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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशइंदौर में बड़ी संख्या में मुस्लिम मौतों के पीछे चाहे कोविड न हो, पर लॉकडाउन की सख्ती ने कई बीमारों की जान ले ली

इंदौर में बड़ी संख्या में मुस्लिम मौतों के पीछे चाहे कोविड न हो, पर लॉकडाउन की सख्ती ने कई बीमारों की जान ले ली

बढ़ती मौतों के पीछे का कारण जानने के लिए दिप्रिंट ने इंदौर के कब्रिस्तानों का दौरा किया कार्यकर्ताओं और परिवारों का कहना है कि अस्पतालों ने दिल के दौरे और अन्य बीमारियों के लिए प्रवेश से इनकार कर दिया है.

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इंदौर: इंदौर के सबसे बड़े कब्रिस्तान महू नाका मैदान में लगभग 10 आदमियों का एक समूह, जिनके चेहरे पर रूमाल बंधे हुए हैं, एक ट्रक से ताबूत को बाहर निकालते हैं और कुछ ही मीटर की दूरी पर खोदी गई कब्र तक जाते हैं.

मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर कोविड-19 हॉटस्पॉट है. महू नाका और अन्य कब्रिस्तानों बहुत अधिक जानी जाने वाली जगहों में से एक है, जब 24-25 मार्च की मध्यरात्रि को देशव्यापी लॉकडाउन लागू हुआ तब से इंदौर में मुसलमानों में मौतों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है.

इंदौर नगर निगम के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल के पहले दो हफ्तों में शहर ने मौत में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी देखी है, लेकिन हिंदू श्मशान घाटों से मृतकों की संख्या बढ़ने के कोई समाचार नहीं आये.

दिप्रिंट ने यह पता लगाने के लिए शहर के सबसे बड़े कब्रिस्तान मैदानों का दौरा किया कि मृतकों की संख्या में यह बढ़ोतरी क्यों हुई है. शहर के अधिकारियों और कब्रिस्तान के प्रभारी ने बताया कि शहर में घनी मुस्लिम आबादी वाले कई क्षेत्र कन्टेनमेंट में आते है लेकिन इसके बावजूद कोविड-19 से ज्यादा मौतें संबंधित नहीं हैं.

कई लोगों ने कहा कि इनमें से बहुत सारी मौतें इसलिए हुईं क्योंकि लोगों को अस्पतालों में इलाज से वंचित कर दिया गया था. हालांकि, इंदौर के  कलेक्टर मनीष सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि मुस्लिमों की मौतों में बढ़ोतरी का कारण लॉकडाउन की सख्ती भी हो सकता है.

उन्होंने कहा, 25 मार्च से 29 मार्च तक माहौल थोड़ा उदार था, लेकिन यह 29 मार्च के बाद सख्त हो गया. फिर हमने सभी क्लीनिकों को बंद कर दिया, जो संक्रमण के प्रसार का एक संभावित स्रोत हैं. स्थानीय डॉक्टरों को बाहर बैठने और मरीजों का इलाज करने के लिए मज़बूर होना पड़ा था. यह संभव है कि उच्च रक्तचाप, शुगर और हृदय रोगों के कारण ऐसे स्थानीय मामले हुए हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर कुछ नहीं हुआ.

‘जेसीबी’ अधिक कब्र खोदने के लिए लाया गया

1 से 16 अप्रैल के बीच अकेले महू नाका में दफनाए गए शवों की संख्या 75 थी. इसकी संख्या मार्च में 10, फरवरी में 29 और जनवरी में 48 थी.

कब्रिस्तान के इंचार्ज मुबारिक हुसैन ने दिप्रिंट को बताया कि ‘पहले, हमें हर दिन दो या तीन शव मिलते थे. एक महीने में, 30-35 शव सामान्य थे. लेकिन कोविड-19 संक्रमण के बाद इस संख्या में 25-30 शवों की वृद्धि हुई है.’

हुसैन ने कहा कि मौतों का कारण मुख्य रूप से दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह था. उन्होंने कहा कि केवल 8-10 शव ही कोविड-19 रोगियों के थे और मृत्यु के बाद भी पॉजिटिव पाया गया था.

हुसैन ने कहा, ‘कुछ मामलों में लोगों को उचित उपचार नहीं मिला- अस्पतालों ने उन्हें एडमिट करने से इनकार कर दिया. कुछ की मौत अस्पताल के गेट पर भी हुई थी जब अस्पताल जा रहे थे.

महू नाका कब्रिस्तान के प्रभारी मुबारिक हुसैन । फोटो: अंगना चक्रवर्ती/ दिप्रिंट

दिप्रिंट ने खुदाई करने वाली मशीन देखी, जिसे आमतौर पर इसके ब्रांड नाम जेसीबी के नाम से जाना जाता है, इसी मशीन ने कब्र खोदने का काम पूरा किया था. हुसैन ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों द्वारा मशीन को कर्मचारियों के ज्यादा काम को कम करने के मदद के लिए लाया गया था. कब्र खोदने के लिए यहां केवल चार लोग हैं. इसलिए कभी-कभी परिवार वाले भी कब्र खोदते हैं.

पड़ोसी समाजवाद नगर के निवासियों ने दफनाए जाने के लिए लाए जा रहे शवों के बार-बार देखे जाने का वर्णन किया. 36 वर्षीय सुभाष चौहान, जो कब्रिस्तान से लगभग 100 फीट दूर रहते हैं ने कहा, ‘मैंने देखा हैं कि एक दिन में 8-10 शव लाए जाते हैं. चार लोग इसे एक गाड़ी में ले आए और इसे जमीन में सिर्फ दो या तीन फीट पर दफनाया है.’

