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Sunday, 29 September, 2024
होमदेशपश्चिम महाराष्ट्र में स्ट्रॉबेरी उत्पादकों पर 'कोरोना लॉकडाउन' की मार, व्यवसाय पर 40% घाटे के आसार

पश्चिम महाराष्ट्र में स्ट्रॉबेरी उत्पादकों पर ‘कोरोना लॉकडाउन’ की मार, व्यवसाय पर 40% घाटे के आसार

इन दिनों लॉकडाउन की वजह से पूरे देश भर के लगभग सभी बाजार बंद हैं. इसलिए, स्ट्रॉबेरी का माल महाबलेश्वर से मुंबई, पुणे और सूरत के बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहा है.

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पुणे: लॉकडाउन ने पश्चिम महाराष्ट्र में स्ट्रॉबेरी उत्पादकों को परेशानी में डाल दिया है. इस समय बाजार पर छाई मंदी के बादल और ग्राहकों की कमी के कारण स्ट्रॉबेरी उत्पादक अपनी फसल खेतों में ही सड़ाने के लिए मजबूर हो रहे हैं. इससे इस वर्ष उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ने की आशंका है.

स्ट्रॉबेरी के मामले में महाराष्ट्र के अंतर्गत सतारा जिले का महाबलेश्वर तहसील पूरे देश में प्रसिद्ध है. इस इलाके से मुंबई सहित अन्य राज्यों और देशों के लिए स्ट्रॉबेरी निर्यात किया जाता है. अकेले महाबलेश्वर तहसील में ढाई हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की फसल उगाई जाती है. यहां लिंगमला, मेटगुताड, अवकाली, भिलार और गुरेघर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की पैदावार होती है.

पिछले वर्ष स्ट्रॉबेरी का उत्पादन क्षेत्र बढ़ गया था. लेकिन, पहले बेमौसम बरसात की मार और वर्तमान में कोरोना संकट के कारण मंदी के आसार ने स्ट्रॉबेरी के उत्पादन के साथ ही स्ट्रॉबेरी उत्पादकों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव डाला है.

इन दिनों लॉकडाउन की वजह से पूरे देश भर के लगभग सभी बाजार बंद हैं. इसलिए, स्ट्रॉबेरी का माल महाबलेश्वर से मुंबई, पुणे और सूरत के बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहा है.

वहीं, महाबलेश्वर राज्य का प्रमुख पर्यटन क्षेत्र भी है. यहां बड़ी संख्या में देश भर से पर्यटक आते हैं और स्ट्रॉबेरी खरीदते हैं. लेकिन, फिलहाल पर्यटकों की आवाजाही भी रुक गई है. इस वजह से स्ट्रॉबेरी की बिक्री भी ठप्प हो गई है.

हालांकि, स्ट्रॉबेरी उत्पादकों का कहना है कि पिछले हफ्ते उन्होंने अपना माल स्थानीय व्यापारियों को बेचा था. लेकिन, अब स्थानीय प्रशासन द्वारा स्थानीय बाजारों को भी सख्ती से बंद कराने और जीवन उपयोग की वस्तुओं के लिए निर्धारित समयावधि के लिए ही खोलने की अनुमति देने के कारण स्ट्रॉबेरी की बिक्री प्रभावित हुई है.


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एक स्ट्रॉबेरी उत्पादक ओम गणेश पवार बताते हैं कि ऐसी स्थिति में कई उत्पादक स्ट्रॉबेरी के फल तोड़ने के लिए खेतों में नहीं जा रहे हैं. उन्हें लगता है कि फसल तोड़ने और खेतों से भंडारण स्थलों तक लाने में अकारण अपना पैसा और मेहनत खर्च करनी पड़ेगी.

स्ट्रॉबेरी व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों के अनुसार इससे उन्हें 40 प्रतिशत तक नुकसान झेलना पड़ सकता है. वजह, प्रतिदिन 70 से 110 टन स्ट्रॉबेरी मुंबई, पुणे और सूरत के बाजारों में जाती थी. इस लिहाज से यदि महीनों तक स्ट्रॉबेरी का वितरण इसी तरह रुका रहा तो इसका बहुत बुरा असर न सिर्फ स्ट्रॉबेरी उत्पादको बल्कि स्थानीय व्यापारियों और कंपनियों पर भी पड़ेगा.

स्ट्रॉबेरी व्यापारी किसन सेठ भिलोरे का कहना है कि वे ऐसी स्थिति में किसानों से ज्यादा से ज्यादा माल नहीं खरीद सकते है. वजह, स्ट्रॉबेरी को ज्यादा दिनों तक भंडारण करके नहीं रखा जा सकता है. यदि स्ट्रॉबेरी का माल दो दिन में नहीं निकला तो वह सड़ जाता है.

वहीं, स्ट्रॉबेरी ग्रोव्हर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बालासाहेब भिलोरे का कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों का आकलन करें तो स्ट्राबेरी उत्पादकों को अब तक कुल दस हजार मैट्रिक टन माल का नुकसान हुआ है.

(शिरीष खरे शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं और लेखक हैं)

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