नई दिल्ली: कुलपति के भाषण की कथित आलोचना करने के कारण निलंबित की गई डॉ. बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली (एयूडी) की छात्रा का मानना है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि कैंपस में असहमति जताने वालों को निशाना बनाने वाले बड़े पैटर्न का हिस्सा है.
एमए फाइनल इयर की स्टूडेंट, जो ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) की सदस्य भी हैं, उनको छह महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है, जिसके दौरान वे कैंपस में प्रवेश नहीं कर सकती हैं.
छात्रा ने दिप्रिंट से कहा, “यह पहली बार है जब किसी स्टूडेंट को यूनिवर्सिटी के आधिकारिक ईमेल चेन के ज़रिए से राजनीतिक जुड़ाव के लिए निलंबित किया गया है. एयूडी में हमेशा से छात्रों द्वारा प्रशासनिक फैसलों की आलोचना करने की परंपरा रही है, लेकिन जब कोई मुस्लिम महिला अपनी आवाज़ उठाती है, तो उसे सॉफ्ट टारगेट समझा जाता है.”
उन्होंने कहा कि पूरी कार्रवाई उनके ज़रिए उदाहरण पेश करने का एक तरीका है. “वह (एयूडी प्रशासन) चाहते हैं कि छात्र यह जानें कि अगर उन्होंने अपनी आवाज़ उठाने की ज़हमत की तो उनके साथ भी ऐसा हो सकता है.”
17 फरवरी को जारी किए गए अपने कारण बताओ नोटिस में, AUD प्रशासन ने निलंबन के कारणों के रूप में “अनुशासनहीनता” और “संस्था प्रमुख के खिलाफ अपमानजनक भाषा का उपयोग” का हवाला दिया. नोटिस में कहा गया है कि छात्रा ने आचार संहिता का उल्लंघन किया था.
इस कदम ने विभिन्न छात्र समूहों और फैकल्टी मेंबर्स के बीच विरोध को जन्म दिया है, जिन्होंने निलंबन आदेश को रद्द करने की मांग की है.
संबंधित छात्रा ने एयूडी की कुलपति अनु सिंह लाठर के गणतंत्र दिवस के भाषण पर आपत्ति जताई थी, जिसमें उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना की प्रशंसा की थी. कुलपति के अनुसार, आंबेडकर को दलित पहचान तक सीमित रखने के बजाय एक राष्ट्रीय व्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए.
इन टिप्पणियों की छात्र समुदाय के कुछ वर्गों, विशेष रूप से आइसा ने आलोचना की, जिसने एक बयान जारी कर भाषण की निंदा करते हुए इसे “समस्याग्रस्त, जातिवादी और सांप्रदायिक” बताया.
जबकि उन्हें बुधवार को दूसरी बार अनुशासन समिति (डीसी) के समक्ष बुलाया गया था, वे 27 फरवरी को पहली बार उपस्थित हुई थीं.
छात्रा ने कहा, “मुझे 26 फरवरी को शाम 6 बजे सुनवाई के बारे में सूचित किया गया और अगले दिन दोपहर 12:30 बजे अपने माता-पिता के साथ समिति के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा गया. मेरे माता-पिता सीधे लोग हैं और उन्हें इसमें शामिल करना तूफान खड़ा करने की कोशिश थी.” चूंकि, उन्हें पूरे शीतकालीन सेमेस्टर के लिए निलंबित किया गया है, इसलिए छात्रा ने आगे कहा कि वे अपना शोध प्रबंध केवल अगले बैच के साथ ही जमा कर पाएंगी, जिससे उनकी एकादमिक प्रोग्रेस में एक साल की देरी होगी.
एमए की फाइनल इयर स्टूडेंट ने कहा, “इस फैसले ने मेरी पूरी एकादमिक टाइमलाइन को बाधित कर दिया है. यह मुझे इन छह महीनों से हटकर केवल दंडित करने के लिए है.” उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल वे कुलपति से अपील कर रही हैं. “अगर वे विफल रहेंगी, तो मामले को कुलाधिपति के पास ले जाएंगी और अगर ज़रूरी हुआ, तो मैं कोर्ट में इसके लिए लड़ने के लिए तैयार हूं.”
