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Friday, 29 March, 2024
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हरियाणा में मिले पाषाण युग के औजार और गुफा चित्र, ‘प्रागैतिहासिक कारखाने’ के संकेत हो सकते हैं

दिल्ली-एनसीआर में गुरुग्राम-फरीदाबाद खंड के साथ मंगर बानी जंगल के पास अरावली पहाड़ियों के बीच यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हरियाणा के इतिहास की समझ को बदल देती है, यह इसे अब तक के ज्ञात इतिहास से हजारों साल पीछे पहुंचा देती है.

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मंगर, हरियाणा: अरावली के मैदानी क्षेत्र में पुरापाषाण काल के प्रागैतिहासिक गुफा चित्र और रॉक शेल्टर के अलावा कुछ टूल और इन टूल को बनाने वाले कुछ उपकरण पाए गए हैं जिन्हें शुरुआती या प्रारंभिक पुरापाषाण युग का माना जा रहा है.

पुरापाषाण युग 10,000 ईसा पूर्व का वह समय है जब मनुष्य अपने भोजन के लिए शिकार करता था और उसका संग्रह भी करता था.

हरियाणा पुरातत्व और संग्रहालय विभाग में उपनिदेशक बनानी भट्टाचार्य ने दिप्रिंट को बताया कि यहां रॉक शेल्टर के अलावा खुले मैदानी क्षेत्रों में पाषाणकालीन उपकरण 5,000 हेक्टेयर में पाए गए हैं.

दिल्ली-एनसीआर में गुरुग्राम-फरीदाबाद खंड के साथ मंगर बानी जंगल के पास अरावली पहाड़ियों के बीच यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हरियाणा के इतिहास की समझ को बदल देती है, यह इसे अब तक के ज्ञात इतिहास से हजारों साल पीछे पहुंचा देती है.

भट्टाचार्य ने कहा, ‘हरियाणा को भारतीय सभ्यता के शुरुआती दौर के तौर पर जाना जाता है. इससे पहले, राज्य में हड़प्पा और पूर्व-हड़प्पा काल के 28 स्थलों की खोज की जा चुकी है. हालांकि, इतने बड़े क्षेत्र में रॉक पेटिंग और रॉक आर्ट की खोज पहली बार की गई है. यह खोज बताती है कि यहां का इतिहास 1 लाख साल पुराना हो सकता है.’

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भट्टाचार्य के मुताबिक, यद्यपि अरावली रेंज पूर्व-ऐतिहासिक अवशेषों की मौजूदगी के लिए ही जानी जाती है, लेकिन यहां रॉक पेंटिंग पहली बार खोजी गई हैं. रॉक आर्ट और यहां मिले उपकरण लगभग 1 लाख वर्ष पुराने होने का अनुमान है, लेकिन पेंटिंग 20,000 से 40,000 वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हो सकतीं.


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हालांकि, इसके बारे में लगाए गए अनुमान प्रारंभिक ही हैं और इस साइट से संबंधित समयावधि को सटीक रूप से निर्धारित करने के लिए और अधिक शोध, दस्तावेजीकरण और कार्बन-डेटिंग की जरूरत पड़ेगी.

भट्टाचार्य ने कहा कि शुरुआती आकलन के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि मानव इस क्षेत्र में काफी समय से बसे हुए थे क्योंकि पुरातत्वविदों ने देखा है कि ड्राइंग का पैटर्न विकसित हो गया था. इससे उन्हें यह पता लगाने का अवसर मिलता है कि मानव ने उपकरण बनाने का अपना कौशल कैसे विकसित किया.

अरावली में मिले पुरापाषाणकालीन चित्रों का एक नमूना | शुभांगी मिश्रा/ दिप्रिंट

भट्टाचार्य ने बताया, ‘कुछ रेखाचित्र सबसे पुराने हैं, जब मनुष्यों ने वास्तव में यह सोचा भी नहीं था कि जटिल पैटर्न कैसे बनाएं. इसके अलावा हम विभिन्न ज्यामितीय आकृतियां, पत्तों, जानवरों और मानव आकृतियों के चित्र देख सकते हैं. हमें कप जैसे नजर आने वाले कुछ चिह्न भी दिखते हैं जो संभवत: किसी विशेष उद्देश्य के लिए रखे गए थे. यद्यपि अधिकांश गेरू के रंग के हैं लेकिन कुछ सफेद भी हैं. इसका मतलब है कि वे विशेष चित्र ऐतिहासिक युग के हैं.’

भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि यह उपमहाद्वीप में मिलने वाला सबसे बड़ा पुरापाषाण स्थल हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह हमारे पूर्वजों का ‘कारखाना’ भी हो सकता है, जहां औजार बनाए जाते रहे हों.

यूट्यूब वीडियो ने की खोज में मदद

क्षेत्र के निवासियों की तरफ से मई में पोस्ट किए गए एक यूट्यूब वीडियो से हरियाणा पुरातत्व विभाग की नजर इस साइट पर गई और इसे बाद में जुलाई में खोजा गया.

