पटना, 11 जुलाई (भाषा) बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए राजनीतिक दलों ने 1.5 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंटों (बीएलए) को नामित किया गया है। इसके साथ ही जो दल इस प्रक्रिया का कड़ा विरोध कर रहे थे, वे भी अब इसमें सक्रियता से भाग ले रहे हैं। निर्वाचन आयोग की ओर से साझा किए गए आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
आंकड़ों के अनुसार, 24 जून को इस व्यापक प्रक्रिया के आदेश के बाद से आयोग में पंजीकृत बीएलए की संख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सर्वेक्षण में अब तक 5.22 करोड़ मतदाताओं को शामिल किया गया है, जो इस चुनावी राज्य के दो-तिहाई से अधिक मतदाता हैं।
तीन दलों ने इस अभियान के विरोध का नेतृत्व किया है। उनका दावा है कि इस अभियान का मकसद इस साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजग को ‘‘फायदा’’ पहुंचाना है। 243 सदस्यीय राज्य विधानसभा में इन तीनों दलों के सदस्यों की संख्या 20 प्रतिशत से भी कम है।
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की सहयोगी भाकपा (माले) लिबरेशन के बीएलए की संख्या में 446 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि माकपा के बीएलए की संख्या में 666 प्रतिशत और कांग्रेस के बीएलए की संख्या में 92 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए, भाकपा (माले) लिबरेशन के प्रदेश सचिव कुणाल ने कहा, ‘हां, हमने यह सुनिश्चित करने के लिए बड़ी संख्या में बीएलए नियुक्त किया है कि हमारे क्षेत्र में, कोई भी मतदाता छूट न जाए। पार्टी ने बीएलए की संख्या और बढ़ाने का फैसला किया है।’’
वाम दल की ओर से नामित एजेंटों की संख्या 233 से बढ़कर 1,227 हो गई है।
पार्टी के शीर्ष नेता दीपांकर भट्टाचार्य उन याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं जिन्होंने उच्चतम न्यायालय में इस प्रक्रिया को चुनौती दी है।
वामदल की चिंताओं को कांग्रेस ने भी साझा किया है। हाल ही में पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने यहां आरोप लगाया था कि निर्वाचन आयोग ‘‘बिहार में मतदाता सूची में हेराफेरी का वही मॉडल दोहराने की कोशिश कर रहा है जो पिछली बार महाराष्ट्र में देखा गया था।’’
कांग्रेस ने 16,500 बीएलए नामित किए हैं जबकि पहले यह संख्या 8,586 थी।
बिहार कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा, ‘‘निर्वाचन अधिकारियों द्वारा किए गए कार्यों की प्रभावी निगरानी के लिए पर्याप्त संख्या में बीएलए का होना आवश्यक है। यदि आवश्यकता पड़ी, तो हमारी पार्टी ज़मीनी स्तर पर और कार्यकर्ताओं को तैनात करेगी।’
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व वाली बसपा एक और प्रमुख राजनीतिक दल है, जिसने अपने बीएलए की संख्या 26 से लगभग तिगुनी करके 74 (185 प्रतिशत) कर ली है। हालांकि यह पार्टी बिहार में किसी भी प्रमुख गठबंधन में शामिल नहीं है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) के बीएलए की संख्या में करीब 6,000 की वृद्धि हुई है, जो 24 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
एसआईआर का आदेश दिये जाने के बाद बीएलए की कुल संख्या में करीब 18,000 की वृद्धि हुई है और यह बढ़कर लगभग 1.56 लाख हो गई है।
संबंधित दलों द्वारा नामित बीएलए की संख्या के संदर्भ में, भारतीय जनता पार्टी (52,689) शीर्ष पर है। संगठनात्मक गहराई वाली भाजपा के लिए यह आश्चर्य की बात नहीं है।
भाजपा के बाद राज्य में उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजद (47,504) का स्थान है और दोनों करीबी प्रतिद्वंद्वियों ने अपने-अपने बीएलए की संख्या में एक-एक प्रतिशत की वृद्धि की है।
राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आधार कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेज़ों की सूची में शामिल करने का सुझाव देने के साथ ही एसआईआर एक महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर गया है, लेकिन निर्वाचन आयोग इस पर चुप्पी साधे हुए है।’’
तिवारी ने कहा, ‘‘किसी भी तरह की चूक नहीं करते हुए, हमने पर्याप्त संख्या में बीएलए तैनात किए हैं और यदि आवश्यकता पड़ी, तो और भी नियुक्त किए जाएंगे।’
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 1,153 एजेंट नियुक्त किए हैं जबकि उनसे अलग हुए चाचा पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी ने 1,913 बीएलए नियुक्त किए हैं।
राजग में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक भाकपा जैसे दलों ने बूथ-स्तरीय किसी भी एजेंट को नियुक्त नहीं किया है।
हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने भी किसी भी बीएलए को नामित नहीं किया है। हालांकि, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जिसने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की है, ने एक बीएलए को नामित किया है।
भाषा रंजन रंजन अविनाश
अविनाश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.