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Thursday, 26 December, 2024
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सोशल मीडिया फ्रैंड रिक्वेस्ट, वीडियो कॉल्स, चैट्स- कैसे चलते हैं सेक्सटॉर्शन रैकेट्स और ‘कमज़ोर निशाना’

सेक्सटॉर्शन गैंग्स सोशल मीडिया से महिलाओं के फोटो उठाते हैं, और ऐसे पुरुषों को फुसलाने के लिए उनके फर्ज़ी प्रोफाइल्स बनाते हैं, जो अकसर 40 से अधिक उम्र के होते हैं. दिप्रिंट समझाता है कि तेज़ी से बढ़ते ये रैकेट्स कैसे काम करते हैं.

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नई दिल्ली: आमतौर से ये फेसबुक (अब मेटा) पर किसी मामूली सी दिखने वाली, और पूजा या अंजलि जैस सामान्य से नाम की महिला की ओर से एक फ्रैंड रिक्वेस्ट के साथ शुरू होता है. आप ऐसे आदमी हैं जो शायद 40 से ज़्यादा की उम्र के हैं, शादीशुदा हैं, अमीर हैं और ऊबे हुए हैं. आपका कौतूहल जागता है, ख़ुद को सम्मानित भी महसूस कर सकते हैं, इसलिए आप फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर लेते हैं, और बातचीत शुरू कर देते हैं.

ऐसा लगता है कि पूजा को आप पसंद आ गए हैं, क्योंकि कुछ संदेशों के बाद वो इस बातचीत को किसी और निजी जगह ले जाना चाहती है, जैसे व्हाट्सएप. आप अपना नंबर शेयर करते हैं और फिर चीज़ें तेज़ी से आगे बढ़ती हैं. वो पूछती है, ‘देखना है कुछ? बाथरूम जाओ’. आप उसके कहे पर चलते हैं, और एक वीडियो कॉल आती है. आप इतने उत्साहित हैं कि इससे भी फर्क़ नहीं पड़ता कि आप महिला को बहुत साफ देख नहीं पा रहे.

कुछ ही देर बाद आपका फोन बजता है, और आपकी मुसीबत शुरू हो जाती है. किसी ने आपको उस वीडियो चैट की एक रिकॉर्ड की हुई क्लिप भेजी है, जिसके आपने अभी मज़े लिए थे. इसमें वो महिला कामुक स्थिति में नज़र आ रही है, और आप भी निर्वस्त्र होकर ख़ुद को छू रहे हैं. साथ में एक लिखित मैसेज भी है: ‘पैसा भेजो…बताओ, भेज दूं ऑनलाइन?’

अगर आप फौरन पैसा दे देते हैं, तो भी कोई गारंटी नहीं कि ये मामला ख़त्म हो जाएगा और आप हमेशा डर में जिएंगे. अगर आप पैसा नहीं देंगे, तो ‘पूजा’ आपको मनाने की पूरी कोशिश करेगी. आपको असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल से फोन आएंगे, एक के बाद एक फ़र्ज़ी नंबर, या कोई नंबर जो यूट्यूब का लगता होगा, आपसे कहेगा कि आपका वीडियो डल चुका है, और उसे हटाने के लिए आपको पैसा अदा करना होगा. या, किसी ‘पुलिस अधिकारी’ से भी फोन आ सकते हैं, जो रिश्वत मांगेगा.

ये है वो तरीक़ा जिस पर फिलहाल भारत में बहुत से ‘सेक्सटॉर्शन’ रैकेट चलते हैं, जिनमें बहुत से राजस्थान की मेवात-भरतपुर-अलवर बेल्ट में स्थित गिरोहों द्वारा बड़ी कुशलता से चलाए जा रहे हैं. पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि एक मामले में सिर्फ एक आईएमईआई (इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आईडेंटिटी) नंबर से, 1,100 सिम कार्ड्स के इस्तेमाल का पता चला, जिनसे अलग अलग नंबरों से पीड़ित को परेशान किया जाता था.

दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की इंटेलिजेंस फ्यूज़न एंड स्ट्रेटेजिक ऑपरेशंस (आएफएसओ) यूनिट के अनुसार, पिछले एक साल में ऐसे आठ मामले सामने आ चुके हैं. हर मामले में सैकड़ों पीड़ित और अनेकों शिकायतें होती हैं, और अभी तक छह गिरफ्तारियां हो चुकी हैं.

पीड़ितों में दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर और एक पुलिस अधिकारी से लेकर व्यवसाइयों और राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोग तक शामिल हैं.

दिप्रिंट समझाता है कि ये रैकेट्स कैसे काम करते हैं, और कौन लोग आसानी से निशाना बनते हैं.


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कैसे बिछाया जाता है जाल

सेक्सटॉर्शन के काम में पहला क़दम होता है, लक्ष्य के लिए उपयुक्त प्रलोभन तैयार करना. दिल्ली पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ये गिरोह सामान्य सी महिलाओं के फेसबुक पन्नों को खंगालते हैं, और फिर उन प्रोफाइल्स की शिनाख़्त करते हैं, जिनसे वो तस्वीरें डाउनलोड कर सकते हैं.

एक पुलिस सूत्र ने कहा, ‘महिलाओं की इन्हीं तस्वीरों से फर्ज़ी प्रोफाइल्स तैयार किए जाते हैं. इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे आम नाम हैं अंजलि शर्मा और पूजा शर्मा. उनके लिए (वास्तविक महिलाओं) की तस्वीरें इस्तेमाल करना ज़रूरी होता है, क्योंकि ये सबसे सही चारे का काम करते हैं’.

एक बार संपर्क हो जाने के बाद, बातचीत व्हाट्सएप और वीडियो कॉल पर शिफ्ट हो जाती है, लेकिन कॉल के दूसरी ओर असल में कोई महिला नहीं होती.

सूत्र ने कहा, ‘वो कोई ऑडियो इस्तेमाल नहीं करते, इस बहाने के साथ कि परिवार सुन सकता है. लक्ष्य सामने वाला कैमरा इस्तेमाल करता है, जबकि अभियुक्त पिछला कैमरा इस्तेमाल करता है, और किसी पोर्नोग्राफिक वेबसाइट से कोई एडल्ट वीडियो चलाता है, जिसमें एक महिला आंशिक रूप से दिखती है, ज़्यादातर उसका ऊपरी हिस्सा. जैसे ही कॉल ख़त्म होती है, लक्ष्य को एक मैसेज मिलता है जिसमें पैसा मांगा जाता है’.

सोशल मीडिया ऐप्स सेक्सटॉर्शन स्कैमर्स के हाथों में शक्तिशाली उपकरण हैं | फोटो: मैक्सपिक्सेल

सूत्रों ने समझाया कि सेक्सटॉर्शन एक प्रक्रिया है, जो कम से कम दो या तीन दिन चलती है, या जब तक लक्ष्य पैसा न दे दे.

दिल्ली पुलिस के एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘लोग अक्सर दबाव में आ जाते हैं, और पैसा अदा कर देते हैं. अगर वो पहली बार में पैसा नहीं देते, तो फिर एक कॉल की जाती है जो ट्रूकॉलर पर, किसी ‘यूट्यूब अधिकारी’ की कॉल नज़र आती है. लक्ष्य को बताया जाता है कि उसका वीडियो यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया है, और उसे हटाने के लिए उन्हें पैसा देना होगा, चूंकि ये नियमों का उल्लंघन है. व्हाट्सएप प्रोफाइल की तस्वीर भी यूट्यूब आइकॉन की होती है’. सूत्र ने आगे कहा कि ज़्यादातर मामलों में आपत्तिजनक वीडियोज़ कभी वास्तव में ऑनलाइन शेयर नहीं की जातीं.

एक दूसरे सूत्र ने बताया कि अगर यूट्यूब वाली चाल काम नहीं आती, तो फिर पुलिस अधिकारी बनकर एक और कॉल की जाती है.

