(फोटो के साथ)
(उज्मी अतहर)
अलीगढ़/ बुलंदशहर, 17 अगस्त (भाषा) अलीगढ़ के बाहरी इलाके में धूल भरी ईंट भट्टों वाली एक कॉलोनी में 32 वर्षीय प्रवासी मजदूर कमल सिंह अपनी झोपड़ी पर लगे एक बेजान सौर पैनल के पास खड़े हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह तो रोशनी का सहारा था। पर अब पहले जैसा नहीं चलता।’’
कभी आत्मनिर्भरता का प्रतीक रहा यह पैनल, जो उनकी झोपड़ी को रोशन करता था और चिलचिलाती गर्मियों में पंखे चलाता था, अब गंदगी से ढका हुआ है और मुश्किल से काम कर रहा है। रखरखाव की कमी और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण ऐसा हुआ है।
एक ओर भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, दूसरी ओर कमल जैसे लोगों की कहानी सौर ऊर्जा अपनाने और इसके रखरखाव से जुड़े चिंताजनक हालात उजागर कर रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के धूल भरे अंदरूनी इलाकों – हाथरस, बुलंदशहर, अलीगढ़ – में कई प्रवासी श्रमिकों ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा को अपनाया था, लेकिन अब वे इससे निराश हो रहे हैं।
कुछ लोगों ने महीनों तक धूप में काम करके पैसे जुटाए और अपनी झोपड़ियों पर छोटे सौर पैनल लगवाए। कुछ समय तक तो यह काम भी कर गया: दो बल्बों से उनके कमरे रोशन हो गए, पंखे चले तो गर्मी से राहत मिली और मोबाइल फोन भी चार्ज होने लगे।
लेकिन आज, लाइटें बस टिमटिमा रही हैं और पंखा भी मुश्किल से चल पा रहा है।
कमल की पत्नी ने कहा, ‘‘हमें नहीं पता कि क्या गड़बड़ हुई। जब हम इसे दुकान पर ले गए, तो उन्होंने बताया कि इस पर धूल जम गई है। फिर हमने इसे कपड़े से अच्छी तरह साफ किया, लेकिन यह अब भी पहले जैसा काम नहीं कर रहा है।”
आवासीय सौर ऊर्जा उत्पाद बेचने वाली भारतीय कंपनी ‘सोलर स्क्वायर’ के निदेशक नीरज जैन ने बताया कि सफाई धीरे और सही तरीके से की जानी चाहिए।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘ज्यादा जोर से झुकने या रगड़ने से छोटी-छोटी दरारें पड़ सकती हैं या ‘एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग’ को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे पैनल की उम्र काफी कम हो जाती है।’’
लेकिन यह जानकारी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ईंट भट्टा मजदूरों तक नहीं पहुंची है, जो अक्सर दूसरों से मिली जानकारी पर निर्भर रहते हैं।
बहुत कम औपचारिक प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के लिए कोई स्थानीय तकनीशियन न होने के कारण लोग फर्श पोंछने या धूल झाड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले फिनाइल के घोल से पैनलों की सफाई करते हैं।
कुछ लोग पैनल की कांच की सतह को रगड़ते समय सीधे उस पर झुक जाते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता कि इससे पैनलों को नुकसान होता है।
नानाऊ गांव में प्रवासी निर्माण मजदूर किशोर कुमार ने कहा, ‘‘पिछले साल मैंने बिजली से 3,000 रुपये बचाए थे। लेकिन अब पैनल ने ठीक से काम करना बंद कर दिया है। किसी ने हमें यह नहीं बताया कि इसकी देखभाल कैसे करें।’’
अन्य लोग भी ऐसी ही आपबीती सुनाते हैं।
बिहार के गया से उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के नानऊ गांव में एक ईंट भट्टे पर काम करने आईं संगीता ने कहा, ‘‘हमने यह सोचकर इसे खरीदा था कि यह रात में काम आएगा क्योंकि हम या तो तेल के लैंप पर निर्भर थे या बिजली चोरी करते थे, लेकिन यह मददगार होने से ज्यादा सिरदर्द बन गया।’’
विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि सौर प्रणालियों को कम रखरखाव की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इनकी बिलकुल रखरखाव की जरूरत नहीं है।
जैन ने कहा, ‘‘अगर इन्हें साफ नहीं किया गया, तो 90 दिन में इनके प्रदर्शन में 35 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ग्रामीण, पिछड़े क्षेत्रों में, पैनल अक्सर खराब वायु गुणवत्ता, धूल, पक्षियों की बीट और रखरखाव के बारे में कोई मार्गदर्शन न मिलने के कारण खराब होने लगते हैं। एक या दो साल बाद, कई लोग इसका इस्तेमाल बंद कर देते हैं।”
पिलखाना और बिजौली जैसे आसपास के इलाकों के दुकानदार भी प्रदर्शन में गिरावट की बात कह रहे हैं।
पिलखाना में एक दुकान के मालिक वीरेंद्र सिंह ने बताया, ‘‘पहले, परिवार अपने सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए डीसी पंखे और एलईडी बल्ब खरीदने हमारे पास आते थे। अब कुछ लोग फिर से केरोसिन लैंप मांगने लगे हैं।”
जब ‘पीटीआई-भाषा’ ने सौर पैनल बेचने वाली दुकानों से संपर्क किया, तो दुकानदारों ने कहा कि उन्हें खुद भी नहीं पता कि प्रभावी रखरखाव कैसे सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि वे लोगों को बस गीले और सूखे कपड़े से अच्छी तरह पोंछने के लिए कहते हैं।
बुलंदशहर के एक दुकानदार ने कहा,‘‘जैसे हम घर पर धूल झाड़ते हैं, वैसे ही खरीदारों को इन्हें साफ करने की सलाह देते हैं।’’
उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूपीएनईडीए) के प्रबंध निदेशक इंद्रजीत सिंह ने स्वीकार किया कि यह एक समस्या है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन अब हम प्रशिक्षण का दायरा बढ़ा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 30,000 सूर्य मित्रों को स्थापना और रखरखाव के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।’’
सिंह ने कहा, ‘‘हमने ग्रामीण क्षेत्रों में महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर प्रायोगिक परियोजना भी शुरू की है।’’
उनके अनुसार, अब तक 5,000 से ज़्यादा लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है और 3,000 विक्रेताओं को पंजीकृत किया गया है।
भाषा जोहेब धीरज
धीरज
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