इंदौर, पांच मई (भाषा) मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के एक सदस्य ने सोमवार को कहा कि इस निकाय ने इंदौर में ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही तीन वर्षीय लड़की को ‘‘संथारा’’ व्रत ग्रहण कराए जाने के बाद उसकी मौत के मामले का संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से जवाब मांगने का फैसला किया है।
संथारा, जैन धर्म की प्राचीन प्रथा है जिसका पालन करने वाला व्यक्ति स्वेच्छा से अन्न-जल और अन्य सांसारिक वस्तुएं छोड़कर प्राण त्यागने का फैसला करता है।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हमने इंदौर में तीन साल की बच्ची को संथारा व्रत ग्रहण कराए जाने की घटना का मीडिया की खबरों के आधार पर संज्ञान लिया है। हमने इस मामले में इंदौर के जिलाधिकारी को नोटिस जारी करने का फैसला किया है।’’
उन्होंने कहा कि आयोग खासतौर पर यह जानना चाहता है कि तीन साल की अबोध बच्ची ‘‘संथारा’’ के लिए कैसे अपनी सहमति दे सकती है?
सिंह ने बताया, ‘‘हम जिलाधिकारी को नोटिस जारी करने जा रहे हैं। नोटिस के जवाब के आधार पर उचित कदम उठाया जाएगा।’’
‘‘संथारा’’ व्रत से प्राण त्यागने वाली लड़की के माता-पिता सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के पेशेवर हैं। उनका कहना है कि उन्होंने 21 मार्च की रात एक जैन मुनि की प्रेरणा से अपनी इकलौती संतान को यह व्रत दिलाने का फैसला ऐसे वक्त लिया, जब वह ब्रेन ट्यूमर के कारण बेहद बीमार थी और उसे खाने-पीने में भी दिक्कत हो रही थी।
लड़की के माता-पिता के मुताबिक जैन मुनि द्वारा ‘संथारा’ के धार्मिक विधि-विधान पूरे कराए जाने के चंद मिनटों के भीतर उनकी बेटी ने प्राण त्याग दिए थे।
उन्होंने यह भी बताया कि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने उनकी बेटी के नाम विश्व कीर्तिमान का प्रमाण पत्र जारी किया है जिसमें उसे ‘जैन विधि-विधान के मुताबिक संथारा व्रत ग्रहण करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की शख्स बताया गया है।
जैन समुदाय की धार्मिक शब्दावली में संथारा को ‘सल्लेखना’ और ‘समाधि मरण’ भी कहा जाता है। इस प्राचीन प्रथा के तहत कोई व्यक्ति अपने अंतिम समय का आभास होने पर मृत्यु का वरण करने के लिए अन्न-जल और सांसारिक वस्तुएं त्याग देता है।
कानूनी और धार्मिक हलकों में ‘संथारा’ को लेकर वर्ष 2015 में बहस तेज हो गई थी, जब राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस प्रथा को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध करार दिया था। हालांकि, जैन समुदाय के अलग-अलग धार्मिक निकायों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राजस्थान उच्च न्यायालय के इस आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी।
भाषा
हर्ष, रवि कांत रवि कांत
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