इंफाल, आठ दिसंबर (भाषा) मणिपुर के कई शिक्षाविदों ने कहा कि लंबे समय से जारी हिंसा, लगातार इंटरनेट बंद रहने, कर्फ्यू और आम हड़ताल के कारण पूर्वोत्तर राज्य में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को शैक्षणिक और करियर संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि लगातार इंटरनेट बंद होने के कारण विद्यार्थियों को ऑनलाइन संसाधनों तक पहुंच बनाने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और कई कंपनियां कर्फ्यू और हड़ताल के कारण रोजगार अभियान के लिए मणिपुर के कॉलेज परिसरों में जाने से हिचकिचा रही हैं।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) मणिपुर के कंप्यूटर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख और प्लेसमेंट प्रभारी के.एच. जॉनसन सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “राज्य में हिंसा भड़कने के बाद हमने भर्ती अभियान में कमी देखी है। इस साल कम से कम 40 कंपनियां (डिजिटल माध्यम से) भर्ती के लिये आईं और 70 विद्यार्थियों का चयन किया। यह हिंसा भड़कने से पहले की तुलना में बहुत कम है। हमें लगभग 100 विद्यार्थियों के चयन और लगभग 50 कंपनियों के आने की उम्मीद थी।”
उन्होंने कहा, “भौतिक रूप से साक्षात्कार पसंद करने वाली कंपनियां कॉलेजों में आने के लिए अनिच्छुक हैं। एनआईटी परिसर सुरक्षित है और हवाई अड्डे से केवल 20 मिनट की दूरी पर है जैसे हमारे आश्वासनों के बावजूद सड़कों पर टायर जलाने, भीड़ द्वारा हिंसा और परिधीय क्षेत्रों में गोलीबारी की खबरों ने उनके दिलों-दिमाग को प्रभावित किया है।”
मणिपुर विश्वविद्यालय में जन संचार की सहायक प्रोफेसर नताशा एलंगबाम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हमारे हर विभाग के विद्यार्थी की ऑनलाइन संसाधनों तक सीमित पहुंच है, क्योंकि उनमें से अधिकांश मोबाइल इंटरनेट डेटा पर निर्भर हैं। कर्फ्यू और हड़तालों ने कक्षाओं को बुरी तरह प्रभावित किया है। विद्यार्थियों को दिए गए काम समय पर पूरा करने में भी बाधा आ रही है क्योंकि कई विद्यार्थियों के घरों में ब्रॉडबैंड नहीं है।”
उन्होंने बताया कि इंटरनेट बंद होने से करियर परामर्श एजेंसियां भी बुरी तरह प्रभावित हुई है क्योंकि कई वरिष्ठ परामर्शदाता रोजगार की तलाश कर रहे विद्यार्थियों को वांछित जानकारी प्रदान करने में असमर्थ हैं।
परामर्शदाताओं ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय कंपनियों को बायोडेटा भेजने की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है।
एस.एस. करियर काउंसलिंग के निदेशक सपम जॉयचंद्र ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हम विद्यार्थियों का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करने में असमर्थ हैं। जूम, ऑनलाइन छद्म परीक्षा और अन्य साधनों के माध्यम से काउंसलिंग प्रभावित हुई है। छात्र बाहरी कंपनियों को समय पर अपना बायोडेटा नहीं भेज पा रहे हैं।”
उन्होंने बताया, “जिन विद्यार्थियों के पास ब्रॉडबैंड है, वे बहुत सीमित हैं और अधिकांश विद्यार्थी अपनी शिक्षा व करियर से संबंधित हर तरह के अपडेट के लिए मोबाइल डेटा इंटरनेट सेवाओं पर निर्भर हैं। अकेले मेरे संगठन के लिए हिंसा से पहले और बाद में विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान करने की गतिविधियों में 90 प्रतिशत का भारी बदलाव आया है।”
पिछले वर्ष मई से मेइती और कुकी-जो समूहों के बीच जातीय हिंसा में 250 से अधिक लोगों की मौत हुई है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।
भाषा जितेंद्र प्रशांत
प्रशांत
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