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Sunday, 3 November, 2024
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पुणे के प्रमुख रेड-लाइट क्षेत्र में 99 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स वैकल्पिक आजीविका चाहती हैं : स्टडी

आशा केयर ट्रस्ट द्वारा किए गए अध्ययन में बुधावर पेठ में 300 उत्तरदाताओं को शामिल किया गया, भारत के तीसरे सबसे बड़े रेड-लाइट एरिया में लगभग 700 वेश्यालय में 3,000 सेक्स वर्कर हैं.

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नई दिल्ली: पुणे में हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि शहर में 99 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स अब कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर रोजगार के वैकल्पिक अवसरों की तलाश में हैं.

यह अध्ययन आशा केयर ट्रस्ट द्वारा संचालित किया गया था, जो कि सेक्स वर्कर्स के कल्याण के लिए काम करता है. यह ट्रस्ट पुणे के बुधावर पेठ में स्थित है, जो भारत का तीसरा सबसे बड़ा रेड-लाइट क्षेत्र है. 700 वेश्यालय में लगभग 3,000 सेक्स वर्कर्स के आवास हैं. अध्ययन में 300 सेक्स वर्कर्स की प्रतिक्रियाएं शामिल थीं.

रिपोर्ट में यह देखते हुए उल्लेख किया गया है कि लॉकडाउन के दौरान यौन सेवाओं की मांग में भारी कमी आई, सेक्स वर्कर्स को जीवित रहने के लिए पैसे उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. 85 प्रतिशत से अधिक वर्कर ने ऋण लिया है और उनमें से 98 प्रतिशत से अधिक ने उन्हें अपने वेश्यालय के मालिकों, प्रबंधकों और साहूकारों से लिया है, जो आगे शोषण के अधीन हैं.

उन्होंने कहा, ‘अधिक चिंताजनक बात यह है कि 87 प्रतिशत वर्कर्स ने कहा कि महामारी से पहले भी उनकी आय स्वयं या उनके परिवारों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त नहीं थी. शिक्षा और रोजगार योग्य कौशल की कमी जैसे प्रमुख कारक उन्हें आय के एक स्रोत पर निर्भर करने के लिए मजबूर करते हैं, अर्थात देह व्यापार के माध्यम से कमाई और एक दुष्चक्र में फंसे रहना पड़ता है.’ रिपोर्ट में कहा गया है, सर्वेक्षण में शामिल लगभग सभी वर्कर्स आजीविका के स्रोत के विकल्प तलाशने के लिए उत्सुक हैं.


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रिपोर्ट में इन सेक्स वर्कर्स के कई सामाजिक-आर्थिक कारकों को भी बताया गया है. जबकि उनमें से 82 प्रतिशत 25-45 वर्ष के आयु वर्ग में आते हैं, कुछ को नाबालिग होने पर व्यापार में मजबूर किया गया. 84 प्रतिशत से अधिक की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई है और बाकी हाईस्कूल खत्म होने से पहले उन्हें देह व्यापार में धकेल दिया गया है.

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि 92.7 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे सेक्स के काम को फिर से शुरू करने से डरते हैं, वे भुखमरी से भी चिंतित हैं.

सर्वे रिपोर्ट में आशा केयर ट्रस्ट ने सुझाव दिया कि जिला और राज्य प्रशासन एनजीओ द्वारा डेटा एंट्री, टेलीकॉलिंग, सेल्स, टेलरिंग और वर्किंग जैसे क्षेत्रों में महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत बुनियादी कौशल-प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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