नयी दिल्ली, 27 फरवरी (भाषा) अगले वित्तीय वर्ष से केंद्र सरकार महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’ के तहत उन राज्यों को राशि नहीं आवंटित करेगी जो कम से कम 80 फीसदी जिलों में मनरेगा लोकपाल नियुक्त नहीं कर सके हैं। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी।
ग्रामीण विकास सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘आदर्श रूप में राज्यों को मनरेगा के तहत अपने सभी जिलों में लोकपाल नियुक्त करना चाहिए। जो राज्य मनरेगा के तहत कुल जिलों के कम से कम 80 प्रतिशत में लोकपाल नियुक्त नहीं करते हैं, जो न्यूनतम सीमा सीमा है, उन्हें इस रोजगार गारंटी योजना के कार्यान्वयन के लिए अगले वित्तीय वर्ष से धन नहीं मिलेगा।’’
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को उपलब्ध ब्योरे के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी शासित गुजरात, अरुणाचल प्रदेश और गोवा, टीआरएस शासित तेलंगाना और केंद्र शासित प्रदेशों पुडुचेरी, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप और दादर एवं नागर हवेली में मनरेगा के लिए एक भी लोकपाल नहीं है।
इसी तरह कांग्रेस शासित राजस्थान की तरह कई राज्य हैं जहां बहुत कम जिलों में लोकपाल नियुक्त किए गए हैं। राजस्थान में योजना के तहत आने वाले 33 में से केवल चार जिलों में लोकपाल हैं। तृणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल में योजना के अंतर्गत आने वाले 23 में से केवल चार जिलों में लोकपाल नियुक्त किए गए हैं।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा-पंजाब में योजना के तहत 22-22 जिले हैं, लेकिन हरियाणा में केवल चार और पंजाब में सात जिलों में लोकपाल हैं। मनरेगा का उद्देश्य देश के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी प्रदान करना है।
मनरेगा पहले चरण में दो फरवरी, 2006 से देश के सबसे पिछड़े 200 जिलों में लागू हुआ। बाद में इसे एक अप्रैल, 2007 और 15 मई, 2007 से क्रमशः अतिरिक्त 113 और 17 जिलों तक बढ़ा दिया गया था। शेष जिलों को एक अप्रैल, 2008 से कानून के तहत शामिल किया गया था। फिलहाल देश के लगभग सभी ग्रामीण जिले इस कानून के अंतर्गत आते हैं।
भाषा संतोष अविनाश
अविनाश
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