दिप्रिंट ने कुलपति लाठर से संपर्क किया, जिन्होंने विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) को कॉल करने का निर्देश दिया. बाद में, पीआरओ द्वारा दिप्रिंट के साथ साझा किए गए एक बयान में, विश्वविद्यालय ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई निष्पक्ष रूप से और स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार की जाती है.
बयान में कहा गया है, “डॉ. बी.आर. आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली छात्रों के लिए एक अच्छा शैक्षणिक माहौल सुनिश्चित करते हुए अनुशासन बनाए रखने के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता रखता है.” साथ ही कहा गया है कि विश्वविद्यालय का प्रॉक्टोरियल बोर्ड अनुशासनहीनता के किसी भी मामले को संबोधित करते समय “सुसंगत और निष्पक्ष” दृष्टिकोण अपनाता है, पृष्ठभूमि या परिस्थितियों की परवाह किए बिना हर छात्र के साथ समान व्यवहार करता है.
इसमें आगे कहा गया है कि बोर्ड किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले पूरी तरह से जांच करता है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी फैसले तय नियमों के अनुसार हों. “विश्वविद्यालय प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा लिए गए हर फैसले में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करते हुए अनुशासन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. हमारी प्राथमिकता एक ऐसा माहौल बनाना है जहां सभी छात्रों के साथ समान व्यवहार किया जाए, जिम्मेदारी और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए.”
हालांकि, जब इस मामले से संबंधित विशेष रूप से सवाल पूछे गए, तो पीआरओ ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
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मिसाल कायम करना?
छात्रा ने कैंपस में इस्लामोफोबिया के पिछले अनुभवों को याद किया, जिसमें यूनिवर्सिटी की ईमेल सीरीज़ में सांप्रदायिक टिप्पणी की गई घटनाएं भी शामिल हैं. दिप्रिंट ने इनमें से कुछ ईमेल के स्क्रीनशॉट को देखा है, जिनमें ‘लव जिहाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल था.
छात्रा ने कहा, “पिछले पांच साल में छात्रों को अक्सर ऐसी भाषा से बचने को कहा गया है जिससे उन्हें परेशानी न हो, लेकिन असल में कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई. जब तक सांप्रदायिक चीज़ें होती रहेंगी, तब तक कोई जवाबदेही नहीं होगी.”
उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले कुलपति और अन्य अधिकारियों को टैग करते हुए एक ईमेल लिखा था, जिसमें उनके लिए निर्देशित इस्लामोफोबिक बातों के कई स्क्रीनशॉट संलग्न थे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
उन्होंने बताया, “दूसरी ओर, जब मैंने कुलपति के भाषण में जातिवादी और सांप्रदायिक तत्वों की ओर इशारा किया, तो मुझे निलंबित कर दिया गया.”
फैकल्टी मेंबर्स और स्टूडेंट्स ने निलंबित छात्रा के साथ एकजुटता दिखाई. उन्होंने सोमवार को कुलपति के कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया.
ऐसे ही एक विरोध प्रदर्शन में, AUD के स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स के प्रोफेसर कौस्तव बनर्जी ने प्रॉक्टोरियल बोर्ड के फैसलों की मनमानी प्रकृति की निंदा की.
उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी कोई निजी संपत्ति नहीं है. यह छात्रों और प्रोफेसरों का है, न कि किसी ऐसे प्रशासन का जो इसे “जेल” की तरह मानता है. “अन्यायपूर्ण तरीके से निलंबित की गई छात्रा को वापस लाया जाना चाहिए. यह एक ऐसी जगह है जहां हर चीज़ पर सवाल उठाए जाने चाहिए, लेकिन अगर छात्रों को सवाल पूछने के लिए दंडित किया जा रहा है, तो हम सभी पर हमला हो रहा है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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