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Sunday, 22 December, 2024
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जोशीमठ के कुछ हिस्से ‘डूब’ रहे हैं, ‘निर्माण पर रोक, पुनर्वास’ जैसे कदम उठा सकती है उत्तराखंड सरकार

राज्य सरकार की तरफ से गठित विशेषज्ञ पैनल ने चेताया है कि मानव निर्मित और प्राकृतिक कारणों से शहर के कई हिस्सों के डूबने का खतरा बना हुआ है. वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि रिपोर्ट में तपोवन सुरंग फैक्टर को कोई तवज्जो नहीं दी गई है.

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देहरादून: उत्तराखंड सरकार की तरफ से गठित एक विशेषज्ञ समिति ने पाया है कि चमोली जिले के जोशीमठ शहर में कई हिस्से—बद्रीनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार का रास्ता, हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा, औली का लोकप्रिय हिल स्टेशन और भारत-चीन सीमा के डूबने का खतरा बना हुआ है. समिति ने इसके पीछे मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों कारणों को जिम्मेदार बताया है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, इसे देखते हुए सरकार एक कार्य योजना तैयार करेगी जिसके तहत निर्माण प्रतिबंध के साथ-साथ स्थानीय निवासियों को ‘असुरक्षित’ क्षेत्रों से हटाकर दूसरी जगह बसाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं.

समिति की रिपोर्ट ‘ग्राउंड सब्सीडेंस’ की ओर इंगित करती है—जिसका मतलब है सब-सरफेस मैटीरियल हटने या विस्थापित होने के कारण पृथ्वी की सतह का धीरे-धीरे धंसना या अचानक डूब जाना. दिप्रिंट के पास मौजूद इस रिपोर्ट के मुताबिक, इसी वजह से जोशीमठ के लगभग सभी वार्डों में संरचनात्मक दोष या इन्हें पहुंची क्षति नजर आ रही है.

वैज्ञानिकों और भूवैज्ञानिकों की ये समिति जुलाई में चमोली जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिश पर गठित की गई थी, क्योंकि स्थानीय लोगों की तरफ से बार-बार यह शिकायत की जा रही थी कि कुछ इलाके डूब रहे हैं और इमारतों पर गहरी दरारें होती जा रही हैं.

राज्य आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि, सरकार को अभी रिपोर्ट नहीं मिली है, लेकिन समिति के सदस्यों की तरफ से दी जाने वाली जानकारी के आधार पर इंजीनियरिंग पहलुओं को ध्यान में रखकर उपयुक्त कदम उठाने के साथ-साथ जोशीमठ शहर के असुरक्षित क्षेत्रों में रह रहे लोगों के पुनर्वास के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाई जाएगी.’

उन्होंने आगे कहा कि हर घर का सर्वेक्षण होगा और जरूरत पड़ने पर लोगों को दूसरी जगह बसाने के संबंध में अंतिम रिपोर्ट तैयार की जाएगी. उन्होंने कहा, ‘हमें अलकनंदा नदी के ऊपरी क्षेत्र में स्थित शहर में मिट्टी का कटाव रोकने और ढलानों को स्थिर करने के लिए इंजीनियरिंग तकनीकों का सहारा लेना होगा.’

2011 की जनगणना के मुताबिक, जोशीमठ नगरपालिका क्षेत्र की जनसंख्या लगभग 17,000 थी, जिसमें लगभग 4,000 परिवार शामिल थे.

विशेषज्ञ समिति ने पाया है कि जोशीमठ शहर के कई हिस्से तेजी से मिट्टी के कटाव, भूकंप और भूस्खलन के कारण डूब रहे हैं.

सिन्हा ने कहा, ‘सरकार के पास रिपोर्ट आते ही इंजीनियरिंग पहलुओं पर एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जाएगी. जोशीमठ नगर परिषद के खतरनाक इलाकों में किसी को भी रहने की इजाजत नहीं होगी. जरूरत पड़ने पर जोशीमठ के अत्यधिक प्रभावित (भूस्खलन और कटान) क्षेत्रों में नए घरों और अन्य भवनों के निर्माण की अनुमति भी नहीं दी जाएगी.’