चौहान ने कहा कि उन्होंने दफनाने का एक वीडियो शूट किया- उन्होंने अनुमान लगाया कि यह एक कोविड-19 रोगी का शव था, क्योंकि शरीर को दफनाने वाले छह लोगों में से तीन व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों में लिपटे हुए थे.

एक अन्य निवासी राहुल नंगी ने कहा, ‘वे रात या सुबह-सुबह शव यहां लाते हैं. कॉलोनी को सील कर दिया गया है और लोग संक्रमण फैलने से बहुत डरते हैं. हमने छत्रीपुरा पुलिस स्टेशन में भी अपील की थी.’

केवल कब्रिस्तान तक सीमित नहीं है

इस तरह दफनाने की प्रवृत्ति अन्य कब्रिस्तान में भी देखी गई. बाणगंगा कब्रिस्तान में 1 और 16 अप्रैल के बीच 44 शवों को दफनाया गया था, जिनमें से 29 को सिर्फ 10 से 16 अप्रैल के बीच लाया गया था. तीन पूर्ववर्ती महीनों की संख्या मार्च में 10, फरवरी में 11 और जनवरी में 9 थी.

चंदन नगर कब्रिस्तान में 1 से 16 अप्रैल का आंकड़ा 56 था, जबकि मार्च में 30, फरवरी में 12 और जनवरी में 7 था.

लेकिन, लुनियापुरा कब्रिस्तान में आंकड़ा और भी बड़ा था – 96 शवों को दफनाने के लिए 16 दिनों में लाया गया था, जबकि मार्च में सिर्फ 5, फरवरी में 13 और जनवरी में 20 आए थे.

लुनियापुरा कब्रिस्तान प्रभारी रफीक शाह | फोटो: अंगना चक्रवर्ती/ दिप्रिंट

लुनियापुरा कब्रिस्तान प्रभारी रफीक शाह ने कहा, ‘अधिक लोग चिंता से मर जाते हैं और इलाज नहीं करवाते हैं. कोई भी उन्हें अस्पतालों में छूना नहीं चाहता है.’

‘हम हर दिन पांच से सात कब्र खोद रहे हैं – ‘जो कि सामान्य संख्या से दोगुना है, मुझे तीन लोगों को नौकरी पर रखना पड़ा जबकि आमतौर पर मैं अकेले रहता हूं.’

हिंदू श्मशान की स्थिति

डेटा से पता चलता है कि हिंदू श्मशान घाटों पर शवों की संख्या मुस्लिम कब्रिस्तानों जितनी नहीं है.

इंदौर में सबसे बड़े पंचकुइयां श्मशान घाट पर 1 से 16 अप्रैल के बीच 95 शवों का अंतिम संस्कार किया गया, मार्च में 128, फरवरी में 161 और जनवरी में 243 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है.

इसी तरह जूनी श्मशान घाट पर अप्रैल के पहले 16 दिनों में 39 शव लाए गए थे, जबकि पिछले तीन महीनों की संख्या 18 (मार्च), 26 (फरवरी) और 48 (जनवरी) थी.

जूनी श्मशान घाट लुनियापुरा कब्रिस्तान से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित है और इसके प्रभारी सोहनलाल जीवन ने कहा, कोविड-19 के प्रकोप के बाद से केवल थोड़ी वृद्धि हुई थी.

उन्होंने कहा, ‘पहले एक दिन में पांच शव आते थे, अब संख्या लगभग आठ है. कोविड-19 के एक या दो रोगी भी हैं
पास के कब्रिस्तान में आंकड़ों में बड़ी बढ़ोतरी को स्वीकार करते हुए जीवन ने कहा, ‘वृद्धि लगभग तीन गुना हो गई है. आमतौर पर पूरे महीने का मामला अब आठ दिनों के भीतर देखा जा रहा है.’

बिना इलाज के छोड़ दिया

सामाजिक कार्यकर्ता अनवर देहलवी ने कहा कि कई मौतें इसलिए हुईं क्योंकि रोगियों को इलाज से वंचित कर दिया गया था.

‘निजी अस्पतालों ने विशेष रूप से बहुत अन्याय किया है. एक दिन में हमें एक मरीज के साथ आठ स्थानों पर जाना पड़ा. लेकिन अस्पतालों ने उन्हें बेड पर ले जाने से मना कर दिया.

इंदौर के हॉटस्पॉट ज़ोन, बॉम्बे बाज़ार की निवासी देहलवी ने दावा किया कि क्षेत्र में कम से कम 25 मरीजों की मौत हो गई क्योंकि उन्हें इलाज से वंचित कर दिया गया था.

उनमें से एक फल विक्रेता मोहम्मद जावेद के 65 वर्षीय पिता थे. जावेद ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पिता 12 अप्रैल को बीमार पड़ गए, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने से पहले उन्हें कम से कम दो घंटे के लिए ले जाना पड़ा.

उन्होंने कहा, जावेद के पिता को तेज बुखार था. हम उन्हें चार या पांच अस्पतालों में ले गए, लेकिन कोई भी उन्हें एडमिट करने को तैयार नहीं था. उन्होंने हमें बताया कि कोई बिस्तर नहीं थे और हमें कहीं और जाना चाहिए. बहुत कठिनाइयों के साथ हमने उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया. अगले दिन सुबह 830 बजे उनकी मृत्यु हो गई.

जावेद ने कहा, ‘ये गलत है आप किसी मरीज को मना नहीं कर सकते. जावेद ने कहा कि उसे एडमिट करना उनका कर्तव्य है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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3 टिप्पणी

  1. Sarkar ko test badhana chahiye kitne muslim covid se mare honge per samanya bata rahe .agar i
    Lockdown se hota to hindu bhi badhte

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