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मंगलवार, 17 जून, 2025
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वन भूमि की स्थिति की जांच के लिए राज्य एसआईटी गठित करें : शीर्ष अदालत

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नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को यह पता लगाने के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का निर्देश दिया कि क्या कोई आरक्षित वन भूमि गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए किसी निजी पक्ष को आवंटित की गई है।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को ऐसी भूमि का कब्जा वापस लेने और उसे वन विभाग को सौंपने के लिए कदम उठाने का भी निर्देश दिया।

पीठ ने कहा, “अगर यह पाया जाता है कि भूमि का कब्जा वापस लेना व्यापक जनहित में नहीं होगा, तो राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों को उक्त भूमि की कीमत उन व्यक्तियों/संस्थाओं से वसूलनी चाहिए, जिन्हें वह भूमि आवंटित की गई है तथा प्राप्त राशि का इस्तेमाल वनों के विकास के लिए करना चाहिए।”

पीठ ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र-शासित प्रदेशों के प्रशासकों को विशेष टीम गठित करने का भी निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे सभी हस्तांतरण आज से एक साल के भीतर हो जाएं।

उसने स्पष्ट किया कि ऐसी भूमि का इस्तेमाल केवल वनरोपण के लिए किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, “हम सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और सभी केंद्र-शासित प्रदेशों के प्रशासकों को यह जांच करने के लिए विशेष जांच दल गठित करने का निर्देश देते हैं कि क्या राजस्व विभाग के स्वामित्व वाली आरक्षित वन भूमि को वानिकी उद्देश्य के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए किसी निजी व्यक्ति/संस्था को आवंटित किया गया है।”

शीर्ष अदालत ने पुणे में आरक्षित वन भूमि से जुड़े मामले में दिए गए फैसले में यह निर्देश जारी किया।

पीठ ने कहा, “मौजूदा मामला इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि किस तरह नेताओं, नौकरशाहों और बिल्डर के बीच साठगांठ के चलते पिछड़े वर्ग के लोगों के पुनर्वास की आड़ में बहुमूल्य वन भूमि को वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए आवंटित किया जा सकता है, जिनके पूर्वजों से सार्वजनिक उद्देश्य के लिए कृषि भूमि अधिग्रहीत की गई थी।”

भाषा पारुल अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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