नई दिल्ली: मोदी सरकार पहल योजना के तहत तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) यानी रसोई गैस सिलेंडर के लिए मिलने वाली सब्सिडी खत्म करने की योजना बना रही है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा कि अपने खर्च पर काबू पाने और राजकोषीय घाटे पर लगाम कसने लगाने के लिए सरकार को यह सब्सिडी खत्म करने पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है क्योंकि कठिन आर्थिक परिस्थितियों से विकास और राजस्व पर प्रतिकूल असर पड़ा है.
नाम न छापने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि यह कदम ऐसे समय उठाने पर विचार किया जा रहा है जब पेट्रोलियम उत्पादों को रियायती दरों पर बेचने के कारण तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की अंडर-रिकवरी बढ़ गई है और सरकार के लिए एक स्वैच्छिक योजना पहल के बिल का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है.
उन्होंने आगे कहा, ‘यद्यपि सब्सिडी की राशि छोटी है, लेकिन कुल सरकारी खर्च को युक्तिसंगत बनाना महत्वपूर्ण है. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय इस आशय का प्रस्ताव तैयार कर रहा है.’
केंद्र ने 2022-23 के बजट में पहल योजना के तहत 800 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं. हालांकि, इस वित्त वर्ष के लिए कुल एलपीजी सब्सिडी का बजट 5,812 करोड़ रुपये है, जिसमें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को वितरित किए जाने वाले मुफ्त गैस सिलेंडर भी शामिल हैं.
वित्त मंत्रालय ने मई के लिए अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा है कि डीजल और पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद सरकारी राजस्व में कमी के कारण सकल राजकोषीय घाटा बजट स्तर से ऊपर पहुंच जाने का खतरा सामने आया है.
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘नॉन-कैपेक्स एक्सपेंडिचर को युक्तिसंगत बनाना न केवल विकास में सहायक कैपेक्स की रक्षा बल्कि राजकोषीय घाटा और बढ़ने से बचने के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया है.’
2022-23 के लिए राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.4 प्रतिशत या 16.61 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
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क्या है पहल योजना
पहल योजना को पहली बार 2013 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने शुरू किया था. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसे संशोधित किया गया और फिर दो चरणों में शुरू किया गया—पहले 2014 में शुरुआत हुई और फिर 2015 में पूर्ण रोलआउट किया गया. इसका – उद्देश्य एलपीसी सब्सिडी के वितरण में लीकेज रोकना था.
योजना के तहत, उपभोक्ता घरेलू एलपीजी सिलेंडर के बाजार मूल्य का भुगतान करते, और सब्सिडी सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित कर दी जाती.
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की वेबसाइट के मुताबिक, दिल्ली में उपभोक्ता फिलहाल 14.2 किलो वाले सिलेंडर के लिए 1,053 रुपये का भुगतान करते हैं. 2020 में सरकार ने एक बयान में कहा था कि दिल्ली के उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी राशि 291 रुपये प्रति सिलेंडर निर्धारित की गई है.
रोलआउट के तुरंत बाद सरकार ने महसूस किया कि जवाबदेही का अभाव था, जिसके वजह से खराब उपभोक्ता सेवा और एलपीजी सब्सिडी के डायवर्जन जैसी समस्याएं सामने आईं.
इस योजना को संशोधित करते समय यह निर्णय लिया गया था कि सब्सिडी का लाभ उठाने वालों को कैश ट्रांसफर कंप्लाइंट (सीटीसी) उपभोक्ता बनने के लिए अपने आधार नंबर को एलपीजी डेटाबेस और बैंक खाता डेटाबेस से जोड़ना होगा.
अधिकारी ने कहा, ‘पहल (एलपीजी उपभोक्ता के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) योजना का मुख्य उद्देश्य सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर का डायवर्जन रोकना है.’
पहल योजना के तहत एलपीजी सब्सिडी केवल उन उपभोक्ताओं या उनके जीवनसाथी के लिए उपलब्ध है जिनकी कर योग्य आय एक वर्ष में 10 लाख रुपये से अधिक नहीं है.
पिछले साल फरवरी में, केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि 1 फरवरी 2021 तक 1.08 करोड़ एलपीजी उपभोक्ताओं ने अपनी सब्सिडी छोड़ दी थी.
योजना शुरू करते समय सरकार ने कहा था, ‘नागरिकों पर भरोसा करने के नजरिये को ध्यान में रखते हुए इसे जनवरी 2016 से सिलेंडर बुक करते समय शुरू में स्व-घोषणा के आधार पर लागू किया जाएगा.’
सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘सोचा यही गया था कि अंततः बहुत से लोग स्वेच्छा से योजना का लाभ छोड़ देंगे क्योंकि उनकी आय में सुधार होगा.’
योजना को लेकर चिंताएं इसलिए भी उभरी हैं क्योंकि सब्सिडी के भारी बोझ के बारे में उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी के अलावा, घरेलू सब्सिडी वाले एलपीजी के बाजार मूल्य से कम कीमत के कारण वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए सब्सिडी वाले एलपीजी इस्तेमाल बढ़ा है, जो कि राजकोषीय बोझ को अनावश्यक रूप से बढ़ाता है.
जून में पेट्रोलियम सचिव पंकज जैन ने कहा था कि जून 2020 से रसोई गैस के लिए किसी सब्सिडी का भुगतान नहीं किया गया है और केवल प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत प्रति सिलेंडर 200 रुपये की सब्सिडी प्रदान की जा रही है.
उसी महीने तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, ‘अगर परिभाषा को देखे तो सब्सिडी को विस्तार और बढ़ाने के लिए डिजाइन नहीं किया गया है. परिभाषा के अनुसार सब्सिडी को हतोत्साहित किया जाना चाहिए.’
फिजूलखर्ची खत्म करने पर जोर देना तब और भी बढ़ गया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार राज्यों की तरफ से मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने की बात कह रहे हैं.
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