नई दिल्ली: सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाण्के ने, अपने द्वारा होस्ट किए गए विवादास्पद शो ‘बिंदास बोल’ में, ‘यूपीएससी जिहाद’ और ‘ब्युरोक्रेसी जिहाद’ शब्दों के इस्तेमाल का बचाव किया है, और सुप्रीम कोर्ट को शो पर लगाया गया बैन हटाने के लिए, राज़ी करने की कोशिश की है.
बुधवार रात शीर्ष आदालत में दायर अपने हलफनामे में, चव्हाणके ने कहा कि वो जानते हैं, कि ‘ज़कात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया (ज़ेडएफआई) को, आतंकियों से जुड़े संगठनों से फंड्स मिले थे’.
अपने हलफनामे में उन्होंने विदेशों में स्थित, उन ग्रुप्स की डिटेल्स भी पेश कीं, जिन्होंने ज़ेडएफआई को फंड्स उपलब्ध कराए हैं, जो सिविल सर्विसेज़ के उम्मीदवारों को कोचिंग मुहैया कराता है. चव्हाण्के ने अपने दावे का आधार, विदेशी चंदों से जुड़े रिकॉर्ड्स जैसे, सरकारी दस्तावेज़ों को बनाया है.
ये दस्तावेज़ शो के प्रसारण के खिलाफ दायर, याचिकाओं के जवाब में दायर किया गया था.
मंगलवार को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली, तीन जजों की एक बेंच ने सुदर्शन न्यूज़ को, विवादास्पद कार्यक्रम के बाक़ी 10 एपीसोड्स प्रसारित करने से रोक दिया था. फैसले से पहले कोर्ट को उन चार एपीसोड्स की क्लिप्स दिखाई गईं थीं, जो पहले ही प्रसारित हो चुके हैं. बेंच ने कहा कि ये कार्यक्रम ‘मुसलमानों को कलंकित’ करता है.
‘नागरिकों और सरकार को जगाना मेरी ज़िम्मेदारी है’
चव्हाणके ने कहा कि उनका प्रयास ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को बेनक़ाब करना है’, और अपने किसी भी एपीसोड में, उन्होंने मुसलमानों के सिविल सर्विसेज़ में जाने का विरोध नहीं किया है. वो चाहते हैं कि अदालत कार्यक्रम पर लगाई रोक को ख़त्म कर दे.
अपने वकील विष्णु जैन के ज़रिए दायर उनके हलफनामे में लिखा है, ‘मैं खोजी पत्रकारिता कर रहा हूं. मुझे लगता है कि ये मेरा कर्तव्य है, कि देश-विरोधी व समाज-विरोधी गतिविधियों, और उनकी कार्य प्रणाली से, अपने देश के नागरिकों और सरकार को अवगत कराऊं.’
उनका कार्यक्रम प्रामाणिक है ये साबित करने के लिए, चव्हाण्के ने ये भी दावा किया, कि उनके शो में ये सवाल भी उठाया गया है, कि क्या अल्पसंख्यक समुदाय के अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को दिए गए लाभ की समीक्षा की जानी चाहिए. उनके दावे के अनुसार, अल्पसंख्यक समुदाय के केंडिडेट्स, ओबीसी और अल्पसंख्यक दोनों स्कीमों का, साथ-साथ फायदा उठा रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि कुछ सियासी और सामाजिक मुद्दे खड़े होते हैं, जिनपर बहस की ज़रूरत है.
बृहस्पतिवार को जब ये मामला कोर्ट के सामने सुनवाई के लिए आया, तो इसे शुक्रवार के लिए टाल दिया गया. इससे पहले याचिकाकर्ताओं ने, सुदर्शन न्यूज़ के हलफनामे का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था. अदालत याचिकाकर्ताओं को ये मौक़ा देने को राज़ी हो गई, और उसने बृहस्पतिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया, कि सुनवाई के लिए बेंच का गठन कर दें.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सभी पक्षों की नुमाइंदगी कर रहे वकीलों से कहा, कि अगर सीजेआई शुक्रवार को बेंच गठित नहीं कर पाते, तो फिर ये मामला सोमवार को सुना जाएगा.