उन्होंने कहा, ‘दूसरी कॉल अक्सर एक पुलिस अधिकारी बनकर की जाती है, जिसमें वॉयस मॉड्युलेशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है. एक मामले में, उन्होंने एक सेक्सटॉर्शन जांच अधिकारी तक का नाम इस्तेमाल किया. पीड़ितों से मांगी जाने वाली रक़म 5,000 रुपए से लेकर 2-3 लाख रुपए तक होती है. वो उतनी ही रक़म मांगते हैं जिन्हें उन्हें लगता है कि पीड़ित दे सकता है’.

अक्टूबर में ऐसे ही एक मामले में राजस्थान के एक व्यक्ति ने, जिसने 300 से अधिक लोगों से 30 लाख रुपए की उगाही की थी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की तस्वीर इस्तेमाल की थी.

अधिकारी ने कहा कि एक और अजीब मामले में, पीड़ित से कहा गया था कि वीडियो की लड़की ने ख़ुदकुशी कर ली थी, और मामले को ख़त्म करने के लिए उसे पैसा देना होगा.

सूत्रों ने कहा कि वीडियो आमतौर से उतनी स्पष्ट नहीं होती, लेकिन पीड़ित फिर भी सामाजिक शर्मिंदगी के डर से पैसा भर देते हैं.

गिरोह ‘छोटे कुटीर उद्योगों’ की तरह चलते हैं

सूत्रों ने कहा कि बहुत से सेक्सटॉर्शन गिरोह ‘छोटे कुटीर उद्योगों’ की तरह चलते हैं, जिनमें हर घोटाले को दो से चार सदस्य चला रहे होते हैं. ये ‘ऑपरेशंस’ आमतौर से गैंग के किसी सदस्य के घर से चलाए जाते हैं जो अमूमन गैंग का ‘सरग़ना’ होता है. लैपटॉप्स, फोन्स, और सिम कार्ड्स के अलावा, सेक्सटॉर्शन रैकेट के लिए ज़रूरी सभी सामान रखा जाता है. ये कमरे ज़्यादातर घरों में पीछे की ओर होते हैं और अक्सर उनमें रंगीन शीशों वाली खिड़कियां और लंबे परदे होते हैं.

एक पुलिस सूत्र ने बताया, ‘मेवात-भरतपुर-अलवर बेल्ट में ये किसी छोटे कुटीर उद्योग की तरह है. बल्कि अपने पैतृक गांवों में इन्हें अक्सर ‘लड़की वाले’ कहकर पुकारा जाता है. हर कोई जानता है कि वो क्या करते हैं, लेकिन कोई इनके बारे में ख़बर नहीं देना चाहता. जब टीमें उन्हें गिरफ्तार करने जाती हैं, तो ज़्यादातर मामलों में गांव वाले उनके समर्थन में इकठ्ठा हो जाते हैं, जिससे ये प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है’. सूत्र ने ये भी कहा कि ज़्यादा से ज़्यादा युवा, सेक्सटॉर्शन रैकेट्स को करने योग्य रोज़गार अवसरों के तौर पर देख रहे हैं.

कुछ गिरोहों में तो 14 वर्ष की छोटी उम्र तक के सदस्य हैं. एक तीसरे पुलिस सूत्र ने कहा, ‘उन्हें बस एक लैपटॉप और एक फोन चाहिए होता है, जो आजकल आसानी से हासिल किए जा सकते हैं’.

बेईमानी से मिले पैसे को जमा करने के लिए, ये गैंग फर्ज़ी आईडी के ज़रिए देशभर में बैंक खाते खोल लेते हैं. दूसरे सूत्र ने बताया, ‘ये गिरोह मॉड्यूल्स में काम करते हैं, एक मॉड्यूल पर इन अकाउंट्स को खोलने का ज़िम्मा होता है, और दूसरा कैश निकालता है. वो लोगों के आधार की डिटेल्स ले लेते हैं, और ये खाते खोलने के लिए उन्हें पैसा अदा किया जाता है’.