भट्टाचार्य ने कहा, ‘हम यहां अरावली में एक सर्वेक्षण की योजना बना रहे थे. मई में इन गुफाओं के बारे में यूट्यूब पर एक वीडियो सामने आया, जिनसे यहां के ग्रामीण वाकिफ तो थे. हालांकि, उन्होंने इन रॉक कार्विंग और पेंटिंग की अहमियत को कभी नहीं समझा, इसलिए हमें इस बारे में काफी अलर्ट भी नहीं किया.’

इस क्षेत्र में अभी तक अरावली के बारे में कोई विस्तृत पुरातात्विक सर्वेक्षण नहीं किया गया है, जो भट्टाचार्य का कहना है कि जल्द ही शुरू किया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘हम पूरे अरावली खंड का मैप तैयार करने की योजना बना रहे हैं.’

इन पेंटिंग को अब तक आधिकारिक तौर पर न खोजे जाने का एक और कारण है कि कुछ साइटों तक पहुंचने के लिए एक अनिर्धारित लंबी पैदल यात्रा करनी होती है. समय के साथ, पेंटिंग मिट भी गई है इसलिए अधिकांश अप्रशिक्षित नजरों से बची रह गईं. कुछ स्थलों पर घनी वनस्पतियां पुरापाषाण काल की कला को ढक लेती हैं.

जुलाई के पहले हफ्ते में भट्टाचार्य और उनकी टीम ने कई साइट की पहचान करके तीन दिवसीय सर्वे किया. आखिरी स्तर का दस्तावेजीकरण और अधिक विस्तृत शोध लंबित होने के कारण भट्टाचार्य के पास अब तक खोजी गई साइटों की संख्या की अंतिम गणना होनी बाकी है.

वन्यजीव शोधकर्ता और संरक्षणवादी सुनील हरसाना, जो दावा करते हैं कि पहली बार उन्होंने यूट्यूब वीडियो पोस्ट किया था, ने बताया कि वह बचपन से ही गुफाओं के बारे में जानते हैं, लेकिन इन चित्रों की अहमियत को नहीं समझते थे और यह नहीं जानते थे कि उनके बारे में किससे बात करनी है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास 2016 तक खराब कैमरे और कीपैड वाले बेसिक फोन थे…इसलिए अगर मैंने उन पर कोई तस्वीर क्लिक भी की होती तो कोई समझ नहीं पाता कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं. और मुझे यह पता भी नहीं था कि किसे बताना है. अब, एक बार जब उन्हें इंटरनेट पर डाला गया, तो उन पर सही मायने में उतना ध्यान दिया गया जिसकी जरूरत थी.’

इतिहास का संरक्षण

अभी पाषाण युग के अवशेषों वाली साइट काफी ज्यादा खुली और असुरक्षित हैं. यहां पर मौजूदा सहस्राब्दी का कचरा—जैसे खाली डिब्बे और बीयर और कोला की बोतलें, सिगरेट बट्स, स्नैक्स के खाली रैपर—भी खूब पाया जाता है.

हरसाना को इस बात की चिंता भी है कि जैसे-जैसे ज्यादा लोगों को इस खोज के बारे में पता चलेगा, वैसे-वैसे और अधिक लोग इन रॉक शेल्टर का दौरा करेंगे जिससे इसके नष्ट होने का खतरा बढ़ेगा.

उन्होंने कहा, ‘इन साइट को तत्काल संरक्षण की जरूरत है. आप नहीं जानते कि कब कौन इन साइट पर जाएगा और सिर्फ मनोरंजन के नाम पर प्रागैतिहासिक काल की कार्विंग के बीच अपना नाम लिख देगा या ‘दिल’ बना देगा.’ इसके बजाये, विरासत और इको-टूरिज्म की वजह से क्षेत्र के लोगों को रोजगार के अवसर मिल सकते हैं और उनकी कुछ कमाई हो सकती है.

भट्टाचार्य और हरसाना दोनों का मानना है कि गुड़गांव-फरीदाबाद अरावली खंड पर मंगर बानी और उसके आसपास के जंगलों को हेरिटेज-इको जोन घोषित किया जाना चाहिए. इससे इस क्षेत्र को अवैध खनन और अतिक्रमण से बचाया जाना सुनिश्चित हो सकेगा.

भट्टाचार्य ने कहा, ‘हम यह भी नहीं जानते कि अरावली के अवैध खनन और उत्खनन के कारण इनमें से कितने स्थल नष्ट हो गए होंगे. उन्हें तत्काल संरक्षण की जरूरत है. दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला होने के नाते इसमें कई ऐसे सुराग छिपे हैं जो हमारे अपने मूल को समझने में हमारी मदद कर सकते हैं और इसके पास भारतीय उपमहाद्वीप के बारे में बताने के लिए बहुत सारी कहानियां भी हैं.’

हरियाणा सरकार के प्रधान सचिव अशोक खेमका ने इसी महीने की शुरुआत में हिंदुस्तान टाइम्स को बताया था कि विभाग पंजाब प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1964 की धारा 4 के तहत मंगर बानी के संरक्षण के लिए आदेश जारी करेगा, और विशेषज्ञ क्षेत्र की पुरापाषाणकालीन गुफा पेंटिंग का व्यापक सर्वेक्षण करेंगे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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