‘उग्रवादी ग्रुप्स कर रहे ज़ेडएफआई की फंडिंग’
हलफनामे में कहा गया, कि ज़ेडएफआई को चंदा देने वाले सभी लोग आतंक से नहीं जुड़े हैं, लेकिन कुछ चंदा देने वाले ऐसे संगठनों से जुड़े हैं, जो ‘उग्रवादी ग्रुप्स’ को फंड करते हैं.
हलफनामे में कहा गया है कि “प्राप्त किए हुए पैसे का इस्तेमाल, ज़ेडएफआई आईएएस, आईपीएस या यूपीएससी के उम्मीदवारों की सहायता करने में करती है.
सुरेश चव्हाणके ने इस बात से इनकार किया, कि अभी तक प्रसारित किए गए एपीसोड्स में, कोई ऐसा बयान या संदेश था, कि एक विशेष समुदाय के सदस्यों को, यूपीएससी में नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सिविल सर्विसेज़ एक खुला इम्तिहान है, और हर समुदाय के सदस्य, इसके एंट्रेंस एग्ज़ाम में बैठकर क्वालिफाई कर सकते हैं.
हलफनामे में कहा गया, ‘कार्यक्रम का ज़ोर इस बात पर है, कि कहीं कोई साज़िश नज़र आती है, जिसकी एनआईए या सीबीआई से जांच कराने की ज़रूरत है. ऐसा लगता है कि आतंक से जुड़ी संस्थाएं ज़कात फाउंडेशन ऑफ इंडिया को पैसा दे रही हैं, जो फिर यूपीएससी उम्मीदवारों की सहायता कर रहा है.’
हलफनामे में लिखा है, ‘डिज़ाइन ये है कि अंतर्राष्ट्रीय कट्टरपंथियों की वित्तीय सहायता से, ऐसे लोगों को नियुक्त कराया जाए, जो भारत में उनके परोक्ष उद्देश्यों को हासिल कर सकें, जिससे भारत की सुरक्षा को गंभीर ख़तरा पैदा हो सकता है.’
‘किसी समुदाय से कोई बैर नहीं’
हलफनामे में सुरेश चव्हाणके ने ये भी कहा, भारत से बाहर काम कर रही कुछ संस्थाओं ने, नौकरशाही में घुसपैठ के लिए एक साज़िश रची है.
उन्होंने कहा, “मैं यहां ज़ोर देकर कहता हूं, कि मेरे मन में किसी समुदाय या किसी व्यक्ति के प्रति कोई बैर नहीं है. मैं किसी भी मेधावी उम्मीदवार के, केंद्र या राज्यों की सेवा में चयन का विरोध नहीं करता”.
सुरेश चव्हाणके ने आतंक-विरोधी क़ानून, गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) एक्ट, 1967 (यूएपीए) का उल्लेख किया, जिसमें किसी आतंकी संस्था, गैंग या किसी आतंकवादी से फंड्स स्वीकार करना, अपराध माना गया है, भले ही इस तरह प्राप्त किए गए फंड्स, किसी काम को अंजाम देने में वास्तव में इस्तेमाल हुए हों या नहीं.
उन्होंने ये भी कहा कि उनके शो में, मुसलमानों के ओबीसी कोटा का फायदा उठाने पर एतराज़ किया गया है, और इसे सांप्रदायिक नहीं कहा जा सकता.
चव्हाणके के वकील जैन ने कहा, ‘जवाब दे रहे प्रतिवादी ने बस एक सवाल उठाया है, कि अल्पसंख्यक स्कीम और मुस्लिम ओबीसीज़ दोनों का फायदा, साथ साथ कैसे उठाया जा सकता है, और ये समाज के दूसरे वर्गों से साथ भेदभाव है’.
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Supreme court Kisi ke BHI bahkawe me asker galat फैसला ना दे जकात foundation ke मौलवी सभा आयोजन करके अपने समुदाय के लोगो को beaureucracy में घुसपैठ करने का आह्वान करता है ताकि वो अपने majhub के मकसद को पूरा कर सके भारत को इस्लामिक राष्ट्र बना सके वो देश के प्रति क्या वफादारी का सबूत है