कच्छ (गुजरात): गुजरात के कच्छ जिले में पशुपालन विभाग में उपनिदेशक हरेश ठाकर इन दिनों काफी व्यस्त हैं. हजारों मवेशियों के बीमार होने और लंपी स्किन डिसीज—जो एक वायरल संक्रमण होता है—के शिकार होने के बीच वह सप्ताहांत के मध्य में भी काम कर रहे हैं. वह गुजरात के सबसे बड़े जिले में टीकाकरण और मवेशियों के उपचार पर लगातार नजर रखे हैं.
अपनी व्यस्तता के बीच समय निकालकर वह जैसे ही दिप्रिंट को कुछ अपडेट देने को तैयार होते हैं, रविवार के टीकाकरण संख्या पर तालुका-वार रिपोर्ट उनके हाथों में होती है. वह बात करने के साथ ही अपनी नजरें हाथ में मौजूद दस्तावेजों पर गड़ा देते हैं.
ठाकर ने कहा, ‘हम हर दिन 20,000 से 25,000 गायों का टीकाकरण कर रहे हैं. अब तक 3.3 लाख से अधिक मवेशियों का टीकाकरण किया जा चुका है.’
कैप्रीपॉक्स वायरस के कारण लंपी काऊ डिसीज (एलएसडी) गाय और भैंस दोनों को प्रभावित करती है. जिले के अधिकारियों के मुताबिक, गुजरात में गायों में इसका प्रकोप अधिक पाया गया है.
इस रोग का नाम मवेशियों की त्वचा पर बड़ी और कड़ी गांठ पड़ जाने की वजह से लंपी स्किन पड़ा है. अवसाद, कंजक्टीवाइजिस (नेत्र रोग) और अधिक लार आना इस बीमारी के कुछ अन्य लक्षण हैं. अंतत:, गांठें फट जाती हैं, जिससे जानवरों का खून बहने लगता है. फिलहाल इस वायरल संक्रमण का कोई ठोस इलाज नहीं है और ज्यादातर उपचार क्लिनिकल सिम्पटम के आधार पर किया जाता है. मवेशियों को लग रहा टीका वही है जो गोटपॉक्स वायरस के लिए दिया जाता है.
अब तक राजस्थान के कम से कम 16 जिलों और गुजरात में 20 जिलों से ये बीमारी सामने आई है. मवेशियों की बीमारी पंजाब में भी फैली है.
अनुमानित तौर पर राजस्थान में गुरुवार तक 5,807 मवेशियों की मौत हो चुकी थी और संक्रमित जानवरों की संख्या 1,20,782 तक पहुंच गई है, पंजाब में एक महीने में 400 से अधिक मवेशियों की मौत हुई है और लगभग 20,000 संक्रमित हैं.
गुजरात में, संक्रमित मवेशियों का आंकड़ा पिछले मंगलवार को 55,950 था जबकि पशुपालन विभाग ने पिछले महीने इस बीमारी से मौतों की संख्या 1,200 से अधिक होने का अनुमान लगाया था. हालांकि, मवेशियों की देखभाल के लिए स्थापित स्थानीय शिविरों में मौजूद वालंटियर्स ने पिछले सप्ताह दिप्रिंट को बताया था कि यह संख्या बहुत अधिक थी—तकरीबन 20,000 के करीब.
कच्छ में, कर्मचारियों की कमी और गांवों के बीच लंबी दूरी के कारण संकट और भी ज्यादा गहरा गया है.
जिले में जिला पशु चिकित्सा अधिकारियों के 36 में से 22 पद खाली पड़े हैं, यहां प्रशासन को 78 टीमों को तैयार करने के लिए सहकारी दुग्ध समितियों के पशु चिकित्सकों के साथ-साथ कई संस्थानों के मेडिकल छात्रों को भी साथ लेना पड़ा है, जो जिले में एलएसडी के प्रकोप से निपटने में जुटे हैं.
ठाकर ने कहा, कच्छ सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से है, खासकर भुज शहर. उन्होंने कहा, ‘हमें लोगों से पूरा समर्थन मिला है. दवा देने में डॉक्टर को ज्यादा समय नहीं लगता है. हालांकि, प्रभावित गायों की देखभाल करना एक बड़ा काम है और इसी में वालंटियर्स का सहयोग बहुत अहम साबित हो रहा है.’
