ही है—प्रयागराज में मई, जून और जुलाई में क्रमशः 22, 24 और 26 आत्महत्याएं दर्ज की गईं. साल 2020 में तीन महीनों के आंकड़े 28, 21 और 22 थे, और 2019 में यह आंकड़ा क्रमशः 16, 12 और 11 रहा था.

प्रयागराज स्थित मोतीलाल नेहरू डिवीजनल अस्पताल में एमडी, मनोचिकित्सा डॉ. राकेश पासवान ने दिप्रिंट को बताया, ‘पार्लर चलाकर अपने बच्चों को अकेले पाल रही एक महिला ने कुछ महीने पहले हमसे संपर्क किया था. लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद था लेकिन जैसे ही स्थिति थोड़ी बेहतर हुई, वह मदद के लिए मानसिक स्वास्थ्य वार्ड पहुंची. वह आमदनी में कमी की वजह से होने वाले जबर्दस्त तनाव और एंजाइटी से पीड़ित थी. उसे पैनिक अटैक हुआ था. उसने मुझसे कहा कि वह कर्ज नहीं ले सकती है और मजदूरी करके भी घर नहीं चला सकती. मैंने उसकी काउंसलिंग की. लेकिन छोटे और मध्यम दर्जे के कारोबार से जुड़े तमाम लोग ऐसी ही स्थितियों से जूझ रहे हैं. लोगों पर कर्ज चुकाने का दबाव बढ़ने लगा है. अभी कोई काम-धंधा ठीक नहीं चल रहा. ऐसे में ऐसे कई मामले हमारे सामने आ रहे हैं.’

आपसी संबंध भी बुरी तरह प्रभावित

आत्महत्या के मामलों में पुलिस रिकॉर्ड अक्सर ही मुख्य कारण ‘पति-पत्नी के बीच मतभेद’ को करार देते हैं. डॉ. पासवान कहते हैं, ‘आपसी रिश्ते बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. लगातार दो लॉकडाउन ने पति-पत्नी के बीच मतभेदों को बढ़ा दिया है.’

प्रयागराज में अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक जुलाई 2021 में आत्महत्या करने वाले 26 लोगों में 44 वर्षीय व्यवसायी आशीष गुप्ता भी शामिल थे. 26 जुलाई की शाम करीब साढ़े चार बजे वह गोल मार्केट इलाके में स्थित अपने घर के वॉशरूम में गए. दरवाजा अंदर से बंद किया और फिर खुद को गोली मार ली.

उनके परिवार में 10 और 8 साल की दो बेटियां, पत्नी और माता-पिता हैं. अगस्त में जब दिप्रिंट उनके चचेरे भाई सौरभ से मिला तो उसने एक व्हाट्सएप मैसेज दिखाया था जिसे आशीष ने खुदकुशी करने से कुछ मिनट पहले शाम 4.23 बजे भेजा था—’सौरभ प्लीज चाची से कहना कि मेरी पीहू, पलक और श्वेता और मेरे माता-पिता को संभाल लें. मेरे बच्चे बहुत मासूम हैं और यह दुनिया बहुत निर्मम है. मेरी विनती है कि तुम मेरी आखिरी इच्छा पूरी करना. सौरभ, मेरी मां को एक महीने के बाद लखनऊ के अस्पताल ले जाना है.’

आशीष ने अपनी बहनों और अपनी पत्नी को पांच अन्य मैसेज भी भेजे थी जिसमें इस तरह का कदम उठाने के लिए माफी मांगी गई थी. जहां पर उसकी दुकान स्थित थी, वहां पर अगस्त और सितंबर में कोविड-19 की घातक दूसरी लहर के बाद कारोबार पूरी तरह गति नहीं पकड़ पाया है.

मोहल्ले में बर्तनों का छोटा-मोटा व्यवसाय चलाने वाले 48 वर्षीय मोहम्मद शोएब कहते हैं, ‘मैं पिछले 25 सालों से यह काम कर रहा हूं लेकिन मैंने तो क्या हमारे बुजुर्गों ने भी कभी ऐसा समय नहीं देखा.’

शोएब का कहना है, ‘व्यापार खत्म ही समझिए. पैसा लौटाना है लोगों का, घर से समान की सूची आ जाती है कि ये लेते आना शाम को. दिमाग उलझन में है लगतार. हमें तो सरकार से कोई प्रोत्साहन भी नहीं मिला. पूरा असंगठित क्षेत्र बर्बाद है.’

आशीष का परिवार महामारी या लॉकडाउन को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा पाता. उसके भाई ने जोर देकर कहा कि पूरा साल इतनी अनिश्चितता में बीता कि यह समझना मुश्किल हो गया कि आशीष ने किस वजह से यह कदम उठाया. सौरभ के मुताबिक, ‘एक दिन पहले, वह अपनी बेटियों को बाहर खाना खिलाने के लिए सिविल लाइंस लेकर गया था. उस पर कर्ज भी नहीं था और सब ठीक लग रहा था.’

मोतीलाल नेहरू डिवीजनल हॉस्पिटल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. इशन्या राज आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने के कई कारण बताती हैं. उनका कहना है, ‘बहुत से लोग भारी कर्ज में हैं. लॉकडाउन के दौरान तो कोई भी उनसे पैसे वापस लौटाने को कहने के लिए सीधे तौर पर उनके सामने नहीं आया. लेकिन जैसे ही लॉकडाउन हटा, लोगों को वसूली के लिए लोगों के आने का डर सताने लगा. ये वो समय भी नहीं होता है जब आप परिवार के लोगों से घिरे होते हैं क्योंकि अन्य सदस्य भी बाहर निकलने लगते हैं.’

वह आगे कहती हैं, ‘जब भी लॉकडाउन में ढील दी जाती है, तमाम लोग परेशान होकर हमारे पास पहुंचने लगते हैं.’

कस्बों में भी ऐसा ही हाल

अयोध्या में छोटा-मोटा कारोबार चलाने वाले प्रदीप कुमार ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर प्रयागराज के एक व्यापारी शीतला प्रसाद का अंतिम संस्कार किया.

प्रदीप कुमार बताते हैं, ‘उन्होंने अयोध्या में एक होटल बुक किया था जहां कर्मचारियों ने बाद में उन्हें मृत पाया. कोई भी उसके शव पर दावा करने नहीं आया इसलिए कुछ व्यापारियों ने उसके कुछ रिश्तेदारों का पता लगाया और उन्हें सूचित किया. चूंकि वे नहीं पहुंच सके, इसलिए हमने उनका अंतिम संस्कार किया.’

वह कहते हैं, ‘पुलिस अक्सर दावा करती है कि प्रेम संबंधों के कारण, पत्नी-बच्चों के साथ विवाद, या कभी-कभी किसी तरह की प्रतिद्वंद्विता के कारण ऐसी मौतें होती हैं, लेकिन यह बात सच है कि कोविड ने व्यापारी वर्ग को बुरी तरह प्रभावित किया है. हम तनाव महसूस करते हैं.’

कुमार का यह भी कहना है कि उन्होंने पुलिस से ऐसे मामले के बारे में नहीं सुना है, जिसमें कहा जा रहा हो कि वह मामले की जांच कर रही है क्योंकि शव के पास कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था.


यह भी पढ़ें-अयोध्या में फंदे से लटकी मिली बैंक की डिप्टी मैनेजर, सुसाइड नोट में दो पुलिसकर्मियों का जिक्र


 

share & View comments