हालांकि, स्थानीय निवासियों का दावा है कि रिपोर्ट में जोशीमठ में इमारतों के ढांचे को नुकसान पहुंचाने वाले एक अन्य फैक्टर का उल्लेख नहीं किया गया है, और यह है तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की एक निर्माणाधीन सुरंग, जो शहर के नीचे से गुजरती है.

फरवरी 2005 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरण मंजूरी प्राप्त यह निर्माणाधीन परियोजना फरवरी 2021 में हिमनदों के फटने से अचानक आई बाढ़ के कारण तबाह हो गई थी. तपोवन परियोजना की सुरंगों के अंदर और ऋषि गंगा जलविद्युत परियोजना के लिए काम कर रहे 200 से अधिक लोग इस हादसे के शिकार हुए थे.

जून में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 2021 चमोली आपदा पर अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था, यह देखते हुए कि हिमालयी क्षेत्र में स्थापित कई जलविद्युत संयंत्र ‘पर्यावरण की दृष्टि से नाजुक’ क्षेत्र में स्थित हैं, सरकार को उत्तराखंड में जलविद्युत पर निर्भर होने के बजाये ऊर्जा के दीर्घकालिक वैकल्पिक स्रोतों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.


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क्या कहती है विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट

उत्तराखंड सरकार की तरफ से गठित इस समिति में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीबीआरआई) रुड़की, आईआईटी-रुड़की, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उत्तराखंड का चमोली जिला, जिसमें तहत ही जोशीमठ टाउनशिप आता है, भारत के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के जोन-5 में आता है और यहां पर विशेष तौर पर भूस्खलन का जोखिम ज्यादा है. जोशीमठ लैंडस्लाइड मैटीरियल की एक मोटी परत के ऊपर ही बसा हुआ है.’ साथ ही कहा गया है कि काफी समय से यह क्षेत्र धीरे-धीरे डूब रहा है.

इसमें आगे कहा गया है कि कई स्थानों पर सड़क के किनारे ढलान में जमीन नीचे धंसने के साक्ष्य देखे गए हैं, साथ ही कुछ घरों में दरारें और अन्य टूट-फूट भी साफ नजर आती है.

इसमें आगे कहा गया है, ‘जोशीमठ-औली रोड के किनारे सड़कों के डूबने के अलावा घरों में चौड़ी दरारें भी दिखी हैं. जोशीमठ औली रोड के चारों तरफ रिहायशी मकानों, टूरिस्ट रिसॉर्ट्स और छोटे होटलों का व्यापक निर्माण नजर आता है. इसी तरह रिपोर्ट सबसे पहले मिश्रा कमेटी ने 1976 में दी थी.’

समिति ने कहा कि नदी के ऊपर टाउनशिप के ढलान वाले इलाके में विभिन्न कारणों से तेजी से क्षरण हो रहा है, जिससे भू-भाग घटता जा रहा है.

इसके मुताबिक, ‘नदी के ऊपर ढलान वाले क्षेत्र में स्थित जोशीमठ में जमीन धंसने के मुख्य कारणों प्राकृतिक जल निकासी के कारण उपसतह में कटाव, कभी-कभी भारी बारिश, समय-समय पर आने वाले भूकंपी और बढ़ी हुई निर्माण गतिविधियां आदि शामिल हैं. वर्षों से, इस नाजुक पहाड़ी ढलान का बोझ उस मिट्टी की सहन करने की क्षमता से अधिक बढ़ गया है जिस पर यह टिकी है.’

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बारिश का पानी और जमीन के नीचे बहने वाला घरेलू जल-मल मिट्टी में हाई पोर-प्रेशर की स्थिति पैदा करते हैं, जिससे इसकी क्षमता घट जाती है और नतीजा ढलान वाले इलाकों में मिट्टी की कटान के तौर पर सामने आता है.