ठाकर ने बताया कि जिले में सरकारी स्टाफ, डेयरी सहकारी समितियों के डॉक्टरों, शोधकर्ताओं और मेडिकल कॉलेजों के छात्रों सहित लगभग 200 पशु चिकित्सकों को तैनात किया गया है. हालांकि, उनके लिए 45,674 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 5.75 लाख से अधिक की मवेशी आबादी के बीच पहुंचना किसी चुनौतीपूर्ण काम से कम नहीं है.
बीमारी के खिलाफ जंग में टीकाकरण अभियान, शहरों-कस्बों स्थित आइसोलेशन सेंटर (संक्रमितों के लिए) में मवेशियों का इलाज करना और 939 गांवों और छह नगर पालिकाओं में पशु मालिकों की तरफ से आने वाली आपातकालीन कॉल पर इलाज के लिए जाना शामिल है.
अक्सर पशु चिकित्सकों को पशु मालिकों के संदेह का सामना भी करना पड़ता है, जो इलाज कराने में हिचकिचाते हैं. ठाकर ने बताया कि इससे निपटने के लिए डॉक्टर कोविड की तरह ही इस बीमारी को लेकर भी जागरूकता बढ़ा रहे हैं और उचित टीकाकरण और इलाज की जरूरत के बारे में लोगों को समझाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘शहर में सड़कों पर छुट्टा घूमने वाले मवेशी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. उनके पेट का अस्सी फीसदी हिस्सा प्लास्टिक से भरा है. इसलिए वे पहले ही स्वस्थ नहीं हैं. गांवों में परिवारों की देखरेख में पलने वाले मवेशियों के ठीक होने की संभावना ज्यादा होती है.’
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संक्रमित पशुओं के लिए आइसोलेशन वार्ड, आवारा मवेशी सबसे ज्यादा प्रभावित
जिले के अंजार तालुका स्थित पशु दवाखाना में अंजार और गांधीधाम के लिए संपर्क अधिकारी के रूप में तैनात डॉ. गिरीश परमार ने दिप्रिंट को बताया कि गांवों से आने वाली कॉल अटैंड करने के लिए दोनों तालुकों में पांच मोबाइल वैन तैनात की गई हैं. साथ ही क्षेत्र में छह गौशालाएं और दो आइसोलेशन सेंटर बने हुए हैं.
हर सुबह मोबाइल वैन अपना दौरा शुरू करने से पहले दवाइयों और टीकों पर स्टॉक के संबंध में दवाखाने में रिपोर्ट करते हैं.
अंजार डिस्पेंसरी के निकटतम आइसोलेशन सेंटर कच्छ जिले के भाजपा उपाध्यक्ष भरतभाई शाह के स्वामित्व वाली जमीन के एक हिस्से पर बना है.
परमार के मुताबिक, आइसोलेशन सेंटर में रखे जाने वाले ज्यादातर मवेशी आवारा होते हैं, जो इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.
आइसोलेशन सेंटर में मौजूद स्वयंसेवकों का दावा है कि सेंटर चलाने के लिए सरकार की ओर से कोई धन नहीं दिया गया है और धर्मार्थ ट्रस्ट, स्थानीय पार्टी नेताओं और गौरक्षकों से मिलने वाले दान की बदौलत ही वे प्रभावित मवेशियों की देखभाल करने में लगे हैं.
अंजार के पशु चिकित्सा अधिकारी प्रदीप पढियार प्रभावित मवेशियों की देखरेख और उनके उपचार में जुटे हैं. वह स्थानीय वालंटियर्स को उनके इलाज के तरीकों के बारे में सिखाते हैं.
दिप्रिंट अंजार आइसोलेशन सेंटर से पढियार और परमार के साथ चंद्राणी स्थित एक गौशाला पहुंचा, जहां तालुका में पहला आइसोलेशन वार्ड शुरू हुआ था.