आमतौर से इन गिरोहों में दो से चार सदस्य होते हैं, जो वसूली की शुरुआती कोशिश करते हैं, लेकिन समय के साथ साथ उनके पास, पीड़ितों की एक बड़ी संख्या जमा हो सकती है.

इस साल पकड़े गए एक सबसे बड़े केस में, पुलिस को पीड़ितों के 40 से अधिक वीडियो गैंग के सदस्यों के फोन्स में मिले, जो भरतपुर से काम कर रहे थे. इस मामले में, पुलिस को पहली शिकायत अक्टूबर 2020 में मिली, लेकिन गिरोह के छह सदस्यों को पकड़ने में उसे तीन महीने लग गए. डीसीपी साइबर सेल अन्येश रॉय ने मीडिया को बताया था, ‘अभियुक्त फर्ज़ी और नक़ली आईडीज़ के सहारे हासिल किए गए सिम कार्ड्स और बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे थे, इसलिए उन तक पहुंचना चुनौती भरा काम था’.

कमज़ोर लक्ष्य

एक पुलिस सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि ‘मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों से’ सेक्सटॉर्शन गिरोह अक्सर, 40 से अधिक की उम्र वालों को निशाना बनाते हैं

सूत्र ने कहा, ‘एक तो वो शादीशुदा होते हैं, और उन्हें अपने परिवार और समाज के सामने बेनक़ाब का डर रहता है. दूसरे, उनके पास संसाधन होते हैं कि वो जबरन वसूली की रक़म अदा कर सकते हैं. उन्हें फंसाना आसान होता है’.

संपर्क करने से पहले गिरोह के सदस्य, लक्ष्य की फेसबुक फ्रैंड लिस्ट और पोस्टिंग का इतिहास देखते हैं. सूत्र ने कहा, ‘वो लोगों तथा उनके सर्कल के अकाउंट्स का अध्ययन करते हैं. इससे वो पीड़ितों को आगे भी ब्लैकमेल कर पाते हैं’.

दुर्भाग्य से ज़्यादातर पीड़ित सामाजिक कलंक के डर से पुलिस के पास जाने में झिझकते हैं, और जब वो जाते हैं तो अमूमन कोर्ट में पेशी से बचना चाहते हैं. पुलिस सूत्रो ने कहा कि इससे जांच करने और सज़ा दिलाने में दिक़्क़तें आ सकती हैं.

डीसीपी साइबर सेल, आईएफएसओ, केपीएस मल्होत्रा ने कहा, ‘सेक्सटॉर्शन मामलों को पुलिस के पास ले जाने को सामाजिक कलंक समझा जाता है. अक्सर होता ये है कि पीड़ित शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहता, और अगर कराता भी है तो बयान दर्ज कराने और वीडियो की शिनाख़्त के लिए, वो कोर्ट में पेश होने से मना कर देता है. इसकी वजह से जांच में देरी होती है. उनमें से ज़्यादातर लोग सज़ा दिलाने की क़ानूनी प्रक्रिया से गुज़रने की बजाय, समझौते से मामले को निपटाना चाहते हैं’.

पुलिस सूत्रों ने इस पर भी प्रकाश डाला कि सेक्सटॉर्शन मामलों की जांच में उन्हें कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. तीसरे सूत्र ने कहा, ‘जांच की शुरुआत में उन नंबरों का पता लगाया जाता है, जहां से कॉल्स की गईं थीं. नंबरों का पता चलने के बाद सब्सक्राइबर डिटेल्स चेक की जाती हैं- सीडीआर्स (कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स), संबंधित बैंक, पेटीएम जैसे ई-वॉलेट्स आदि (रीचार्ज के लिए). चूंकि ये नंबर अलग अलग जगहों से होते हैं, इसलिए वास्तविक यूज़र्स का पता लगाने के लिए बारीकी से जांच करनी होती है’. अगर पकड़े जाएं, तो ऐसे मामलों में अभियुक्तों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 384 (जबरन वसूली के लिए सज़ा), 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक साज़िश) और 419 (प्रतिरूपण द्वारा छल) के तहत मुक़दमा दर्ज किया जाता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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