अन्य कारणों के अलावा, रिपोर्ट में बस्ती से होकर अलकनंदा में गिरने वाले नौ नालों का भी उल्लेख किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये नाले लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे मिट्टी का कटाव हो रहा है और उनके पास बने घरों को नुकसान पहुंच रहा है.

जोशीमठ शहर के ढलान से गुजरने वाले नौ नाले दिखाने वाला नक्शा | फोटो: विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्ट

विशेषज्ञ समिति का हिस्सा रहे आईआईटी-रुड़की के प्रोफेसर बी.के. माहेश्वरी ने एक वीडियो बयान जारी कर लोगों को बताया है कि टीम स्थानीय निवासियों से बात करने और विभिन्न स्थानों का दौरा करने के बाद अपने निष्कर्षों का आकलन करेगी.

अपने वीडियो में उन्होंने कहा, ‘स्थानीय जनता की मानें तो उनके घरों को नुकसान और जोशीमठ शहर में मिट्टी का दरकना मुख्य तौर पर दो घटनाओं के बाद बढ़ा है—7 फरवरी को बादल फटना और अक्टूबर 2021 में भारी बारिश. हालांकि, पर्याप्त भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी मुद्दे हैं जिनका हम आकलन कर रहे हैं.’

स्थानीय निवासियों का दावा, मुख्य फैक्टर का ‘जिक्र’ नहीं

जोशीमठ निवासियों का एक वर्ग दावा कर रहा है कि सरकार की तरफ से गठित समिति बदलते परिदृश्य के पीछे मुख्य कारण सामने लाने में विफल रही है. उनके मुताबिक, इमारतों को पहुंचे नुकसान का एक प्रमुख कारण नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) के तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए जारी निर्माण कार्य है.

जोशीमठ नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष भरत कुंवर ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह सच है कि जोशीमठ शहर में यह समस्या लंबे समय से है. पिछले कुछ सालों में कम से कम दो होटल आंशिक रूप से जलमग्न होकर ढह चुके हैं. भूकंपीय गतिविधियां और हिमालयी क्षेत्र नाजुक होना तो इसकी ज्ञात वजहें हैं ही, लेकिन जोशीमठ शहर के नीचे से गुजरने वाली विष्णुगढ़ बिजली परियोजना की विशाल निर्माणाधीन सुरंग भी एक बड़ा फैक्टर है… हालांकि, सरकार इसकी अनदेखी कर रही है. लेकिन आने वाले समय में इससे जुड़े बड़े फैसले लेने पड़ सकते हैं.’

अतुल सती जैसे स्थानीय निवासी अब अपनी नाराजगी सोशल मीडिया पर जाहिर कर रहे हैं. ट्विटर पर खुद को ‘एक्टिविस्ट’ बताने वाले सती ने रविवार को एक ट्वीट किया, ‘वैज्ञानिक विशेषज्ञों की इस समिति ने इन फैक्टर्स में जोशीमठ के ठीक नीचे से गुजरने वाली तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना की सुरंग के बारे में कोई जिक्र नहीं किया है.’

विष्णुगढ़ सुरंग को लेकर लगाए जा रहे आरोपों के बारे में पूछे जाने पर चमोली के जिला मजिस्ट्रेट हिमांशु खुराना ने कहा, ‘मैं सुरंग के असर के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. इस बारे में तो इसका अध्ययन करने वाले ही बता सकते हैं. मेरी जानकारी के मुताबिक पहले कुछ स्वतंत्र जांच की गई थी लेकिन एक उचित वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें शहर के तमाम घरों में दरार और अनियमित जल निकासी को लेकर लोगों और नागरिक संगठनों की तरफ से शिकायतें मिली थीं. इसलिए, मैंने सरकार से शहर के विस्तृत भूवैज्ञानिक अध्ययन का अनुरोध किया. मैंने सिंचाई विभाग से स्थिति से निपटने के लिए जल निकासी योजना तैयार करने को भी कहा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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