चंद्राणी अंजार स्थित औषधालय से करीब 22 किलोमीटर दूर है. यातायात, बारिश और आवारा मवेशियों (बीमार और स्वस्थ) की भीड़ के बीच राजमार्ग पर रेंगते यातायात के बावजूद टीम नियमित रूप से आइसोलेशन वार्ड में स्वयंसेवकों मार्गदर्शन करने पहुंचती है.
यहां पर टीम जानवरों की जांच करती है, गंभीर रूप से बीमार मवेशियों के लिए दवाएं उपलब्ध कराती है और जरूरत होने पर मवेशी बारिश और पोखर से दूर ले जाने में मदद भी करती है.
चंद्राणी गौशाला से सटी सरहद सहकारी समिति में कार्यरत डॉ. रंजीत स्वामी पिछले तीन सप्ताह से पढियार की सहायता कर रहे हैं.
स्वामी के मुताबिक, गौशाला पिछले एक महीने से अधिक समय से लंपी स्किन डिसीज के मामलों से निपट रही है. हम यहां हर सुबह और शाम प्रभावित गायों के इलाज के लिए आते रहते हैं.
मॉनसून और पशु मालिकों का संशय एक बड़ी चुनौती
पढियार की टीम की मदद के लिए 270 किलोमीटर दूर बनासकांठा जिले के पशु चिकित्सक निखिल मोदी को तैनात किया गया है.
मोदी ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल कच्छ में सामान्य से अधिक बारिश ने उनके लिए हालात और खराब कर दिए हैं.
मोदी ने कहा, ‘बारिश और उमस भरी जलवायु संक्रमित मवेशियों के ठीक होने में लगने वाली समयावधि बढ़ा देती है. इसने क्षेत्र में मच्छरों और मक्खियों की संख्या भी खासी बढ़ गई है जो संक्रमण को और ज्यादा फैलाते हैं.’
लंपी स्किन डिसीज वेक्टर-जनित होती है जिसका मतलब है कि मक्खियों और मच्छरों के जरिए यह रोग फैल सकता है.
मोदी ने आगे कहा, ‘ग्रामीणों को बीमारी और उसके उपचार प्रोटोकॉल के बारे में समझाना बहुत मुश्किल होता है. उनका परिवार पीढ़ियों से गायों की देखभाल करता आ रहा है, तो उन डॉक्टरों पर वह आसानी से भरोसा कैसे कर सकते हैं जिनसे पहले कभी मिले तक नहीं हैं?’
इसके अलावा, लंपी स्किन डिसीज का कोई ठोस उपचार भी नहीं है. पढियार ने कहा, ‘हम केवल लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं. गाय ठीक हो पाती है या नहीं यह काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करता कि उसे अतीत में किस तरह का पोषण मिलता रहा है.’
ठाकर के अनुसार, हालांकि, पिछले दो वर्षों के कोविड महामारी ने जिलों के सबसे दूरस्थ गांवों को वायरस के बारे में जागरूक करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है.
उन्होंने कहा, ‘हमने बीमारी फैलने के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या के लिए कोविड को एक उदाहरण की तरह सामने रखा. कोविड के अनुभवों की वजह से ही कई गांव आइसोलेशन का मतलब समझ सके. उन्हें लगा कि टीके काम करते हैं और प्रतिरक्षा विकसित होने में कुछ समय लगता है.’
परमार ने बताया कि कोविड प्रैक्टिस की तर्ज पर ही संक्रमित गायों को अपने शेड से बाहर निकालने वाले ग्रामीणों पर 100 रुपए का जुर्माना भी लगाया जाता है.
हालांकि, ठाकर ने इस बात पर अफसोस जताया कि विभाग में कर्मचारियों की कमी है. उन्होंने कहा, ‘पशु चिकित्सा अधिकारी के पद आमतौर पर खाली रहते हैं. हमारे पास कई वर्षों से एक समय में 20 से अधिक अधिकारी नहीं थे. लोग कच्छ जिले में पोस्टिंग नहीं करना चाहते क्योंकि हर दिन जितनी दूर आवाजाही करनी होती है, वो इस काम को और चुनौतीपूर्ण बना देती है.’
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